
सरफ़राज़ हसन
रंगकर्मी व सामाजिक कार्यकर्ता
नई दिल्ली: किसी भी मज़हब/धर्म और उसके मानने वालों की वास्तविक कामयाबी इस बात में है कि उसके होने से धरती पर कितनी “शांति” है। दुनिया के तमाम मज़हबों की मूल शिक्षा में शांति और सेवा से ही मोक्ष की प्राप्ति की बात बताई गई है।
दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मज़हब इस्लाम है। इस्लाम शब्द का अर्थ और मूल भाव है ‘समर्पण’, ‘आज्ञापालन’ व ‘शांति’। इसका सबसे व्यापक अर्थ ‘ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण’ है, यानी जिसके होने से हर जगह अमनों अमान और सलामती हो, निहायत अफ़सोस की आज इसके उलट सलामती की तालीम देने वाले अज़ीम मज़हब और इसके मानने वाले दोनों ही कुछ चंद नाम निहाद के मुसलमानों द्वारा ‘जिहाद’ को अपने कुकर्मों को मज़हबी जामा पहनाकर दुनियाभर में विशेषकर भारत में की जा रही बर्बरता भरी घटनाओं को अंजाम दिया जा रहा है जिससे सबसे बड़ा नुक़सान यह लोग अपने मज़हब का ही कर रहे हैं।
यह आतंकी जिनके नाम भले ही मुसलमान जैसे दिखे, लेकिन इन हैवानों की वजह से दुनियाभर में अमन (शांति), ख़िदमत (सेवा) व अख़लाक़ (व्यवहार-आचरण) से जन्नत पाने की तालीम देने वाली इस्लामी तहज़ीब आज दूसरों की नज़रों में नफरत और रंजिश की वजह बन रही है। आंतकी समूहों ने अपने ग़ैर इस्लामी कामों की वजह से हर आम ओ ख़ास मुसलमान पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। यह पीड़ा करोड़ों मुस्लिम अपने भीतर गहराई तक महसूस करते हैं।
मैं एक ज़िम्मेदार भारतीय मुसलमान के तौर पर मौजूदा दौर में इंसानियत और आपसी भरौसे को दीमक की तरह चाटते आतंकवाद का समूल नष्ट करने के लिए अपनी भूमिका सुनिश्चित करते हुए अपने समाज के प्रत्येक व्यक्ति से आव्हान करता हूँ कि वह पूरी शक्ति और साहस के साथ इस्लाम के दुश्मन इन दहशतगर्दों के ख़िलाफ़ एकजुट हो जाएं।
आज आधुनिक विश्व जिन चुनौतियों से जूझ रहा है, उनमें आतंकवाद सबसे जटिल और अमानवीय चुनौती बना हुआ है। चूंकि इसके दुष्परिणाम सीमाओं, धर्मों और राष्ट्रों से परे जाते हैं। इस वैश्विक समस्या का सबसे दुःखद पक्ष यह है कि आतंकियों में अब उच्यशिक्षित लोग भी शामिल हो रहे हैं जो अपनी वैचारिक विकलांगता को मज़हब की आड़ में छिपाने की कोशिश करते हुए बर्बरतापूर्ण घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं जो कड़ी मज़म्मत (निंदनीय) के योग्य है और इसका मुखर विरोध मुसलमानों की ओर से ही सबसे पहले किया जाना ज़रूरी है।
अपने अलावा दूसरे सभी धर्मों से नफ़रत करते हुए उसे मिटा देने की सोच के साथ जी रहे लोग दरअसल अपनी ही सुलगाई आग में ख़ुद अपने आपको, अपनी नस्लों को और अपने समाज को ख़ाक कर रहे हैं। “क़ुरान” में बहुत साफ़ तौर से ज़ुल्म करने वाला ख़ुदा का दुश्मन निरूपित किया गया है ‘क़ुरान’ किसी मासूम के नाहक क़त्ल को लेकर कितना सख़्त है, समझिये।
