Upgrade
पहल टाइम्स
  • होम
  • दिल्ली
  • राज्य
  • राष्ट्रीय
  • विश्व
  • धर्म
  • व्यापार
  • खेल
  • मनोरंजन
  • गैजेट्स
  • जुर्म
  • लाइफस्टाइल
    • स्वास्थ्य
    • फैशन
    • यात्रा
  • विशेष
    • साक्षात्कार
  • ईमैगजीन
  • होम
  • दिल्ली
  • राज्य
  • राष्ट्रीय
  • विश्व
  • धर्म
  • व्यापार
  • खेल
  • मनोरंजन
  • गैजेट्स
  • जुर्म
  • लाइफस्टाइल
    • स्वास्थ्य
    • फैशन
    • यात्रा
  • विशेष
    • साक्षात्कार
  • ईमैगजीन
No Result
View All Result
पहल टाइम्स
No Result
View All Result
  • होम
  • दिल्ली
  • राज्य
  • राष्ट्रीय
  • विश्व
  • धर्म
  • व्यापार
  • खेल
  • मनोरंजन
  • गैजेट्स
  • जुर्म
  • लाइफस्टाइल
  • विशेष
  • ईमैगजीन
Home राष्ट्रीय

UCC पर अड़े आदिवासी तो समझिए कैसे मुश्किलों में फंस सकती है बीजेपी?

पहल टाइम्स डेस्क by पहल टाइम्स डेस्क
June 30, 2023
in राष्ट्रीय, विशेष
A A
BJP president JP Nadda
19
SHARES
637
VIEWS
Share on FacebookShare on Whatsapp

अविनीश मिश्रा 


समान नागरिक संहिता पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पैरवी के बाद माना जा रहा है कि केंद्र सरकार इसे जल्द लागू कर सकती है. मोदी सरकार मानसून सत्र में ही यूसीसी विधेयक ला सकती है. विधि आयोग ने हाल ही में लोगों से नागरिक संहिता पर राय मांगी थी. देश भर से अब तक 8.5 लाख लोगों ने इस पर अपना विचार भी साझा किया है.

इन्हें भी पढ़े

Sheikh Hasina

शेख हसीना ने तोड़ी चुप्पी, बोली- आतंकी हमला US ने रचा, PAK ने अंजाम दिया

November 2, 2025
amit shah

अमित शाह ने बताया- भारत में क्यों नहीं हो सकता Gen-Z प्रदर्शन!

November 2, 2025
Gold

तीन महीने में भारतीयों ने कितना सोना खरीदा? ये आंकड़े चौंका देंगे

November 2, 2025
adi kailash

22KM कम हो जाएगी आदि कैलाश की यात्रा, 1600 करोड़ होंगे खर्च

November 1, 2025
Load More

समान नागरिक संहिता बीजेपी का कोर मुद्दा रहा है और स्थापना के वक्त से ही पार्टी इसे उठाती रही है. जानकारों का मानना है कि मंडल की राजनीति में घिरी बीजेपी 2024 से पहले यूसीसी को लागू कर ब्रांड हिंदुत्व को और मजबूत करना चाहती है, जिससे चुनाव 80 (हिंदू) वर्सेज 20 (मुसलमान) का हो जाए.

हालांकि, आदिवासियों और पूर्वोत्तर के लोगों के विरोध ने बीजेपी की एक देश-एक विधान के नारों की मुश्किलें खड़ी कर दी है. झारखंड के 30 आदिवासी संगठनों ने बयान जारी कर कहा है कि विधि आयोग से इसे वापस लेने के लिए कहेंगे.

आदिवासियों नेताओं का कहना है कि समान नागरिक संहिता अगर लागू होती है, तो इससे उनकी प्रथागत परंपराएं खत्म हो जाएगी. साथ ही जमीन से जुड़े छोटानगपुर टेनेंसी एक्ट और संथाल परगना टेनेंसी एक्ट पर भी इसका असर होगा.

आदिवासी संगठनों के विरोध पर बीजेपी के बड़े नेताओं ने फिलहाल चुप्पी साध रखी है. राजनीतिक जानकारों का कहना है कि अगर आदिवासी समाज इसका विरोध करता है, तो बीजेपी को नफा से ज्यादा सियासी नुकसान हो सकता है.

नागरिक संहिता के विरोध में आदिवासी, क्यों?

1. शादी, बच्चा गोद लेना, दहेज आदि प्रथागत परंपराओं पर असर होगा. आदिवासी समाज पर हिंदू मैरिज एक्ट लागू नहीं होता है.

2. आदिवासी समाज में महिलाओं को संपत्ति का सामान अधिकार नहीं है. इसे लागू होने से यह पूरी तरह खत्म हो जाएगा.

3. आदिवासियों को ग्राम स्तर पर पेसा अधिनियम के तहत कई अधिकार मिले हैं, जो नागरिक संहिता लागू होने से खत्म हो सकता है.

4. जल, जंगल और जमीन सुरक्षित रखने के लिए आदिवासियों को सीएनटी और एसपीटी एक्ट के तहत विशेष अधिकार मिले हैं.

