इंदौर,31 मई (आरएनएस)। वंशवाद को लेकर भाजपा कांग्रेस को लगतार घेरती रही है। कुछ दिन पहले हुई भाजपा की बड़ी बैठक में स्वयं प्रधानमंत्री ने कहा था कि परिवारवाद की राजनीति से धोखा खाने वाले लोगों का भरोसा भाजपा है। इंदौर की स्थानीय राजनीति की बात करें तो यहां पार्टी लाइन और बड़े नेताओं की विचारधारा के विपरीत परिवारवाद तेजी से बढ़ा है। खासकर विधानसभा क्षेत्र-दो में। जहां चार-पाँच चुनाव लड़ चुके पार्षद या तो खुद टिकट लाने में जुटे हैं या फिर खुद को पीछे करके बच्चों को टिकट दिलाने की जुगत में हैं। दूसरे विधानसभा क्षेत्रों में भी इस बात का जोर है लेकिन इंदौर-दो के मुकाबले थोड़ी कम है। इंदौर-दो निगम सीमा का सबसे वजनदार विधानसभा क्षेत्र,, जहां वार्ड से लेकर विधानसभा तक भाजपा सबसे मजबूत स्थिति में है। यह वही क्षेत्र है जहां इंदौर के सबसे पुराने, प्रतिभाशाली और प्रभावी पार्षद रहते हैं। आधी विधानसभा क्षेत्र के वार्डों में चुनाव जीत चुके चंदूराव शिंदे हों, मुन्नालाल यादव या फिर राजेंद्र राठौर और राजकपूर सुनहरे की बात करें। सभी को चुनाव लड़ते-लड़ते 25 साल से ज्यादा हो चुके हैं। इनमें सुनहरे ही हैं जो 2009 का चुनाव वल्लभनगर से हार चुके हैं। बाकी सभी अजेय हैं। 2004 से लगातार एमआईसी में हैं। राठौर सभापित भी रह लिए। फिर भी वार्डस्तर की राजनीति जारी है। 2022 के चुनव के लिए इनकी तैयारी पूरी है। वार्ड आरक्षण के बाद 2015 के वार्ड बदल चुके हैं। इसीलिए सभी को ऐसे वार्डों की तलाश है, जहां से चुनाव न सिर्फ लड़ा जा सके, बल्कि जीता भी जा सके। अंबेडकरनगर-नेहरुनगर, एमआईजी-एचआईजी, सुखलिया और जनता क्वार्टर में शिंदे पार्षद रह लिए। वैसे भी इन वार्डों में ऐसे काम रहे नहीं कि पार्षद के रूप में कोई उल्लेखनीय काम कर सके, इसीलिए नए वार्ड की तलाश है। स्वास्थ्य खराब है, फिर भी चुनाव की तैयारी है। पीछे हटने के लिए भी बेटे आनंद के लिए टिकट मांग रहे हैं। मुन्नालाल यादव को पहला टिकट 1994 में मिला था वार्ड दस से।
जहां उन्हें फुलविंदर गिल ने हराया था। 1999 में फिर उसी वार्ड से मौका मिला। 2009 में वार्ड-दस के टुकड़े हो गए। 2015 में यह चार वार्डों में बंट गया। 30, 31, 32 और 34 में। यादव 34 से पार्षद हैं लेकिन अब निशाना फिर वार्ड 21 पर है जो अब सामान्य पुरुष हो गया है। बेटे दीपेश को कारेाबार में लगा रखा है, राजनीति में सक्रिय कर रखा है अंतिक यादव को। हालांकि दीपेश भी चुनाव लडऩे के मूड में हैं। 1999 में भाजपा नेता कैलाश विजयवर्गीय ने शिंदे के अलावा राजेंद्र राौर और राजकपूर सुनहरे को भी पार्षद का टिकट दिलवाया था। राठौर सुखालिया, परदेशीपुरा, क्लर्क कालोनी, सुखालिया और लवकुशनगर में चुनाव जीत चुके हैं। खुद भी दावेदार हैं, अपनी कीमत पर बेटे प्रतीक को टिकट देने की मांग कर रहे हैं। राजकपूर सुनहरे 1999 में चुनाव हार गए थे। 2004 और 2015 में पार्षद बने। बेटा छोटा है, इसलिए खुद की याद परिवार में किसी दूसरे को टिकट दिलाने की मंशा है। इंदौर-दो के सबसे गुस्सैल नेता के रूप में लाल बहादुर वर्मा जाने जाते हैं। चिडिय़ाघर में अधिकारियों से मारपीट का मामला हो या फिर एमआईसी में टेबल तोडऩे का। लाल के तेवर हमेशा लाल ही रहे। फिर भी पार्टी में उनका वजन कायम है। 1999 और 2004 में पार्षद रहे। 2004 में एमआईसी मेम्बर बने। 2009 में खुद नहीं लड़ सके तो बहन यशोदा श्रीमान को टिकट दिला दिया। 2015 में जिस वार्ड से तैयारी की थी वहां से वैचारिक प्रतिद्वंद्वी चंदु शिंदे को टिकट मिला लेकिन लाल नहीं माने उन्होंने निर्दलीय चुनाव लडक़र शिंदे को चुनौती दी। बहन यशोदा श्रीमान को नेहरुनगर का पार्षद बनाकर छोड़ा। भले खुद ने समझौतावादी हार स्वीकार ली।
अनिल पुरोहित/अशफाक