प्रकाश मेहरा
आध्यात्म डेस्क
नई दिल्ली: महाभारत की रचना का प्राचीन भारतीय साहित्य में विशेष महत्व है। यह महाकाव्य, जिसे विश्व का सबसे लंबा काव्य माना जाता है, महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित है। इसकी रचना और श्रीगणेश द्वारा इसे लिखने की कथा भी उतनी ही रोचक है।
कैसे हुई महाभारत की रचना
महर्षि वेदव्यास, जिन्हें कृष्णद्वैपायन व्यास भी कहा जाता है, महाभारत के रचयिता हैं। उन्होंने इस महाकाव्य की रचना अपने मन में पूर्ण कर ली थी, लेकिन इसे लिखित रूप देने के लिए उन्हें एक योग्य लेखक की आवश्यकता थी। व्यासजी ने इस कार्य के लिए भगवान गणेश को चुना, क्योंकि वे बुद्धि, ज्ञान और लेखन के देवता माने जाते हैं।
श्रीगणेश और व्यास की शर्तकथा के अनुसार, जब व्यासजी ने गणेशजी से महाभारत लिखने का अनुरोध किया, तो गणेशजी ने एक शर्त रखी: “मैं तभी लिखूंगा, जब आप बिना रुके, लगातार मुझे श्लोक सुनाते रहेंगे।” व्यासजी ने इस शर्त को स्वीकार किया, लेकिन उन्होंने भी एक शर्त जोड़ी “आपको प्रत्येक श्लोक का अर्थ समझकर ही लिखना होगा।” गणेशजी ने यह शर्त भी मान ली।
इस समझौते के तहत, व्यासजी ने श्लोकों को तेजी से सुनाना शुरू किया। जब भी गणेशजी को किसी श्लोक का अर्थ समझने में समय लगता, व्यासजी कुछ जटिल श्लोक रचते, ताकि गणेशजी को रुकना पड़े और व्यासजी को नए श्लोक रचने का समय मिल सके। इस तरह, दोनों की बुद्धिमत्ता और समन्वय से महाभारत का लेखन पूरा हुआ। माना जाता है कि यह लेखन कार्य व्यासजी की तपोभूमि, संभवतः हिमालय क्षेत्र या किसी पवित्र स्थान पर हुआ।
ऐसे हुई संरचना
महाभारत में 18 पर्व (खंड) हैं और लगभग 1,00,000 श्लोक हैं। इसमें कौरव-पांडवों के युद्ध के साथ-साथ दार्शनिक, नैतिक और आध्यात्मिक शिक्षाओं का समावेश है, जिसमें भगवद्गीता भी शामिल है। महाभारत संस्कृत में लिखी गई। गणेशजी ने इसे ताड़पत्रों या भोजपत्रों पर लिखा होगा, जैसा कि प्राचीन भारत में प्रचलित था।
पौराणिक और ऐतिहासिक संदर्भ
महाभारत की रचना का समय निश्चित रूप से निर्धारित करना कठिन है, लेकिन विद्वानों का मानना है कि यह द्वापर युग में, लगभग 3000-5000 साल पहले रची गई। व्यासजी ने न केवल महाभारत लिखी, बल्कि वे इसके कथानक में भी एक महत्वपूर्ण पात्र हैं। वे कौरवों और पांडवों के कुलगुरु और कई प्रमुख पात्रों के पिता/दादा थे। गणेशजी का लेखन कार्य इस महाकाव्य को और भी पवित्र बनाता है, क्योंकि वे विघ्नहर्ता हैं और किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत उनके आह्वान से होती है।
बौद्धिक और आध्यात्मिक गहराई का प्रतीक
रोचक तथ्य कहा जाता है कि “गणेशजी की लेखनी (उनका दांत) टूट गया था, जिसे उन्होंने स्वयं तोड़कर लेखन कार्य जारी रखा। इसीलिए उन्हें ‘एकदंत’ भी कहा जाता है। महाभारत को शुरू में ‘जय’ नाम दिया गया था, जो बाद में ‘भारत’ और फिर ‘महाभारत’ कहलाया। यह ग्रंथ केवल एक युद्ध कथा नहीं, बल्कि धर्म, कर्म, नीति और जीवन दर्शन का विशाल भंडार है।
महाभारत की रचना महर्षि व्यास की बौद्धिक और आध्यात्मिक गहराई का प्रतीक है, जबकि श्रीगणेश की लेखनी ने इसे अमर बना दिया। उनकी शर्तों और समन्वय ने इस महाकाव्य को एक अनूठा स्वरूप दिया। यह कथा न केवल लेखन की प्रक्रिया को दर्शाती है, बल्कि भारतीय संस्कृति में बुद्धि, सहयोग और समर्पण के महत्व को भी उजागर करती है।