नई दिल्ली : पाकिस्तान में बहुत कुछ बदल रहा है. एक तरफ आर्मी चीफ फील्ड मार्शल असिम मुनीर भारत को आंखें दिखा रहे हैं, तो दूसरी तरफ उनके दुश्मन मौलाना फजलुर रहमान भारत आने को बेताब हैं. जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम (एफ) के चीफ मौलाना रहमान शांति का संदेश लेकर नई दिल्ली आना चाहते हैं. अगर गहराई से देखें, तो ये सिर्फ दोस्ती का ड्रामा नहीं, बल्कि पाकिस्तान के अंदर पड़ रही दरार का बड़ा संकेत है.
सबसे पहले समझिए कि मौलाना फजलुर रहमान कौन हैं. ये पश्तून समुदाय के बड़े नेता हैं, डेरा इस्माइल खान से आते हैं. पाकिस्तान की राजनीति में इनका रोल हमेशा से कंट्रोवर्शियल रहा. कभी तालिबान से नजदीकी, कभी अमेरिका के खिलाफ बयानबाजी, लेकिन अब ये भारत की तरफ हाथ बढ़ा रहे हैं. उनके करीबी सीनेटर कमरान मुरतजा ने एक टीवी इंटरव्यू में खुलासा किया कि मौलाना का ‘पीस मैसेज’ उन्होंने एक भारतीय डिप्लोमैट को पहुंचाया. एंकर मोईद पिरजादा भी वहां थे, जिन्होंने कन्फर्म किया कि ऐसा कुछ हुआ है. खुफिया सूत्रों के मुताबिक, ये पाकिस्तान की इनसाइड पॉलिटिक्स में दरार का सबूत है.
इसके पीछे की कहानी समझिए
पाकिस्तान के आर्मी चीफ असिम मुनीर पंजाबी बैकग्राउंड से हैं और सेना को अपनी मुट्ठी में कसकर पकड़े हुए हैं. लेकिन मुनीर के आने के बाद पश्तून कम्युनिटी में गुस्सा भड़क रहा है. खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान के लोग महसूस कर रहे हैं कि उनकी आवाज दब रही है. सूत्रों ने सीएनएन-न्यूज18 को बताया कि पाकिस्तानी आर्मी और आईएसआई में पश्तून समुदाय से आने वाले ऑफिसर्स मौलाना की पहल को सपोर्ट कर रहे हैं. क्योंकि ये मुनीर की पावर को चैलेंज करने का तरीका है. मुनीर भारत के खिलाफ हार्डलाइन स्टैंड ले रहे हैं. वे कश्मीर की बात करते हैं, आतंकवाद, बॉर्डर टेंशन पर बोलते हैं, लेकिन मौलाना उल्टा भारत से बातचीत की बात कर रहे हैं. ये तो सीधा मुनीर को नीचा दिखाने जैसा है.
पूरी कहानी का पश्तून कनेक्शन
मौलाना फजलुररहमान खुद पश्तून हैं और उनका सपोर्ट बेस उसी इलाके में है जहां तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) जैसी ग्रुप्स एक्टिव हैं. लेकिन अब वो शांति की बात कर रहे हैं. साफ है कि पंजाबी और पश्तूनों के बीच एक दीवार सी खींच गई है. मुनीर की ताकत बढ़ने से पश्तूनों को लग रहा कि उन्हें साइडलाइन किया जा रहा. कुछ रिपोर्ट्स कहती हैं कि आर्मी में पश्तून ऑफिसर्स असंतुष्ट हैं, और मौलाना का ये स्टेप उनके लिए एक सिम्बॉलिक चैलेंज है. अगर मौलाना भारत आते हैं, तो ये न सिर्फ न्यू दिल्ली को पाकिस्तान की डिवीजन दिखाएगा, बल्कि मुनीर को भी कुरसी हिलाएगा.
पहले भी आ चुके हैं भारत
मौलाना 2002-2003 में भी भारत आए थे, जब रिश्ता उनता खराब नहीं था. तब उन्होंने बाल ठाकरे से मुलाकात की थी. एनडीए के नेताओं से मिले थे. लेकिन उस वक्त भी उनका मकसद क्लियर नहीं था. मगर आज उनकी कोशिशों का एक खास मतलब है. पाकिस्तान पॉलिटिकल क्राइसिस से जूझ रहा है. इकोनॉमी डावांडोल है. इलेक्शन के नाम पर ड्रामा हो रहा है. टीटीपी के हमले सेना पर लगाता हो रहे हैं. बलूच विद्रोहियों की ताकत बढ़ती जा रही है. पश्तून चाहते हैं कि भारत से रिश्ता बेहतर हो. लेकिन अगर भारत इसमें सीधे दखल देता है तो लगेगा कि भारत पाक की डिवाइड एंड रूल पॉलिसी को सपोर्ट कर रहा है. खुफिया सोर्सेज कहते हैं कि ये मौलाना का मल्टीपल ऑब्जेक्टिव है – भारत की रिएक्शन टेस्ट करना, और पाकिस्तान में मुनीर को चैलेंज देना.