प्रकाश मेहरा
एग्जीक्यूटिव एडिटर
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना अंतरिम आदेश सुनाया। चीफ जस्टिस बी.आर. गवई की अगुवाई वाली बेंच (जस्टिस ए.जी. मसीह के साथ) ने पूरे कानून पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, लेकिन कुछ विवादास्पद प्रावधानों पर अस्थायी रोक लगा दी। अदालत ने कहा कि “किसी भी संसदीय कानून की संवैधानिकता के पक्ष में हमेशा अनुमान (presumption) होता है, और पूर्ण रोक केवल “दुर्लभतम मामलों” (rarest of rare cases) में ही लगाई जा सकती है।
यह फैसला 100 से अधिक याचिकाओं पर आधारित है, जिनमें असदुद्दीन ओवैसी, डीएमके, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) और अन्य शामिल हैं। याचिकाकर्ताओं ने इसे “मुस्लिम संपत्तियों का क्रिप्टिक अधिग्रहण” (creeping acquisition) बताया था, जबकि केंद्र सरकार ने इसे “संपत्तियों पर अतिक्रमण रोकने” का जरूरी कदम कहा। अदालत ने स्पष्ट किया कि “यह अंतरिम आदेश याचिकाकर्ताओं के अधिकारों को प्रभावित नहीं करेगा, और पूरी चुनौती पर बाद में सुनवाई होगी।
वक्फ बाय यूजर (Waqf by User) का क्या होगा ?
अदालत ने वक्फ बाय यूजर की अवधारणा को पूरी तरह समाप्त करने वाले प्रावधान पर आंशिक रोक लगाई। पहले के वक्फ (रजिस्टर्ड या अनरजिस्टर्ड) को डिनोटिफाई (denotified) नहीं किया जा सकेगा, जब तक कि सक्षम ट्रिब्यूनल या हाई कोर्ट से अंतिम फैसला न हो। कलेक्टर को यह तय करने का अधिकार नहीं दिया गया कि कोई संपत्ति वक्फ है या सरकारी। इससे पुरानी वक्फ संपत्तियां (जो लंबे समय से धार्मिक उपयोग में हैं) सुरक्षित रहेंगी।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि 1923 से ही रजिस्ट्रेशन जरूरी था, और वक्फ बाय यूजर की मान्यता सिर्फ 1995 के कानून से मिली थी, जो अब हटाई जा सकती है। रजिस्ट्रेशन अनिवार्य रहेगा (1995 से ही था), लेकिन मौजूदा वक्फों का स्टेटस बदलने पर रोक।
किन फैसलों पर रोक लगी ?
अदालत ने निम्नलिखित प्रमुख प्रावधानों पर अस्थायी रोक लगाई, जब तक नियम न बनें या पूरी सुनवाई न हो प्रावधान (सेक्शन) क्यों रोका गया?
सेक्शन 3(r) में वक्फ बनाने के लिए व्यक्ति को कम से कम 5 साल से “प्रैक्टिसिंग मुस्लिम” होना जरूरी। मनमाना इस्तेमाल हो सकता है “प्रैक्टिसिंग मुस्लिम” की परिभाषा के लिए राज्य सरकारों को नियम बनाने होंगे।
सेक्शन 2(c) में अनरजिस्टर्ड वक्फ को वक्फ न मानना। पुराने वक्फों (विशेषकर वक्फ बाय यूजर) को प्रभावित करेगा स्टेटस बदलने पर रोक। सेक्शन 3C में जिला कलेक्टर को वक्फ vs सरकारी संपत्ति तय करने का अधिकार। न्यायिक प्रक्रिया का उल्लंघन ट्रिब्यूनल या कोर्ट ही फैसला करेगा। कोई बेदखली या रिकॉर्ड बदलाव नहीं।
सेक्शन 23 के तहत वक्फ बोर्ड/काउंसिल में पदेन सदस्य (ex-officio)। ये सदस्य मुस्लिम समुदाय से ही होंगे। अन्य (सेक्शन 9, 14, 36, 104, 107, 108) गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति और अन्य। राज्य स्तर पर 3 से ज्यादा नहीं, केंद्रीय परिषद में 4 से ज्यादा नहीं। CEO जितना संभव हो मुस्लिम हो।
कौन से फैसले बरकरार रहे ?
वक्फ अधिनियम 2025 (8 अप्रैल 2025 से लागू) जारी रहेगा। रजिस्ट्रेशन अनिवार्य (1923 से परंपरा), और संपत्तियों का सर्वे/इन्वेंटरी रखना जरूरी। गैर-मुस्लिम सदस्यों की अनुमति लेकिन सीमित संख्या के साथ इससे “इनक्लूसिविटी” बनी रहेगी, लेकिन मुस्लिम बहुमत सुनिश्चित।
महिलाओं के हित (मुस्लिम महिलाओं को बोर्ड में आरक्षण), पारदर्शिता, और अतिक्रमण रोकने वाले नियम बरकरार। अदालत ने कहा कि वक्फ निर्माण इस्लाम की “आवश्यक धार्मिक प्रथा” नहीं है, लेकिन संपत्ति प्रबंधन का अधिकार (अनुच्छेद 26) प्रभावित नहीं होगा।
क्या है कानून का उद्देश्य ?
वक्फ संपत्तियों (लगभग 9 लाख, 8 लाख एकड़) में पारदर्शिता लाना, दुरुपयोग रोकना, और डिजिटल रजिस्ट्रेशन (उम्मीद पोर्टल) अनिवार्य करना। मई 2025 में 3 दिनों की सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित। कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी ने याचिकाकर्ताओं का पक्ष रखा, जबकि केंद्र ने कहा कि “प्रावधान “घोर असंवैधानिक” नहीं हैं।
यह अंतरिम आदेश है अंतिम फैसला बाद में आएगा। अदालत ने नई याचिकाएं स्वीकार न करने और वक्फ बोर्ड में नई नियुक्तियां न करने का भी आदेश दिया।