नई दिल्ली: एक भी कील इधर से उधर नहीं हुई और कई सौ करोड़ रुपए का खेल हो गया. इस खेल की बदौलत कौडि़यों की कीमत वाले कुछ लोग करोड़पति बन गए. जी हां, गुजरात के अहमदाबाद से जुड़े इस मामले का खुलासा डायरेक्टोरेट जनरल ऑफ जीएसटी इंटेलिजेंस (डीजीजीआई) ने किया है. डीजीजीआई की जांच में अबतक 800 करोड़ रुपए की हेराफेरी की बात का पता चली है और कुल चार लोगों को गिरफ्तार किया गया है. फर्जी बिलिंग से जुड़ी इस कार्रवाई को इस साल की सबसे बड़ी कार्रवाई के तौर पर देखा जा रहा है.
तीन अलग-अलग मामलों की जांच के बाद डीजीजीआई को पता चला कि आरोपी नकली कंपनियां बनाते, नकली डायरेक्टर की तैनाती करते और फर्जी बिल बनाकर जीएसटी का इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी) ले लेते थे. असल में न माल आता था, न जाता था, सिर्फ बैंक में पैसा घूमता था और सरकारी खजाने को तगड़ा चूना लग जाता था. पहला मामला अहमदाबाद से था, जिसमें करीब 550 करोड़ रुपए की फर्जी बिलिंग की गई थी. इस मामले में डीजीजीआई ने बदरे आलम पठान और तौफीक खान नाम को मुख्य आरोपी के तौर पर अरेस्ट किया है.
दोनों आरोपी अहमदाबाद में ही एएच इंजीनियरिंग वर्क्स के नाम से एक फर्म चलाते थे. इन दोनों आरोपियों ने मिलकर बंद पड़ी ऐसी दर्जनों कंपनियों के नाम का इस्तेमाल किया, जिनका जीएसटी नंबर भी चालू था. पहले इन कंपनियों का पता और डायरेक्टर बदले गए, फिर शुरू हुआ फर्जी बिलिंग का गोरखधंधा. ये फर्जी बिल ज्यादातर गुजरात के अहमदाबाद, जामनगर, राजकोट के साथ महाराष्ट्र की कई फैक्ट्रियों को दिए गए थे. फैक्ट्रियां को आयरल और स्टील की मैन्युफैक्चिरिंग से जुड़ा बताया गया था.
फर्जी बिल लगाकर लिए 8.86 करोड़ रुपए का आईटीसी
डीजीजीआई के अनुसार, पकड़े जाने पर तौफीक ने कबूला कि उसने अकेले 45 करोड़ के फर्जी बिल के जरिए 8.86 करोड़ का गलत आईटीसी ले लिया है. इन रुपयों को हवाला के रास्ते इधर से उधर किया गया. इनका एक साथी इकराम खान अभी फरार है. दूसरा केस जूनागढ़ का था. वहां हार्दिक रावल नाम के आरोपी को पकड़ा गया है. हार्दिक ने तो 47 नकली फर्में बना रखी थीं. उसकी फर्म का नाम था भारत सैनिटरी एंड फिटिंग था. हार्दिक रावल को 25 नवंबर को डीजीजीआई ने गिरफ्तार किया था.
बाहर सबकुछ था साफ सुथरा, अंदर चल रहा था गंदा धंधा
वहीं, तीसरा मामला जामनगर से था. इस मामले में जयदीप विरानी नाम के शख्स को गिरफ्तार किया गया है. उसने कागजों पर पीतल और स्टील का बिजनेस दिखा रखा था. उसने 121 करोड़ के फर्जी बिल बनवाए और 22 करोड़ का गलत टैक्स क्रेडिट ले लिया. 28 नवंबर को उसे भी जेल भेज दिया गया. डीजीजीआई के अफसर राजेश कुमार ने बताया कि ये लोग इनएक्टिव जीएसटी नंबर खरीदते थे, फर्जी आधार-पैन बनवाते थे, डमी डायरेक्टर लगा देते थे और सब कुछ ऑनलाइन चला लेते थे. बाहर से लगता था सब कानूनी धंधा है, पर अंदर से पूरा लूट का खेल था.