“क़ुरआन सूरे 5:32 में अल्लाह फ़रमाते हैं”
जिसने किसी बेक़सूर (निर्दोष) इंसान को क़त्ल किया, उसने मानो पूरी इंसानियत को क़त्ल किया।
यह वाक्य सिर्फ़ धार्मिक आदेश नहीं, बल्कि एक सार्वभौमिक नैतिक सिद्धांत है। इस आयत में दो बातें साफ हैं,
1. क़त्ल का अपराध व्यक्ति तक सीमित नहीं रहता, बल्कि सामूहिक मनोविज्ञान को प्रभावित करता है।
2. धर्म, जाति, राष्ट्र—किसी भी पहचान से ऊपर उठकर निर्दोष व्यक्ति की जान को पवित्र माना गया है।
ठीक इसी तरह इस्लाम के आख़री पैग़ंबर ﷺ की हदीस बताती हैं कि डर (भय) फैलाना को भी इस्लाम मे मनाही है। आपने फ़रमाया: “तुम में से कोई किसी को डराए नहीं।”
-सुनन अबू दाऊद
जबकि आतंकवाद का मुख्य उद्देश्य ही समाज मे भय (terror) उत्पन्न करना होता है, सोचने वाली बात है जब इस्लाम साधारण डराने तक को हराम क़रार देकर मना करता है.. ऐसे में बम धमाकों, सामूहिक निर्दोष लोगों की हत्याएँ या सार्वजनिक दहशत इन सबकी इस्लाम में कहीं कोई गुंजाइश नज़र आती है..?
वतन की अमानत देश की सुरक्षा मुसलमान की धार्मिक ज़िम्मेदारी है।सहीह बुख़ारी की हदीस है पैगम्बर फ़रमाते है। “जिसमें अमानतदारी (विश्वसनीयता) नहीं, उसमें ईमान नहीं।”
अपना वतन भारत केवल मिट्टी नहीं है, कानून की व्यवस्था, नागरिकों की सुरक्षा, सीमाओं की स्थिरता और सामाजिक समरसता यह सब मिलकर एक सामूहिक ‘अमानत’ बनते हैं, जबकि आतंकवाद सबसे पहले इसी अमानतदारी को ही लीलता है, इसलिए यह मज़हबी तौर से बहुत बड़ा गुनाह और राष्ट्रद्रोह है।
याद रखा जाना चाहिये कि ‘फ़साद – फ़िल – अर्ज़’ (पृथ्वी पर ईश्वर के शत्रु) इस्लाम में बहुत बड़ा अपराध है। क़ुरआन कहता है “अल्लाह फ़साद करने वालों को पसंद नहीं करता।”
-क़ुरआन 5:64
फ़साद का अर्थ केवल हिंसा नहीं बल्कि समाज में अराजकता, भय, अविश्वास, विभाजन और अशांति फैलाना भी फ़साद में ही आता है। इस नाते हर मुसलमान का यह दीनी फ़र्ज़ है कि उसे ख़ुद भी इससे बचना होगा और दूसरों को भी ऐसा करने से रोकना है क्योंकि क़ुरान के मुताबिक़ “मुसलमान ज़मीन पर अच्छे कामों को करने की प्रेरणा देने और बुरे कामों से रोकने के लिए भेजा गया है”।
वहीं इसके उलट आतंकवाद लोगों को बाँटता है, देशों में असुरक्षा फैलाता है, धर्मों व उनके मानने वालों के बीच अविश्वास और नफरत की दीवारें खड़ी करता है, बहनों का सुहाग उजाड़ता है, बच्चों के सर से बाप की छाया और बूढ़े मातापिता के आख़री दिनों का सहारा छीनता है।
इसलिए क़ुरआन की परिभाषा के अनुसार यह ‘सबसे बड़ा फ़साद’ है। जो किसी तर्क या मज़हबी नज़र से जिहाद नहीं है।
