प्रकाश मेहरा
नई दिल्ली: देश में आजादी से पहले गिनती के टेलीफोन हुआ करते थे, पर अब भांति-भांति के फोन सब्सक्राइबर की संख्या एक अरब की संख्या को पार कर चुकी है। जब 74 करोड़ से ज्यादा इंटनरेट उपयोक्ता हो गए हैं, तब दूरसंचार संबंधी कानूनों को बदलना बहुत जरूरी है। संसद में दूरसंचार विधेयक, 2023 को ध्वनि मत से पारित कर दिया गया है और इसकी खूब चर्चा हो रही है। जिस देश में ज्यादातर लोगों के हाथों में फोन हो, वहां उससे संबंधित किसी कानून का बनना या बदलना स्वाभाविक ही रोचक विषय है। यह विधेयक उपग्रह स्पेक्ट्रम के प्रशासनिक आवंटन की अनुमति देता है।
दूरसंचार के लिए लाइसेंस
दूरसंचार सेवा प्रदाताओं के लिए लाइसेंस व्यवस्था को प्राधिकरण व्यवस्था से बदल देता है। कानून में उपयोगकर्ताओं की सुरक्षा के उपायों को मजबूत करता है और विवाद समाधान के लिए चार-स्तरीय संरचना भी प्रदान करता है। नया विधेयक इसलिए भी मायने रखता है, क्योंकि यह भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम (1885) और वायरलेस टेलीग्राफी अधिनियम (1933) का भी स्थान लेगा। भारत में दूरसंचार क्षेत्र में जिस ढंग से बदलाव हुए हैं, उसमें निजी क्षेत्र की पकड़ बहुत मजबूत हो गई है। निस्संदेह, नया दूरसंचार कानून सरकार के हाथ मजबूत करेगा।
सिम कार्ड फर्जीवाड़ा
विगत दशकों में हमने देखा है कि देश में सिम कार्ड एक तरह से गली-गली में बटे हैं। मोटे तौर पर दो ही बड़ी कंपनियां मैदान में मजबूती से बची हैं, पर जब लगभग छह कंपनियां सक्रिय थीं, तब किसी भी मोहल्ले में लोगों से ज्यादा सिम कार्ड पाए जाते थे। जाहिर है, सिम कार्ड लेने के लिए फर्जीवाड़ा भी खूब हुआ। बढ़ती सुविधा के साथ साइबर ठगी को भी बल मिला, पर नए कानून के लागू होने के बाद अगर कोई गलत ढंग से सिम लेता है, तो उसे तीन साल की सजा या 50 लाख रुपये तक के आर्थिक दंड का भागी बनना पड़ सकता है।
साइबर ठगी रोकने में मदद
ऐसे कड़े कानून के बाद अगर फर्जी ढंग से सिम कार्ड का बंटना रुक जाएगा, तो यह निस्संदेह देशहित में होगा। इससे साइबर ठगी रोकने में ‘भी मदद मिलेगी। ग्राहक सत्यापन में कड़ाई बरती जाएगी, इसकी शिकायत हो रही है, लेकिन भारत जैसे देश में, जहां तकनीक का दुरुपयोग आम बात है, यह उचित है। संदिग्ध या अपराधी ग्राहकों या उपयोक्ताओं पर निगरानी का भी साया रहेगा। गोपनीयता की चिंता जताई जा रही है, पर जरूरी होने पर गोपनीयता में सेंध सरकार के लिए मजबूरी है। सरकार किसी संदेश को बीच में ही रोकने में सक्षम होगी । हां, प्रेस को छूट दी गई है। वाट्सएप इत्यादि के जरिये होने वाली कॉल और ओटीटी मैसेजिंग की भी निगरानी संभव हो जाएगी। गौर करने की बात है कि दूरसंचार पर सरकार का कब्जा इसलिए भी
दूरसंचार निजी कंपनियों के पास
जरूरी है, क्योंकि दूरसंचार का ज्यादातर काम निजी कंपनियों के हाथों में है और निजी कंपनियों में प्रत्यक्ष या परोक्ष ढंग से विदेशी पैसा भी लगा हुआ है। विशेष रूप से उपद्रवग्रस्त इलाकों में सरकार पहले भी किसी नेटवर्क को अपने हाथ में लेती रही है, अब इस कानून के जरिये उसे इस काम में आसानी होगी। आम आदमी के नजरिये से देखें, तो दूरसंचार के क्षेत्र को अच्छी सेवाओं के पैमाने पर अभी बहुत आगे जाना है और तकनीक को ज्यादा सहज होना है। इन कानूनों में किए गए अनेक प्रावधान बहुत जरूरी हैं, अगर यह भावी कानून आम आदमी को सुरक्षित करता है, तमाम तरह की ठगी से बचाता है, तो यह कानून सच्चे अर्थों में प्रशंसनीय हो जाएगा। ध्यान रहे, इस साल देश में दस लाख से ज्यादा साइबर ठगी के मामले हो चुके हैं।