शिमला : प्रदेश हाईकोर्ट ने हिमाचल प्रदेश पथ परिवहन निगम के कर्मचारी के वित्तीय लाभ समय पर अदा नहीं करने पर कड़ा रुख अपनाया है। हाईकोर्ट की खंडपीठ ने इसके लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ जांच करने के आदेश जारी किए हैं। अदालत ने निगम को आदेश दिए हैं कि दोषी अधिकारियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई की जाए और पहली जनवरी 2024 तक इसे पूरा किया जाए। इसके अलावा अदालत ने बकाया राशि पर सात फीसदी ब्याज अदा करने के आदेश दिए हैं। अदालत ने स्पष्ट कि ब्याज की राशि दोषी अधिकारी से वसूली जाए।
अदालत ने अपने आदेशों की अनुपालना के लिए मामले की सुनवाई पहली जनवरी 2024 को निर्धारित की है। खंडपीठ ने पथ परिवहन निगम को यह आदेश जारी किए है कि वह प्रार्थी को दी गई बकाया राशि पर 7:30 फीसदी ब्याज भी अदा करें। याचिकाकर्ता रविंद्रा ने नियमित होने के बाद उसे बकाया राशि अदा नहीं करने पर अदालत के समक्ष याचिका दायर की थी। याचिका में आरोप लगाया गया था कि 25 अगस्त 2006 को उसकी सेवाओं को सेवादार के पद पर नियमित किया गया। लेकिन उसके बकाया राशि का भुगतान नहीं किया गया था। अदालत ने अनुपालना याचिका में 16 दिसंबर 2022 को आदेश पारित किए थे कि याचिकाकर्ता की देय राशि का छह माह के भीतर भुगतान किया जाए।
अदालत ने स्पष्ट किया था कि निगम की ओर से यदि छह माह के भीतर इस राशि का भुगतान करने में विफल रहता है तो उस स्थिति में देय राशि पर सात फीसदी ब्याज देना होगा। याचिकाकर्ता की ओर से अदालत को यह बताया गया कि पथ परिवहन निगम ने पहली जुलाई 2023 को देय राशि का चेक तैयार किया जबकि हाईकोर्ट के आदेशानुसार 16 जून 2023 को छह माह का समय पूरा हो गया था। अदालत ने पाया कि निगम इस राशि का भुगतान करने में विफल रहा है तो ऐसी स्थिति में याचिकाकर्ता को देय राशि पर ब्याज अदा करना होगा। अदालत ने इसे अधिकारियों की लापरवाही का मामला पाते हुए निगम को यह आदेश जारी किए।
अधिनियम का पालन नहीं करने पर जैविक बोर्ड का सदस्य सचिव तलब
हिमाचल प्रदेश जैविक विविधता अधिनियम 2002 के कार्यान्वयन नहीं करने को हाईकोर्ट ने गंभीरता से लिया है। अदालत ने जैविक बोर्ड के सदस्य सचिव को अदालत के समक्ष तलब किया है। अदालत ने सचिव से पूछा है कि अधिनियम की धारा 23 और 24 में राज्य जैव विविधता बोर्ड से अनुमति लेने पर दोषी कंपनियों के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई है। मामले की सुनवाई 13 जुलाई को निर्धारित की गई है। हाईकोर्ट की खंडपीठ ने सदस्य सचिव से पूछा है कि दोषी कंपनियों के खिलाफ अधिनियम की धारा 55 (2) में कार्रवाई क्यों नहीं की गई है। मामले की सुनवाई के दौरान अदालत को बताया गया कि यदि कोई कंपनी जैविक संसाधनों को बिना स्वीकृति से इस्तेमाल करती है तो उस स्थिति में अधिनियम की धारा 56 में एक लाख रुपये जुर्माने की सजा का प्रावधान है।
याचिकाकर्ता ने अदालत को सुझाव दिया था कि राज्य सरकार की ओर से दिए जाने वाले नोटिस में ये सारे आदेश होने चाहिए। संबंधित कंपनियों को आदेश दिए जाए कि प्रदेश के जैविक संसाधनों का इस्तेमाल करने के लिए राज्य जैव विविधता बोर्ड से स्वीकृति ली जाए। अदालत ने सरकार को बाकी सुझावों की अनुपालना करने के आदेश दिए थे। पीपल फॉर रिस्पांसिबल गोर्वनैंस ने जैविक विविधता अधिनियम 2002 के कार्यान्वयन के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। आरोप लगाया गया है कि राज्य सरकार इस अधिनियम के प्रावधानों को लागू करने में पूरी तरह से विफल रही है। यह अधिनियम राज्य को स्वयं के जैविक संसाधनों का उपयोग करने के लिए उनके संप्रभु अधिकारों को मान्यता प्रदान करता है। अधिनियम ने जैव संसाधनों तक पहुंच और विनियमित करने के लिए त्रिस्तरीय संरचना का प्रावधान किया गया है। इसमें राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण, राज्य जैव विविधता बोर्ड और स्थानीय स्तर पर जैव विविधता प्रबंधन समितियों का गठन किया गया है।