सियासी तौर पर आदिवासी कितने मजबूत?

भारत में 10 करोड़ से अधिक आदिवासी हैं, जिनके लिए लोकसभा की 47 सीटें आरक्षित की गई है. मध्य प्रदेश में 6, ओडिशा-झारखंड में 5-5, छत्तीसगढ़-गुजरात और महाराष्ट्र में 4-4, राजस्थान में 3, कर्नाटक-आंध्र और मेघालय में 2-2, जबकि त्रिपुरा में लोकसभा की एक सीट आदिवासियों के लिए आरक्षित है.

लोकसभा की कुल सीटों का यह करीब 9 प्रतिशत है, जो गठबंधन पॉलिटिक्स के लिहाज से काफी अहम भी है. आरक्षित सीटों के अलावा मध्य प्रदेश की 3, ओडिशा की 2 और झारखंड की 5 सीटों का समीकरण ही आदिवासी ही तय करते हैं.

साथ ही करीब 15 लोकसभा सीटों पर आदिवासी समुदाय की आबादी 10-20 प्रतिशत के आसपास है, जो जीत-हार में अहम भूमिका निभाती है. कुल मिलाकर कहा जाए तो लोकसभा की करीब 70 सीटों का गुणा-गणित आदिवासी ही सेट करते हैं.

2019 में बीजेपी को आदिवासियों के लिए रिजर्व 47 में से करीब 28 सीटों पर जीत मिली थी. मध्य प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, राजस्थान और त्रिपुरा में बीजेपी को आदिवासियों के लिए आरक्षित सभी सीटों पर जीत मिली थी.

2014 के चुनाव में भी बीजेपी को 26 सीटों पर जीत मिली थी. राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात की आदिवासी रिजर्व सीटों पर पार्टी ने क्लीन स्वीप किया था.

विधानसभा चुनाव में भी आदिवासी वोटर्स असरदार

देश के 10 राज्य मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, झारखंड, राजस्थान, गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र और तेलंगाना के विधानसभा चुनाव में भी आदिवासी वोटर्स निर्णायक भूमिका में होते हैं. मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में 5 महीने बाद चुनाव होने हैं.

मध्य प्रदेश में 21 प्रतिशत आदिवासी हैं, जिनके लिए 230 में से 47 सीटें आरक्षित है. आदिवासी इसके अलावा भी 25-30 सीटों पर असरदार हैं. मध्य प्रदेश में बीजेपी और कांग्रेस के बीच पिछले चुनाव में सीटों का फासला काफी कम था. ऐसे में आदिवासी रिजर्व सीट इस बार दोनों पार्टियों के लिए काफी महत्वपूर्ण है.

इसी तरह राजस्थान में आदिवासियों की संख्या 14 प्रतिशत के आसपास है. यहां 200 में से 25 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित है. सत्ता बदलने की रिवाज वाले राजस्थान में ये 25 सीटें काफी अहम है. छत्तीसगढ़ की 34 प्रतिशत आबादी आदिवासियों की है.

यहां 90 में से 34 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित है. यहां भी कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधा मुकाबला है. तेलंगाना में आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटों की संख्या भले कम है, लेकिन बीजेपी-बीआरएस और कांग्रेस के बीच त्रिकोणीय मुकाबले में यह काफी अहम है.

आदिवासियों का विरोध सियासी नुकसान पहुंचा सकता है?

आदिवासी नेता लक्ष्मी नारायण मुंडा कहते हैं- आदिवासियों के बीच पलायन का मुद्दा सबसे बड़ा है और 2014 में बीजेपी ने इसे खत्म करने की बात कही थी, लेकिन मूल मुद्दा छोड़ नागरिक संहिता की बात कर रही है. हमारे पास जल, जंगल और जमीन को बचाने के लिए कुछ विशेष कानून हैं. अगर वो भी छीन जाएंगे तो क्या करेंगे?

मुंडा आगे कहते हैं- सरकार की मंशा सही नहीं है और एक विशेष एजेंडा के तहत इसे लागू किया जा रहा है. 5 जुलाई को झारखंड के आदिवासी समुदाय राजभवन के सामने धरना पर बैठेंगे.

मध्य प्रदेश के आदिवासी के लिए काम कर रहे सोशल एक्टिविस्ट परमजीत बताते हैं, ‘आदिवासियों के बीच धीरे-धीरे यह मुद्दा पहुंच रहा है और लोग इसके विरोध में उतर रहे हैं. परंपरा के साथ-साथ जमीन का मामला सबसे महत्वपूर्ण है.

परमजीत के मुताबिक आदिवासियों को डर है कि छोटा नागपुर टेंनेसी एक्ट और संथाल परगना टेनेंसी एक्ट को समान नागरिक संहिता के जरिए खत्म किया जा सकता है. इन दोनों कानून के मुताबिक आदिवासियों के जमीन को गैर-आदिवासी नहीं खरीद सकते हैं.

