नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले को लेकर सुरक्षा एजेंसियों को बड़ी कामयाबी मिली है. मुठभेड़ में मारे गए तीनों आतंकियों की पहचान पाकिस्तानी नागरिकों के रूप में हो गई है. इनमें एक लाहौर का निवासी था, जबकि दूसरा पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) से निकला. तीसरे की भी पाकिस्तानी नागरिकता की पुष्टि हो रही है. सूत्रों के अनुसार, आतंकियों के पास से पाकिस्तानी पहचान पत्र (ID) और लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े ट्रेनिंग वीडियो बरामद हुए हैं. जांच में सामने आया है कि ये तीनों आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के सक्रिय सदस्य थे और पिछले तीन महीनों से भारत में छिपे हुए थे.
‘ऑपरेशन महादेव’ बना आतंकियों का काल
22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम की बैसरन घाटी में हुए आतंकी हमले में 26 बेगुनाहों की जान गई थी. तब से पूरे देश में आक्रोश था. अब इस हमले की गुत्थी सुलझ चुकी है और इसके पीछे जो कहानी निकली, वो चौंका देने वाली है. सुरक्षा बलों ने हाल ही में श्रीनगर के पास लिदवास इलाके में एक मुठभेड़ के दौरान तीन आतंकियों को मार गिराया था. ये कार्रवाई ‘ऑपरेशन महादेव’ के तहत हुई थी. लेकिन सरकार तब तक चुप रही, जब तक यह पक्का नहीं हो गया कि मारे गए आतंकी वही हैं जिन्होंने पहलगाम में नरसंहार किया था.
कैसे हुई पुष्टि?
मुठभेड़ में तीन आतंकियों के पास से एम9 और दो AK-47 रायफलें बरामद हुईं. इन हथियारों को खास विमान से श्रीनगर से चंडीगढ़ लाया गया. वहीं, अहमदाबाद से एक मशीन मंगाई गई, जो बुलेट केसिंग मिलान के लिए जरूरी थी. चंडीगढ़ लैब में टेस्ट फायरिंग की गई. गोली के खोल (casings) बैसरन घाटी से मिले सबूतों से 99% मेल खाते निकले. इसका मतलब साफ था. मारे गए आतंकी ही पहलगाम के कसाई थे.
पहचान कैसे हुई?
सुरक्षा बलों ने कुछ स्थानीय मददगारों को पहले ही गिरफ्तार कर लिया था. उन्हें पहचान के लिए लिदवास लाया गया. उन्होंने मारे गए आतंकियों की पहचान की. ये थे सुलेमान, अफगानी और जिबरान, तीनों पाकिस्तान से. सूत्रों के अनुसार, इनमें से एक लाहौर से था और दूसरा पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) से. लश्कर-ए-तैयबा के ट्रेनिंग वीडियो से भी यह साफ हुआ कि ये तीनों उसी संगठन से जुड़े थे.
कैसे रोकी गई इनकी वापसी?
हमले के तुरंत बाद अमित शाह खुद कश्मीर पहुंचे थे. उन्होंने स्पष्ट निर्देश दिए थे कि कोई भी आतंकी पाकिस्तान वापस न लौट सके. सुरक्षा एजेंसियों ने करीब 8 किलोमीटर लंबा रास्ता चिन्हित किया, जिससे आतंकी सीमा पार कर सकते थे. फिर उस पूरे रास्ते को कड़ी सुरक्षा में लिया गया. सुरंगों को खोजकर उन्हें बंद किया गया, ताकि आतंकी भाग न सकें. तीनों आतंकी तीन महीने तक छिपे रहे. लेकिन जब मुठभेड़ हुई, तब पता चला कि उनके हथियारों से गोली आखिरी बार बैसारन में चली थी. इसका मतलब था कि इन तीन महीनों में वे एक भी हमला नहीं कर सके, और न ही उन्हें कोई मौका मिला भागने का.