जिहाद का तसव्वुर (अवधारणा) तजज़ीया-ए-तह्क़ीक़ (विद्वतापूर्ण विश्लेषण) में आतंकवाद इसका उल्टा है। बहुत से गैर-मुस्लिम ही नहीं, बल्कि कुछ मुसलमान भी “जिहाद” शब्द की गलत व्याख्या का शिकार हो जाते हैं जबकि इस्लाम में जिहाद का मूल अर्थ है.. “नैतिक सुधार के लिए संघर्ष” यानी अपने अंदर की बुराइयों से लड़ना जिहाद-ए-अकबर अर्थात सबसे बड़ा जिहाद है। अन्याय का सामना करना लेकिन नैतिक सीमाओं में रहकर।
इस्लाम में जिहाद के बहुत सख़्त नियम हैं जिनका पालन अनिवार्य शर्त है जैसे की निर्दोषों को नुकसान नहीं पहुँचाना। हरे पेड़ों, खेतों, धार्मिक इमारतों को नुकसान नहीं करना और किसी भी हाल में बुज़ुर्गों, महिलाओं, बच्चों पर हमला नहीं करना। धोखा और विश्वासघात नहीं करना। फ़र्ज़ी जिहादी सीधे सीधे इन पाँचों इस्लामी नियमों को तोड़ता है। इसलिए यह हत्याएं, दरन्दगी और राष्ट्र की संपत्ति को नुक़सान पहुँचाना इस्लाम की शिक्षाओं के विपरीत है बल्कि गुनाहे कबीरा (सबसे बड़ा पाप) है। यह सब करने वाला सबसे बड़ा नुक़सान अपने मज़हब और मुसलमानों का कर रहा है।
मुसलमान जानता है कि भारत का संविधान उसकी धार्मिक आज़ादी की रक्षा करता है। भारत का बहुसंख्यक हिन्दू वर्ग सहिष्णु दयालुतापूर्ण व्यवहार तथा सर्वधर्म समभाव में अटूट विश्वास रखता है। भारत देश अपनी पवित्र ज़मीन पर हर धर्म, मज़हब, पंथ, विचारधारा के विश्वासों की इबादत यानी पूजा पद्धति को सहजता से स्वीकारा और सम्मान देता है। इसलिए देश की स्थिरता व आतंरिक सुरक्षा की रक्षा करना और अपनी राष्ट्रीयता का सम्मान करना हर भारतीय मुसलमान का नैतिक कर्तव्य है। जिहाद के नाम आतंक फैलाने वाले आतंकवादी और इनके मददगार इस्लाम और राष्ट्र दोनों के खुले दुश्मन है।
क़ुरआन की स्पष्ट मनाही, पैग़ंबर ﷺ का नैतिक निर्देश। अमानत और ईमान का सिद्धांत, फ़साद का निषेध, जिहाद की असली परिभाषा, भारतीय संवैधानिक मान्यताएँ सभी को समझने पर निष्कर्ष स्पष्ट रूप में यही निकलता है “आतंकवाद इस्लाम की तालीम के विरुद्ध खुला विद्रोह है”
इसलिए हर मुसलमान की ज़िम्मेदारी है कि वह इंसानियत और देश के दुश्मनों के ख़िलाफ़ खुलकर विरोध में आएं। सोशल मीडिया पर इनके ख़िलाफ़ तीखी प्रतिक्रिया दें। देश दुनिया मे जहां कहीं होने वाली आतंकी घटनाओं का तीखा विरोध करे। युवाओं को गुमराह होने से बचाए। समाज में संवाद और शांति को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रम करें। ऐसे विषयों पर चर्चाएं कराएं। अपने पड़ोसियों, शहरवासियों और बहुसंख्यक समाज के हर दुःख दर्द में भागीदार बने। आपसी विश्वास पैदा करे और अपने दीनी आचरण से यह संदेश स्पष्ट रूप से दें…
“इस्लाम अमन है – भारत अपना वतन है,
आतंकवाद का समूल नष्ट करेंगे हमारा वचन है”







