प्रकाश मेहरा
शिमला। हिमाचल में तेज हुई सियासत पर सभी की निगाह का टिकना स्वाभाविक है। ऐसा कम ही होता है, जब भाजपा की मजबूत राजनीतिक रणनीतियों को चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। पार्टी में साफ दिख रही टूट के बावजूद जिस तरह से कांग्रेस अपनी सरकार को बचाने की कोशिश में लगी है, उससे लगता है कि आने वाले दिनों में भारतीय राजनीति में संघर्ष के नए पहलू देखने को मिलेंगे। छह विधायकों के पाला बदलकर भाजपा के पक्ष में मतदान करने से कांग्रेस की सरकार पर संकट मंडराने लगा था। ऐसा लग रहा था कि राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस विधायकों का वोट लेकर जीतने वाली भाजपा हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू की सरकार को भी आसानी से सत्ता से बेदखल कर देगी। भाजपा विधायक इसके लिए सक्रिय भी हो गए थे। लगने लगा था कि विधानसभा की 68 सीटों में से कांग्रेस के पास 40 और भाजपा के पास 25 सीटें हैं, तो छह कांग्रेस विधायकों के पाला बदल से अविश्वास प्रस्ताव का मार्ग प्रशस्त हो सकता है, पर ऐसा नहीं हुआ।
विपक्ष की कमजोर इच्छाशक्ति!
कम से कम छह उदाहरण हैं कि भाजपा ने मजबूत रणनीति के बल पर विरोधियों के हाथों में आई सत्ता पर भी अपना शिकंजा कसा है। अभी एकाधिक राज्यों में भाजपा के पक्ष में जो पाला बदल मतदान हुआ है, उससे भी विपक्ष की कमजोर इच्छाशक्ति और दिशाहीन रणनीति का पता चलता है। हालांकि, राज्यसभा चुनाव हारने और सरकार पर आए संकट से निपटने के लिए कांग्रेस के कुछ नेता जिस तरह से सक्रिय हुए, उससे कांटे के सियासी संघर्ष में कांग्रेस दमखम के साथ लौटती दिखी है। नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू से इस्तीफा मांग रहे हैं, पर वह 14 अन्य भाजपा विधायकों के साथ विधानसभा से निलंबित हो गए हैं। ऐसे में विधानसभा में तुलनात्मक रूप से भाजपा कमजोर हो गई है।
कांग्रेस आक्रामक क्यों दिख रही!
राजनीति में यह नई बात नहीं है, समय और रणनीति के हिसाब से पलड़ा कभी हल्का, तो कभी भारी होता रहता है। कभी आक्रामक दिख रही पार्टी को रक्षात्मक भी होना पड़ता है और फिलहाल कांग्रेस आक्रामक है। जिस तरह से या जिन हालात में विधानसभा से 15 विधायकों को निलंबित किया गया है, उसकी प्रशंसा नहीं की जा सकती, पर आज के समय में सत्ता के लिए जिस तरह की प्रतिस्पर्द्धा चल पड़ी है, उससे अगर कोई बचेगा,तो सियासत में कहां बचेगा,सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है।
आम चुनाव और सियासी उठापटक
इसमें कोई शक नहीं है कि हिमाचल में कांग्रेस के खेमे में असंतोष पल रहा था, इसी वजह से एक मंत्री विक्रमादित्य ने इस्तीफा दे दिया। ध्यान रहे, विक्रमादित्य कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे वीरभद्र सिंह के पुत्र हैं और उनके जाने से कांग्रेस को नुकसान तय है, अतः पार्टी नेतृत्व बीच- बचाव में जुट गया है। मुख्यमंत्री सुक्ख ने भी कह दिया है कि ‘विक्रमादित्य सिंह का इस्तीफा स्वीकार करने का कोई सवाल ही नहीं है। विक्रमादित्य मेरे छोटे भाई जैसे हैं और उनकी सभी शिकायतें दूर की जाएंगी। कहना न होगा कि शिकायतें अगर पहले ही दूर कर दी जातीं, तो कांग्रेस इस मुसीबत में नहीं पड़ती। सरकार फिलहाल बचा लेने के बाद कांग्रेस खेमे में खुशी है और कहा जा रहा है कि भाजपा की साजिश को नाकाम कर दिया गया, पर इतिहास गवाह है, जहां भी विरोधियों ने ऐसे संतोष का परिचय दिया है, भाजपा ने वहीं अपनी सत्ता का महल खड़ा किया है। खैर, आम चुनाव सामने है और चौंकाने वाली सियासी उठापटक देखने के लिए तैयार रहना चाहिए।
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