स्पेशल डेस्क/नई दिल्ली: अमेरिका ने ईरान के तीन परमाणु ठिकानों—फोर्डो, नतांज़, और इस्फ़हान—पर किए गए हवाई हमलों ने मध्य पूर्व में तनाव को अभूतपूर्व स्तर पर पहुंचा दिया है। इसराइल और ईरान के बीच 10 दिनों से चल रहे संघर्ष में अमेरिका की सैन्य भागीदारी ने वैश्विक तेल बाजारों में हलचल मचा दी है। विशेषज्ञों और विश्लेषकों ने चेतावनी दी है कि इस हमले के परिणामस्वरूप तेल की कीमतों में भारी उछाल आ सकता है, जो भारत सहित वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए गंभीर चुनौतियां पैदा कर सकता है। आइए इस संकट के प्रभाव और तेल की कीमतों पर इसके असर एक्जीक्यूटिव एडिटर प्रकाश मेहरा से विस्तार में जानते हैं।
तेल की कीमतों में मौजूदा स्थिति !
अमेरिकी हमलों के बाद, वैश्विक बेंचमार्क ब्रेंट क्रूड की कीमत 0.40% बढ़कर 77.32 डॉलर प्रति बैरल हो गई, जबकि यूएस वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (WTI) क्रूड 0.73% बढ़कर 74.04 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया। पिछले सप्ताह में ब्रेंट क्रूड में 18% की तेजी आई थी।
इसराइल के 13 जून को ईरान पर हमले के बाद तेल की कीमतों में 6-10% की वृद्धि देखी गई थी, जब ब्रेंट क्रूड 73.96 डॉलर और WTI 73.03 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंचा। यह रूस-यूक्रेन युद्ध (फरवरी 2022) के बाद एक दिन में सबसे बड़ी वृद्धि थी। जून में अब तक तेल की कीमतें 24% बढ़कर 77 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच चुकी हैं, जबकि मई में केवल 4% की वृद्धि हुई थी।
होर्मुज जलडमरूमध्य का खतरा
ईरान ने बार-बार होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद करने की धमकी दी है, जो वैश्विक तेल व्यापार का 20% हिस्सा संभालता है। यदि यह जलमार्ग बंद होता है, तो तेल की कीमतें 100-130 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच सकती हैं। जेपी मॉर्गन, सिटी, और ड्यूश बैंक ने अनुमान लगाया है कि जलडमरूमध्य के बंद होने पर कीमतें 120-130 डॉलर तक जा सकती हैं, और कुछ मामलों में इससे भी अधिक। केडिया एडवाइजरी के निदेशक अजय केडिया ने कहा कि सोमवार (23 जून 2025) को तेल की कीमतों में 10-15% की वृद्धि हो सकती है, और होर्मुज बंद होने पर कीमतें 95-100 डॉलर तक पहुंच सकती हैं।
ईरान की तेल आपूर्ति में व्यवधान
ईरान प्रतिदिन 33 लाख बैरल कच्चा तेल उत्पादन करता है, जो वैश्विक आपूर्ति का 3.5% है। इसराइली हमलों ने ईरान के तेल और गैस क्षेत्रों, जैसे साउथ पार्स गैस फील्ड और शाहरन ऑयल फील्ड, को नुकसान पहुंचाया है, जिससे उत्पादन प्रभावित हुआ है। यदि ईरान अपनी तेल आपूर्ति रोकता है या जवाबी कार्रवाई में खाड़ी के अन्य तेल उत्पादक देशों को निशाना बनाता है, तो कीमतें 120 डॉलर से अधिक हो सकती हैं।
