भारत में अभी तक कोई भी आम चुनाव ऐसा नहीं हुआ है, जिसमें कोई तीसरा मोर्चा नहीं हो। हर चुनाव में दो बड़ी राष्ट्रीय पार्टियों के बीच मुकाबले में एक तीसरा मोर्चा होता है। इस बार ऐसा लग रहा था कि भाजपा के खिलाफ सभी पार्टियां एकजुट हो सकती हैं। लेकिन ऐसा नहीं है। कई पार्टियां ऐसी हैं, जिनकी भाजपा से ज्यादा खुन्नस कांग्रेस पार्टी से दिख रही है। अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी ऐसी ही पार्टियों में से एक है, जिसका मकसद कांग्रेस को कमजोर करना दिख रहा है। पता नहीं अपनी किसी रणनीति के तहत सपा ऐसा कर रही है या किसी अदृश्य ताकत के कहने पर ऐसा कर रही है? सोचें, सपा एक समय में कांग्रेस की सहयोगी रही है और हमेशा दोनों पार्टियों में सद्भाव रहा है। मनमोहन सिंह की सरकार से जब वामपंथी पार्टियों ने समर्थन वापस लिया था तब सपा ने ही सरकार बचाई थी।
अब अखिलेश यादव ने तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव के साथ मिल कर गैर भाजपा और गैर कांग्रेस पार्टियों को इक_ा करने की रणनीति पर बात की है। दोनों नेताओं की दिल्ली में मुलाकात हुई और कांग्रेस को छोड़ कर बाकी दलों की एकजुटता के बारे में चर्चा हुई। केसीआर की बात समझ में आती है क्योंकि तेलंगाना में कांग्रेस अब भी एक ताकत है और वह टीआरएस के वोट काट सकती है। लेकिन उत्तर प्रदेश में तो कांग्रेस कोई ताकत नहीं है! ऐसा लग रहा है कि प्रियंका गांधी वाड्रा की सक्रियता और यूपी में कांग्रेस के अकेले खड़े होने के प्रयास से अखिलेश परेशान हैं। ऐसी परेशानी हर प्रादेशिक क्षत्रप को है क्योंकि ज्यादातर प्रादेशिक पार्टियां कांग्रेस का ही वोट लेकर मजबूत हुई हैं। इसलिए जिस राज्य में भी कांग्रेस अपना संगठन मजबूत करने का प्रयास शुरू करती है, वहां का क्षत्रप नाराज हो जाता है। इन प्रादेशिक क्षत्रपों से अलग आम आदमी पार्टी की राजनीति है, जिसको हर जगह कांग्रेस की जगह लेनी है। सो, सपा से लेकर आप और टीआरएस से लेकर तृणमूल तक सब परदे के पीछे किसी तीसरे मोर्चे की रणनीति पर काम कर रहे हैं।