विशेष डेस्क/पटना: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले भारत निर्वाचन आयोग (ECI) द्वारा शुरू किए गए विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) अभियान ने राज्य में राजनीतिक और सामाजिक हलचल मचा दी है। इस प्रक्रिया का उद्देश्य मतदाता सूची को अद्यतन करना, फर्जी और डुप्लिकेट मतदाताओं को हटाना, और नए योग्य मतदाताओं को शामिल करना है। हालांकि, विपक्षी दलों और विशेषज्ञों ने इस प्रक्रिया की समयबद्धता, प्रक्रिया की जटिलता, और इसके संभावित प्रभावों को लेकर गंभीर आपत्तियां और चिंताएं जताई हैं। आइए पूरा विश्लेषण एग्जीक्यूटिव एडिटर प्रकाश मेहरा से समझते हैं।
‘अलोकतांत्रिक’ और ‘पक्षपाती’ करार
विपक्षी दलों की आपत्तियां प्रक्रिया को ‘अलोकतांत्रिक’ और ‘पक्षपाती’ करार… विपक्षी दलों, विशेष रूप से राष्ट्रीय जनता दल (RJD), कांग्रेस, और इंडिया गठबंधन के अन्य दलों ने इस प्रक्रिया को ‘लोकतंत्र को कमजोर करने की कोशिश’ बताया है। RJD नेता तेजस्वी यादव ने इसे ‘वोटबंदी’ और ‘चुपके से NRC लागू करने’ की साजिश करार दिया है।
विपक्ष का दावा है कि यह प्रक्रिया विशेष रूप से अल्पसंख्यक, दलित, और गरीब समुदायों को निशाना बनाकर उनके मताधिकार को छीनने की कोशिश है।
समय की कमी और अव्यवहारिकता !
विपक्ष ने इस बात पर सवाल उठाया है कि बिहार जैसे विशाल और जटिल जनसंख्या वाले राज्य में 7.8 करोड़ मतदाताओं की जांच 25 दिनों में कैसे संभव है, खासकर मानसून के दौरान जब बाढ़ आम है।
तेजस्वी यादव ने कहा कि “इतने कम समय में इतनी बड़ी आबादी का सत्यापन अव्यवहारिक है और इससे लाखों लोग वोटर लिस्ट से बाहर हो सकते हैं। मतदाताओं से जन्म प्रमाण पत्र, जाति प्रमाण पत्र, और माता-पिता की नागरिकता से संबंधित दस्तावेज मांगे जा रहे हैं, जो गरीब, ग्रामीण, और अशिक्षित आबादी के पास अक्सर उपलब्ध नहीं होते। आधार कार्ड और मनरेगा कार्ड जैसे आम दस्तावेजों को मान्य नहीं किया जा रहा है, जिससे प्रक्रिया और जटिल हो रही है।
AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि “1987 से पहले जन्मे लोगों के लिए भी जन्मतिथि और जन्मस्थान के दस्तावेज मांगना अनुचित है, क्योंकि अधिकांश लोगों के पास ऐसे दस्तावेज नहीं हैं।”
NRC लागू करने की आशंका !
विपक्षी दल इसे राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) को ‘बैकडोर’ से लागू करने की कोशिश मानते हैं। उनका कहना है कि यह प्रक्रिया विशेष रूप से हाशिए पर रहने वाली आबादी, जैसे गरीब, दलित, और अल्पसंख्यक समुदायों को वोटिंग के अधिकार से वंचित कर सकती है।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने दावा किया कि बिहार में यह प्रक्रिया वास्तव में बंगाल को निशाना बनाने की कोशिश है। इंडिया गठबंधन के नेताओं ने कहा कि “आयोग ने इस प्रक्रिया से पहले राजनीतिक दलों के साथ कोई परामर्श नहीं किया, जो संदेहास्पद है।”
इंडिया गठबंधन के नेताओं ने दावा किया कि इस प्रक्रिया से लगभग 20% मतदाताओं को मतदाता सूची से हटाया जा सकता है, जिसे वे जानबूझकर किया गया कदम मानते हैं।
प्रक्रिया की समयबद्धता पर सवाल !