अमेरिकी हमलों ने संघर्ष को व्यापक क्षेत्रीय युद्ध में बदलने की आशंका बढ़ा दी है। ईरान ने जवाबी कार्रवाई की धमकी दी है, जिससे तेल बाजारों में अनिश्चितता बढ़ गई है। गोल्डमैन सैक्स ने चेतावनी दी कि यदि संघर्ष बढ़ता है, तो तेल की कीमतें 100 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच सकती हैं।वैश्विक तेल मांग 2025 में धीमी होने की उम्मीद है (650,000 बैरल प्रतिदिन), लेकिन भू-राजनीतिक तनाव के कारण आपूर्ति में कमी की आशंका ने कीमतों को बढ़ा दिया है।
अमेरिकी तेल भंडार में अपेक्षा से अधिक कमी (3.644 मिलियन बैरल) ने भी कीमतों को समर्थन दिया है।
भारत पर संभावित प्रभाव
भारत, जो अपनी तेल आवश्यकताओं का 85-90% आयात करता है, इस उछाल से गंभीर रूप से प्रभावित हो सकता है। तेल की कीमतों में वृद्धि से पेट्रोल, डीजल, और अन्य ईंधन की कीमतें बढ़ेंगी, जिससे खाद्य पदार्थों और परिवहन लागत में इजाफा होगा। इससे भारत में मुद्रास्फीति बढ़ सकती है।
उत्पादन लागत बढ़ने से भारतीय कंपनियों, जैसे एचपीसीएल, बीपीसीएल, और इंडियन ऑयल, पर दबाव बढ़ेगा। उपभोक्ताओं की खर्च करने की क्षमता कम हो सकती है, जिससे मांग और आर्थिक विकास प्रभावित होगा। अमेरिकी हमलों के बाद वैश्विक शेयर बाजारों में गिरावट की आशंका है, और भारतीय बाजार भी इससे अछूते नहीं रहेंगे। बीएसई सेंसेक्स पहले ही 1% से अधिक गिर चुका है। भारत ने वैकल्पिक आपूर्ति स्रोतों की तलाश शुरू कर दी है, और सरकार स्थिति पर नजर रखे हुए है। हालांकि, एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि अल्पकालिक प्रभाव सीमित हो सकता है, लेकिन लंबे समय तक संघर्ष जारी रहने पर नुकसान बढ़ सकता है।
क्या पड़ेंगे वैश्विक प्रभाव
यदि तेल की कीमतें 100 डॉलर से अधिक होती हैं, तो तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रास्फीति 1% तक बढ़ सकती है, जिससे केंद्रीय बैंकों के लिए ब्याज दरें कम करना मुश्किल हो जाएगा। होर्मुज जलडमरूमध्य के बंद होने से वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाएं बाधित हो सकती हैं, जिसका असर व्यापार और अर्थव्यवस्थाओं पर पड़ेगा।
स्थिरीकरण की संभावनाएं
ओपेक+ की 4 जुलाई को होने वाली बैठक में आपूर्ति बढ़ाने पर चर्चा हो सकती है, जो कीमतों को स्थिर कर सकती है। अमेरिका ने अपनी तेल आपूर्ति बढ़ाने का संकेत दिया है, जो होर्मुज बंद होने के प्रभाव को कम कर सकता है। भारत, जापान, और कतर जैसे देश मध्यस्थता की कोशिश कर रहे हैं, जो तनाव कम कर सकता है।
कूटनीति और संयम पर ध्यान
ईरान पर अमेरिकी हमलों ने तेल की कीमतों में उछाल की आशंका को और मजबूत कर दिया है। होर्मुज जलडमरूमध्य के बंद होने या ईरान की तेल आपूर्ति में व्यवधान की स्थिति में कीमतें 100-130 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच सकती हैं। भारत जैसे तेल आयातक देशों के लिए यह महंगाई, आर्थिक अस्थिरता, और ऊर्जा सुरक्षा की चुनौती पैदा करेगा। हालांकि, ओपेक+ और अमेरिकी आपूर्ति बढ़ाने की कोशिशें कीमतों को नियंत्रित कर सकती हैं। भारत सरकार स्थिति पर नजर रखे हुए है और वैकल्पिक उपायों की तलाश कर रही है। वैश्विक समुदाय को इस संकट के समाधान के लिए कूटनीति और संयम पर ध्यान देना होगा।