प्रकाश मेहरा
नई दिल्ली: सतरहवीं लोकसभा के आखिरी सत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह कहकर आम चुनाव का शंखनाद कर दिया है कि भारतीय जनता पार्टी को 370 और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) को 400 से ज्यादा सीटें आएंगी। अपने संबोधन में प्रधानमंत्री तीसरे कार्यकाल को लेकर काफी आश्वस्त दिख रहे थे, साथ ही उन्होंने विपक्ष पर खूब हमले भी किए। हालांकि, विपक्ष को घेरने के बजाय यदि वह अपनी सरकार के रिपोर्ट-कार्ड को ज्यादा वक्त देते, तो ज्यादा अच्छा होता। वह बता सकते थे कि बीते पांच या दस वर्षों में किन-किन मोचर्चों पर उनकी सरकार ने क्या कुछ हासिल किया, किन- किन मोर्चों पर उनको मुश्किलें पेश आईं, उनका सामना उन्होंने किस तरह से किया और अगले पांच या दस साल वह सत्ता में बने रहते हैं, तो उनका दृष्टिकोण क्या होगा ? ऐसा नहीं है कि उन्होंने इन मुद्दों पर बात नहीं की, जैसा विपक्ष का आरोप है, लेकिन उन्होंने ज्यादा समय विरोधी दलों पर खर्च किए, यह बात भी सही है।
एकजुट विपक्ष बीजेपी को चुनौती दे सकता है ?
बहरहाल, सवाल यह है कि क्या प्रधानमंत्री ने सीटों का जो आकलन किया है, वह सिर्फ इस बात का संकेत है कि भाजपा अपने तीसरे कार्यकाल को लेकर पूरी तरह आश्वस्त है या वह उन अटकलों पर भी विराम लगाना चाहते हैं, जिनमें कहा जा रहा है कि एकजुट विपक्ष उनको चुनौती दे सकता है? सवाल यह भी है कि क्या भाजपा को अकेले 370 सीटें आ सकती हैं?
सबसे पहली बात, कोई नेता अपनी पार्टी के बारे में बढ़-चढ़कर ही बोलता है। छोटे-छोटे दल के नेता भी यह नहीं कहते कि चुनाव में उनको हार का सामना करना पड़ सकता है या उनकी सीटें कम आ रही हैं।
संभवतः इसलिए सोमवार को सदन में 370 का नंबर दिया गया हो सकता है, ताकि लोगों को लगे कि भाजपा भारी बहुमत के साथ लौट रही है। मगर प्रधानमंत्री की इस संख्या के पीछे आखिर क्या गणित है ?
भारतीय राजनीति में 370 सीटें जीतना आसान!
भारतीय राजनीति में किसी एक दल द्वारा 370 लोकसभा सीटें जीतना कोई मामूली बात नहीं है। यह बेहद मुश्किल लक्ष्य है, पर नामुमकिन भी नहीं। इससे पहले कांग्रेस 1957 और 1984 के आम चुनावों में यह कारनामा कर चुकी है। फिर 2014 और 2019 के चुनाव नतीजों को देखकर 370 सीटें जीतने के कयास गलत नहीं जान पड़ते। उल्लेखनीय है कि 2014 के चुनाव में किसी ने नहीं सोचा था कि कोई एक दल बहुमत के साथ लोकसभा पहुंचेगा, क्योंकि बीते ढाई दशकों में ऐसा नहीं हुआ था। और, 2019 में यह नहीं सोचा गया था कि भाजपा 272 सीटों के अपने आंकड़े को पीछे छोड़कर 300 पार कर जाएगी।
मोदी के विश्वास की बड़ी वजह
प्रधानमंत्री मोदी के इस विश्वास की दो बड़ी वजह हो सकती है। पहली, साल 2023 के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने शानदार जीत दर्ज की है। विशेषकर मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ का परिणाम तो कल्पना से भी बाहर था। दूसरी वजह, रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा ने लोगों में एक नए जोश का संचार किया है। अंतरिम बजट में ही जिस तरह से आने वाले कुछ महीनों को लेकर नीतियों का एलान किया गया है, वह संकेत है कि भाजपा अपनी जीत को लेकर काफी आश्वस्त है।
विपक्षी एकता की बात
भाजपा इसलिए भी किसी अनिश्चय में नहीं है, क्योंकि जिस विपक्षी एकता की बात 2023 के मध्य से चल रही थी, उसमें दरार पड़ती दिख रही है। तमाम विपक्षी पार्टियां अपने-अपने ढंग से चुनाव लड़ने को तैयार हैं और कांग्रेस से उनकी खींचतान चल रही है। फिर, जहां-जहां भारतीय जनता पार्टी के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती थीं, वहां पार्टी ने अपने अनवरत प्रयासों से खुद को मजबूत बना लिया है, फिर चाहे वह महाराष्ट्र हो या बिहार।
यह बात स्पष्ट है कि आम चुनाव यदि राज्य-दर- राज्य होते हैं, यानी राज्य के मुद्दे हावी होते हैं और राष्ट्रीय मसले गौण रहे, तो भाजपा के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं, लेकिन यदि पूरा चुनाव राष्ट्रीय मुद्दों पर और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व पर केंद्रित हो जाए, तो भाजपा को वहां भी सफलता मिलने का भरोसा हो सकता है, जहां वह कमजोर स्थिति में है।
क्या इस बार बीजेपी 400 पार?
