- मूल निवासियों को मुफ्त इलाज का वादा
- चैरिटेबल अस्पताल या निजी अस्पताल जांच का विषय
सतीश मुखिया
मथुरा: देश को आजाद हुए लगभग 75 वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन आज भी आम जनता मूलभूत समस्याओं से ग्रसित है जिसमें स्वास्थ्य, शिक्षा और सुरक्षा मुख्य रूप से शामिल हैं केंद्र सरकार और राज्य सरकार द्वारा स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर बनाने हेतु अस्पतालों को 99 साल के लिए पट्टे पर जमीने दी जिसका कुछ दबंग और पूंजी पतियों ने फायदा उठाते हुए इन जमीनों के फर्जी तरीके से पट्टे अपने नाम करवा लिए जबकि वह उसके हकदार नहीं थे।
उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था नियमावली 1952 के नियम 115 D में अन्य आबादी स्थल आवंटन हेतु निम्न वत व्यवस्था वर्णित है: नियम 115D अन्य आबादी स्थल (1) 115 ट में निर्दिष्ट आबादी स्थलों को छोड़कर जो ग्राम सभा में निहित हैं वे निवास के प्रयोजनार्थ तथा चैरिटेबल उद्देश्यों या कुटीर उद्योग के गृह निर्माण के लिए निम्नलिखित वरीयता क्रम में आवंटित किए जा सकते हैं। भूमिहीन, खेतीहर मजदूर या ग्रामीण कारीगर जो इस गांव में रहता हो, भूमि धर या असामी जो गांव में रहता हो और जिसके पास 3.1 25 एकड़ से कम भूमि हो, गांव में रहने वाला कोई अन्य व्यक्ति (2) इस नियम के अंतर्गत आने वाले प्रत्येक आवंटी को भूमि के मोसूरी दर से लगान का 40 गुना धनराशि जमा करना होगा जो धनराशि गांव निधि के लेखा में जाएगी परंतु दान उत्तर(दान) उद्देश्य के लिए आवंटित स्थल के संबंध में कोई प्रीमियम नहीं लिया जाएगा।
इन तीनों निर्धारित वरीयता क्रम में संबंधित गांव का निवासी होना अनिवार्य है लेकिन ऊपर लिखे तीनों वरीयता क्रम में कहीं पर भी किसी ट्रस्ट को भूमि आवंटित करने हेतु व्यवस्था नहीं है बल्कि भूमिहीन, खेतिहर मजदूर, कारीगर, भूमिधर,अनुसूचित जाति या गांव में रहने वाला कोई अन्य व्यक्ति को ही दानोत्तर प्रयोजन या कुटीर उद्योग हेतु पात्र माना गया है। उस समय के प्रधान और ट्रस्ट के मध्य हुए एग्रीमेंट के अनुसार ट्रस्ट की प्रबंध कमेटी में दो व्यक्ति ग्राम सभा के सदस्य होंगे और उसमें यह भी उल्लेखित है कि इस अस्पताल में उक्त ग्राम के समस्त मूल निवासियों को आजीवन मुफ्त में इलाज दिया जाएगा और मुफ्त इलाज किए जाने की व्यवस्था बायलॉज में भी है लेकिन स्थल पर ग्राम वासियों ने बताया कि इस अस्पताल में मुफ्त में इलाज की सुविधा न देकर फीस ली जाती है हम तो हमेशा से इस अस्पताल में फीस देते आए हैं और यह स्पष्ट है उक्त अस्पताल चैरिटेबल ना होकर व्यावसायिक रूप से चल रहा है।
इस अस्पताल के पास एक एकड़ जमीन है ।उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम 1950 की धारा 122 ग के अधीन आवास स्थल हेतु आवंटित भूमिका केवल प्रपत्र 49 च में पट्टा विलेख दिए जाने का प्रावधान है राजस्व अभिलेखों में पट्टे दार का नाम अंकित किए जाने की कोई व्यवस्था नहीं है लेकिन नियम विपरीत खतौनी में ट्रस्ट का नाम अंकित कर दिया गया है जो नियम विरुद्ध है। अब सवाल यह उठता है कि जब यह स्पष्ट रूप से लिखा गया है कि जमीन ग्राम के मूल निवासी को ही मिलनी चाहिए तब शहर के पूंजी पति को किस तरह से इस भूमि का आवंटन हो गया यह समझ से बाहर है।
एक तरफ देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समाज की अंतिम पंक्ति में खड़े हुए व्यक्ति के विकास हेतु विभिन्न कार्य योजनाओं का संचालन कर रहे हैं लेकिन यह कार्य योजनाएं धरातल पर उतरने में असमर्थ दिखाई देती है। गरीबों के लिए आवंटित जमीनों को कैसे सरमायदारो द्वारा अपने प्रभाव और अधिकारियों व कर्मचारियों से मिली भगत करके कैसे उन पर कब्जा कर लिया है, यह सब जांच का विषय है। इस पूरे प्रकरण की देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा जांच कराई जानी चाहिए। क्या ऐसे होगा समाज के अंतिम व्यक्ति का विकास…