आदिवासियों के लिए काम करने वालीं झाबुआ की दुर्गा दीदी कहती हैं- आदिवासी जमीन को लेकर ज्यादा संवेदनशील होते हैं और नागरिक संहिता के मसले पर उनके भीतर सरकार के खिलाफ निगेटिव नैरेटिव बना हुआ है. इसे अगर सरकार खत्म नहीं कर पाई तो नुकसान संभव है.

परमजीत झारखंड का उदाहरण देते हैं, जहां सीएनटी कानून में संशोधन की कोशिशों की वजह से रघुबर सरकार चुनाव हार गई.

पूर्वोत्तर में विरोध तेज, वजह- संसद का सभी कानून मानना होगा

समान नागरिक संहिता का विरोध पूर्वोत्तर में भी शुरू हो गया है. पूर्वोत्तर के नेताओं का कहना है कि नागरिक संहिता समाजों के लिए खतरा पैदा करेगा. संविधान के अनुच्छेद 371 (ए) और 371 (जी) के अनुसार, पूर्वोत्तर राज्यों की जनजातियों को विशेष प्रावधानों की गारंटी दी गई है जो संसद को किसी भी कानून को लागू करने से रोकते हैं.

अब जानिए समान नागरिक संहिता क्या है, लागू होने से क्या बदलेगा?

शादी, तलाक, उत्तराधिकार और गोद लेने के मामलों में भारत में अलग-अलग समुदायों में उनके धर्म, आस्था और विश्वास के आधार पर अलग-अलग कानून हैं. यूसीसी का मतलब प्रभावी रूप से विवाह, तलाक, गोद लेने, उत्तराधिकार, विरासत वगैरह से संबंधित कानूनों को सुव्यवस्थित करना होगा.

यानी समान नागरिक संहिता लागू हुआ तो शादी और संपत्ति बंटावरे पर सबसे अधिक फर्क पड़ेगा.

वर्तमान में भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872, नागरिक प्रक्रिया संहिता, संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 1882, भागीदारी अधिनियम, 1932, साक्ष्य अधिनियम, 1872 जैसे मामलो में सभी नागरिकों के लिए एक समान नियम लागू हैं, लेकिन धार्मिक मामलों में सबके लिए अलग-अलग कानून लागू हैं और इनमें बहुत विविधता भी है.

देश में सिर्फ गोवा एक ऐसा राज्य जहां पर समान नागरिक कानून लागू है.

इन्हें भी पढ़ें

  • All
  • विशेष
  • लाइफस्टाइल
  • खेल
transfer

उत्तराखंड में आईपीएस/पीएस अधिकारियों के हुए तबादले

January 5, 2024
वन विभाग

उत्तराखंड: 500 से अधिक परिवारों को भूमि खाली करने के नोटिस, ग्रामीणों की बढ़ी मुश्किलें !

February 6, 2025
Hindavi Swarajya Darshan

छत्रपति के दुर्गों का जयगान है ‘हिन्दवी स्वराज्य दर्शन’

September 5, 2025
पहल टाइम्स

पहल टाइम्स का संचालन पहल मीडिया ग्रुप्स के द्वारा किया जा रहा है. पहल टाइम्स का प्रयास समाज के लिए उपयोगी खबरों के प्रसार का रहा है. पहल गुप्स के समूह संपादक शूरबीर सिंह नेगी है.

Learn more

पहल टाइम्स कार्यालय

प्रधान संपादकः- शूरवीर सिंह नेगी

9-सी, मोहम्मदपुर, आरके पुरम नई दिल्ली

फोन नं-  +91 11 46678331

मोबाइल- + 91 9910877052

ईमेल- pahaltimes@gmail.com

Categories

  • Uncategorized
  • खाना खजाना
  • खेल
  • गैजेट्स
  • जुर्म
  • दिल्ली
  • धर्म
  • फैशन
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • राजनीति
  • राज्य
  • राष्ट्रीय
  • लाइफस्टाइल
  • विशेष
  • विश्व
  • व्यापार
  • साक्षात्कार
  • सामाजिक कार्य
  • स्वास्थ्य

Recent Posts

  • विवादों के बीच ‘द ताज स्टोरी’ ने बॉक्स ऑफिस पर कर दिया बड़ा खेल
  • मल्लिकार्जुन खरगे को अमित शाह का जवाब, गिनाया RSS का योगदान
  • दिल्ली सरकार का तोहफा, महिलाओं के लिए ‘पिंक सहेली स्मार्ट कार्ड’ की शुरुआत

© 2021 पहल टाइम्स - देश-दुनिया की संपूर्ण खबरें सिर्फ यहां.

  • होम
  • दिल्ली
  • राज्य
  • राष्ट्रीय
  • विश्व
  • धर्म
  • व्यापार
  • खेल
  • मनोरंजन
  • गैजेट्स
  • जुर्म
  • लाइफस्टाइल
    • स्वास्थ्य
    • फैशन
    • यात्रा
  • विशेष
    • साक्षात्कार
  • ईमैगजीन

© 2021 पहल टाइम्स - देश-दुनिया की संपूर्ण खबरें सिर्फ यहां.