विशेषज्ञों ने इस प्रक्रिया की टाइमिंग पर सवाल उठाए हैं, क्योंकि यह विधानसभा चुनाव से ठीक पहले शुरू की गई है। 2003 में इसी तरह की प्रक्रिया में दो साल से अधिक का समय लगा था, लेकिन इस बार इसे कुछ महीनों में पूरा करने की योजना है, जो अव्यवहारिक लगता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि “दस्तावेजों की कमी के कारण गरीब, ग्रामीण, मजदूर और अल्पसंख्यक समुदायों के लोग मतदाता सूची से बाहर हो सकते हैं। मानव विकास सर्वे के अनुसार, अनुसूचित जातियों के 20% और अन्य पिछड़े वर्गों के 25% लोगों के पास ही जाति प्रमाण पत्र हैं।” यह प्रक्रिया विशेष रूप से उन लोगों को प्रभावित कर सकती है जो दस्तावेजों के अभाव में अपनी नागरिकता साबित नहीं कर पाएंगे।
लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर असर !
कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि ‘अवैध प्रवासियों’ या ‘फर्जी मतदाताओं’ के नाम पर भय फैलाकर इस प्रक्रिया को सही ठहराया जा रहा है, जो मुस्लिम, दलित, और गरीब प्रवासी समुदायों को निशाना बना सकता है। कोई आधिकारिक डेटा इन दावों का समर्थन नहीं करता।
वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश मेहरा ने कहा कि “यह प्रक्रिया अवैध रूप से रह रहे लोगों को हटाने के नाम पर शुरू की गई है, लेकिन यह आम लोगों के मताधिकार को प्रभावित कर सकती है।”
प्रक्रिया का विवरण प्रक्रिया का तरीका
बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) घर-घर जाकर प्री-फील्ड फॉर्म के साथ मतदाताओं का सत्यापन करेंगे। कोई भी व्यक्ति चुनाव आयोग की वेबसाइट से फॉर्म डाउनलोड कर भर सकता है। 11 दस्तावेजों में से एक दस्तावेज जमा करना अनिवार्य है, जिसमें जन्म प्रमाण पत्र और आवासीय प्रमाण पत्र शामिल हैं।
1 अगस्त 2025 को मतदाता सूची का ड्राफ्ट प्रकाशन होगा। 1 अगस्त से 1 सप्तंबर तक दावे और आपत्तियां दर्ज की जा सकेंगी। 30 सितंबर 2025 को अंतिम मतदाता सूची प्रकाशित होगी। 7 जनवरी 2025 की मतदाता सूची के अनुसार, बिहार में 7.80 करोड़ मतदाता हैं, जिनमें 3.72 करोड़ महिलाएं, 4.07 करोड़ पुरुष, और 2,104 थर्ड जेंडर हैं। 2003 की मतदाता सूची में 4.96 करोड़ मतदाताओं के नाम शामिल हैं, जिन्हें नए दस्तावेज जमा नहीं करने होंगे। शेष 3 करोड़ मतदाताओं को दस्तावेज जमा करने होंगे।
चुनाव आयोग का पक्ष संवैधानिक आधार
चुनाव आयोग का कहना है कि “यह प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 326 और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 के तहत हो रही है, जिसका उद्देश्य केवल योग्य भारतीय नागरिकों को मतदाता सूची में शामिल करना है। आयोग ने कहा कि “प्रक्रिया में सभी राजनीतिक दलों की भागीदारी सुनिश्चित की गई है। 98,500 BLOs और 1 लाख से अधिक स्वयंसेवक इस कार्य में लगे हैं।” दावों और आपत्तियों के लिए पर्याप्त समय दिया जाएगा।
आयोग ने विपक्ष के NRC और पक्षपात के आरोपों को खारिज किया है, इसे नियमित और पारदर्शी प्रक्रिया बताया है। जनता की परेशानी पटना जैसे क्षेत्रों में लोगों को दस्तावेज जुटाने में मुश्किल हो रही है। कुछ स्थानों पर ब्लॉक कार्यालयों में रिश्वत की मांग की शिकायतें भी सामने आई हैं। ग्रामीण और गरीब आबादी, जैसे खोखनाहा गांव की प्रियंका, जिनके पास सीमित दस्तावेज हैं, को अपनी नागरिकता साबित करने में परेशानी हो रही है।
चुनावी माहौल और मतदाता भागीदारी !
विपक्षी दलों का मानना है कि यह प्रक्रिया जल्दबाजी में और गैर-पारदर्शी तरीके से लागू की गई है, जिसका उद्देश्य गरीब और हाशिए की आबादी को वोटिंग से वंचित करना हो सकता है। विशेषज्ञों की चिंता है कि यह प्रक्रिया लोकतांत्रिक प्रक्रिया की निष्पक्षता को प्रभावित कर सकती है। दूसरी ओर, चुनाव आयोग इसे संवैधानिक और पारदर्शी प्रक्रिया बताता है। यह विवाद बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया है, जिसका असर चुनावी माहौल और मतदाता भागीदारी पर पड़ सकता है।