फिलहाल भाजपा यही चाह रही होगी कि उत्तर और पश्चिम के राज्यों में, जहां उसका सीधा मुकाबला कांग्रेस से है, और उत्तर प्रदेश व बिहार में, जहां कुछ क्षेत्रीय पार्टियां भी हैं, वह पिछली बार की तरह 90 फीसदी सीटें अपने हिस्से में करे। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, हरियाणा, गुजरात, असम, कर्नाटक जैसे राज्यों में भाजपा पुराने प्रदर्शन को दोहराते हुए 225 से 250 सीटें जीतने की उम्मीद कर रही होगी। इसके बाद, तुलनात्मक रूप से कमजोर पश्चिम बंगाल, ओडिशा, महाराष्ट्र जैसे राज्यों में वह न सिर्फ अपनी सीटें बचाने, बल्कि कुछ नई सीटों पर कब्जा जमाने की रणनीति पर काम कर रही होगी। इन सबसे वह 300 सीटों के बेहद करीब पहुंच सकती है। इसके बाद तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु केरल जैसे राज्यों में वह सहयोगी दलों की मदद से 25-30 फीसदी सीटें हासिल करने का सपना देख रही होगी। संभवतः इस तरह वह अपने लिए 350 सीटों का गणित बिठा रही होगी, हालांकि इसमें उसे कितनी सफलता मिलेगी, इसके बारे में अभी साफ- साफ नहीं कहा जा सकता।
पीएम मोदी ने विपक्ष पर साधा निशाना
एक बात और, सोमवार के अपने वक्तव्य में प्रधानमंत्री ने कांग्रेस पर ज्यादा हमला किया और कुछ हद तक राजद, झामुमो, द्रमुक जैसे उन दलों को घेरने की कोशिश की, जो कांग्रेस के साथ मजबूती से खड़े हैं। उन्होंने अन्य क्षेत्रीय पार्टियों के बारे में कुछ ज्यादा नहीं कहा। एक तरह से वह उन दलों को संदेश देना चाह रहे होंगे कि अगर वे अब भी कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ेंगे, तो देश की सबसे पुरानी पार्टी की तरह उनकी भी नैया डूब सकती है। यह उनको अपने पाले में बुलाने का मूक निमंत्रण भी हो सकता है।
मजबूत नेतृत्व और स्पष्ट नजरिया
स्पष्ट है, आम चुनाव में अब बहुत दिन शेष नहीं है, और दोनों मोचों की बिसात कमोबेश बिछ चुकी है। हालांकि, हम एक तरफ सुगठित सेना देख रहे हैं, जिसके पास एक मजबूत नेतृत्व और स्पष्ट नजरिया है, जबकि उसे चुनौती देने वाले मोर्चे में फिलहाल काफी उथल-पुथल है। ऐसे में, यदि विरोधी खेमा नहीं चेता, हालांकि अब समय उसके पास बहुत कम बचा है, तो प्रधानमंत्री ने सोमवार को जो सदन में कहा है, वह यदि सच हो जाए, तो आश्चर्य नहीं होगा।
एक तरफ सुगठित सेना है,जिसके पास मजबूत नेतृत्व और स्पष्ट नजरिया है, जबकि विरोधी मोर्चे में उथल-पुथल है। ऐसे में प्रधानमंत्री का वक्तव्य यदि सच हुआ, तो आश्चर्य न होगा: प्रकाश मेहरा