प्रकाश मेहरा
एग्जीक्यूटिव एडिटर
नई दिल्ली: कांवड़ यात्रा 2025 को लेकर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में लागू किए गए कुछ नियमों ने सियासी विवाद को जन्म दिया है। खास तौर पर, मुजफ्फरनगर में प्रशासन द्वारा कांवड़ यात्रा मार्ग पर ढाबों और दुकानों के मालिकों को अपनी पहचान, नाम, और लाइसेंस प्रदर्शित करने का निर्देश दिया गया है। इस फैसले का उद्देश्य कांवड़ियों की सुविधा और उनकी धार्मिक भावनाओं का सम्मान बताया गया, ताकि वे अपनी पसंद के अनुसार दुकानों से खरीदारी कर सकें। हालांकि, इस नियम को कुछ नेताओं और संगठनों ने भेदभावपूर्ण और सांप्रदायिक करार दिया, जिससे सियासी घमासान शुरू हो गया।
नाम-पहचान का नियम !
उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकार ने कांवड़ मार्ग पर दुकानों और ढाबों पर मालिक का नाम और पहचान पत्र प्रदर्शित करना अनिवार्य किया। मुजफ्फरनगर में इस नियम को लागू करने के लिए प्रशासन ने सख्ती दिखाई, जिसके तहत दुकानदारों की धार्मिक पहचान की जांच भी की गई।
समर्थकों का कहना है कि “यह नियम पारदर्शिता और कांवड़ियों की आस्था की रक्षा के लिए है, ताकि वे अपनी धार्मिक मान्यताओं के अनुसार खानपान का चयन कर सकें।”
कावड़ पर राजनीतिक बयानबाजी !
समाजवादी पार्टी के नेता एसटी हसन के बयान ने विवाद को और हवा दी। उन्होंने इसे योगी सरकार की सांप्रदायिक नीति करार दिया।बीजेपी नेताओं और मंत्रियों, जैसे कपिल देव अग्रवाल, ने कहा कि “यह नियम कांवड़ियों के धर्म को “भ्रष्ट” होने से बचाने के लिए है। उनका दावा है कि कुछ लोग “नाम बदलकर” ढाबे चला रहे हैं, जिससे पारदर्शिता जरूरी है।
कांग्रेस ने इसे संविधान के समानता और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों के खिलाफ बताया। कुछ नेताओं ने इसे “तुष्टीकरण की सियासत” से जोड़ा।
धार्मिक नियमों का पालन महत्वपूर्ण
कांवड़ यात्रा सावन माह में शिव भक्तों द्वारा की जाने वाली एक महत्वपूर्ण तीर्थ यात्रा है, जिसमें लाखों भक्त गंगा जल लेकर शिव मंदिरों में जलाभिषेक करते हैं। इस यात्रा के दौरान कांवड़ियों के लिए शुद्धता और धार्मिक नियमों का पालन महत्वपूर्ण है, जैसे मांसाहार और नशे से दूरी।
प्रशासन का तर्क है कि पहचान पत्र प्रदर्शित करने का नियम कांवड़ियों की धार्मिक भावनाओं को ध्यान में रखकर बनाया गया, लेकिन इसे सांप्रदायिक रंग देने के प्रयासों की आलोचना भी हो रही है। मेरठ की मेयर ने गलत पहचान के खिलाफ सख्त कार्रवाई की चेतावनी दी, जिसने विवाद को और बढ़ाया।
सियासी घमासान का कारण
विपक्ष का आरोप है कि “यह नियम धार्मिक आधार पर समाज को बांटने की कोशिश है, जो चुनावी लाभ के लिए किया जा रहा है।” विपक्ष इसे संविधान की मूल भावना (समानता और धर्मनिरपेक्षता) के खिलाफ मानता है, जबकि सत्ताधारी दल इसे आस्था की रक्षा का कदम बताते हैं।
कांवड़ यात्रा 2025 के लिए लागू किए गए पहचान संबंधी नियमों ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में सियासी तूफान खड़ा कर दिया है। यह विवाद धार्मिक आस्था, प्रशासनिक पारदर्शिता, और संवैधानिक मूल्यों के बीच टकराव का प्रतीक बन गया है। जहां एक पक्ष इसे कांवड़ियों की सुविधा और आस्था की रक्षा का कदम बता रहा है, वहीं दूसरा पक्ष इसे सांप्रदायिक और भेदभावपूर्ण नीति करार दे रहा है। यह मुद्दा आगे भी सियासी और सामाजिक बहस का केंद्र बना रहेगा।