स्वामीनाथन अय्यर
नई दिल्ली: यूनिफॉर्म सिविल कोड यानी समान नागरिक संहिता इस समय देश में हॉट टॉपिक है। हर बैठकी, चाय की दुकानों और ऑफिसों में इस पर चर्चा हो रही है। लोग अपने-अपने तरीके से विश्लेषण कर रहे हैं, राय दे रहे हैं। राजनीतिक मामलों के जानकार और जाने माने अर्थशास्त्री स्वामीनाथन अय्यर ने हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया में UCC पर एक विश्लेषण लिखा है। उन्होंने कहा है कि सेक्युलर फंडामेंटलिस्ट के तौर पर वह सभी धार्मिक समुदायों के पर्सनल लॉ की जगह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समान नागरिक संहिता के आह्वान का स्वागत करते हैं। इन धार्मिक समुदायों में मुस्लिम और ईसाई भी हैं। उन्होंने आगे कहा कि 1950 के दशक में हिंदू पर्सनल लॉ में सुधार के समय ही पीएम जवाहरलाल नेहरू को सभी धार्मिक समुदायों के पर्सनल लॉ में सुधार करना चाहिए था, जिससे यूसीसी का रास्ता साफ हो जाता। हालांकि उन्होंने ऐसा नहीं किया। यह सही समय है जब भारत पर्सनल लॉ में धार्मिक भेदभाव को खत्म करे। हालांकि उन्होंने यह भी कहा है कि सेक्युलर एक्सरसाइज होनी चाहिए, बहुसंख्यक तरीके से नहीं। उनका इशारा इस तरफ है कि सभी को भरोसे में लेकर सरकार को आगे बढ़ना चाहिए।
कांग्रेस को मुस्लिम वोट की टेंशन
अय्यर आगे लिखते हैं कि सेक्युलर का मतलब मुस्लिम और ईसाई पर्सनल लॉ ही नहीं, हिंदू लॉ में भी सुधार होना चाहिए। उन्होंने लिखा है कि जैसे अभी हिंदुओं के पास हिन्दू अविभाजित परिवार (HUF) के तौर पर एक अलग कानूनी और कर इकाई बनाने का अधिकार है। इसका इस्तेमाल दशकों से हजारों करोड़ के टैक्स से बचने के लिए होता आ रहा है। जबकि महिलाओं को संपत्ति के समान अधिकार नहीं दिए जाते। UCC के जरिए इसमें सुधार होना चाहिए। अर्थशास्त्री अय्यर ने आगे लिखा है कि विडंबना यह है कि ज्यादातर सेक्युलर पार्टियों ने UCC से अपने कदम पीछे खींच लिए जबकि हिंदू राष्ट्रवादी पार्टी भाजपा ने इसके लिए वकालत की। कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टियां मुस्लिम वोट बैंक को लुभाना चाहती हैं। यह अवसरवादी राजनीति का संकेत देता है।
उन्होंने कहा कि कांग्रेस और लेफ्ट पार्टियों ने सुधारों से दूरी बनाई क्योंकि उनका मानना है कि सुधार चाहने वाले प्रगतिशील मुसलमानों की तुलना में उन्हें परंपरावादी मुसलमान ज्यादा वोट दिलाएंगे। इधर, बीजेपी मुस्लिमों के कथित विशेषाधिकार को खत्म कर हिंदू वोट बैंक को मजबूत करना चाहती है। वैसे, मुस्लिम महिलाओं के लिए कोई विशेषाधिकार नहीं मिला हुआ है।
अय्यर कहते हैं कि संविधान एक धर्मनिरपेक्ष दस्तावेज हैं जो धार्मिक भेदभाव की इजाजत नहीं देता है। यह समान नागरिक संहिता का आह्वान करता है। ऐसे में अपने उद्देश्यों से इतर भाजपा इस विवाद में सेक्युलर लाइन पर चल रही है। उधर, कांग्रेस का कहना है कि अपनी परंपराओं को खत्म करने के लिए मजबूर होने से मुसलमान UCC से आहत होंगे। ऐसे में सवाल उठता है कि तो क्या हुआ?
अय्यर ने कहा कि कन्या भ्रूण हत्या पंजाब और तमिलनाडु में एक हिंदू प्रथा बन चुकी थी लेकिन क्या इसे सपोर्ट करने का कोई एक भी कारण है? सती प्रथा प्राचीन हिंदू परंपरा थी तो क्या इसे अनुमति दी जानी चाहिए?
वह आगे कहते हैं कि एक समय मुसलमानों के लिए शरिया में न केवल पर्सनल लॉ बल्कि क्रिमिनल लॉ भी शामिल होते थे। चोरी के लिए उनकी अंगुलियां काट दी जाती थीं और दूसरी स्त्री से संबंध रखने पर पत्थर मारकर मौत के घाट उतार दिया जाता था। आधुनिक भारत ने इन खतरनाक प्रथाओं को खत्म कर दिया और एक यूनिफॉर्म क्रिमिनल लॉ बनाया। ऐसे में यूनिफॉर्म सिविल लॉ क्यों न बनाया जाए? अय्यर कहते हैं कि अमेरिका, यूके और दूसरे पश्चिमी देशों में लाखों की संख्या में मुसलमान बसे हैं जहां यूनिफॉर्म सिविल लॉ है।