प्रकाश मेहरा
एग्जीक्यूटिव एडिटर
प्रयागराज: प्रयागराज के करछना तहसील के इसौटा गांव में 12 अप्रैल को 35 वर्षीय दलित युवक देवीशंकर की हत्या और उनके शव को जलाने की घटना हुई थी। इस मामले में स्थानीय लोगों ने आरोप लगाया था कि देवीशंकर को जलाकर मार डाला गया। इसौटा गांव निवासी अशोक कुमार के बेटे देवीशंकर 12 अप्रैल से लापता थे और 13 अप्रैल को उनका अधजला शव गांव के पास एक बगीचे में मिला था। इस घटना के बाद तहसील प्रशासन ने पीड़ित परिवार को जमीन का पट्टा और आर्थिक सहायता का आश्वासन दिया था, लेकिन भीम आर्मी के स्थानीय नेताओं का दावा था कि पीड़ित परिवार को कोई सहायता नहीं मिली।
इसी मामले में पीड़ित परिवार से मिलने के लिए भीम आर्मी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और नगीना से सांसद चंद्रशेखर आजाद 29 जून को प्रयागराज पहुंचे। पुलिस ने कानून-व्यवस्था का हवाला देते हुए उन्हें प्रयागराज एयरपोर्ट पर रोक लिया और सर्किट हाउस भेज दिया, जिससे उनके समर्थक नाराज हो गए। इस नाराजगी ने हिंसक प्रदर्शन का रूप ले लिया।
उपद्रव कैसे हुआ ?
29 जून को, चंद्रशेखर आजाद को इसौटा गांव जाने से रोकने के बाद, भीम आर्मी के कार्यकर्ताओं ने करछना तहसील के हनुमानपुर मोरी से भड़ेवरा बाजार तक जमकर उत्पात मचाया। इस दौरान कार्यकर्ताओं ने पुलिस वाहनों, निजी गाड़ियों, और स्थानीय दुकानों पर पथराव और तोड़फोड़ किया। पुलिस की 8 गाड़ियों, एक निजी बस और लगभग 10 अन्य वाहनों को क्षतिग्रस्त किया गया। कुछ वाहनों में आग भी लगा दी गई। करीब 3,000 से 5,000 कार्यकर्ताओं ने करछना-कोहड़ार मार्ग पर चक्का जाम कर प्रदर्शन किया।
प्रदर्शनकारियों ने पुलिस पर पथराव किया, जिसमें कई पुलिसकर्मी और पत्रकार घायल हो गए। भड़ेवरा बाजार में दुकानदारों पर हमला और महिलाओं के साथ अभद्रता की घटनाएं भी सामने आईं। कुछ रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि उपद्रव में सवर्णों विशेषकर ठाकुर समुदाय की दुकानों को निशाना बनाया गया, जिससे यह घटना जातीय हिंसा का रूप लेती दिखी।
पुलिस और प्रशासन की कार्रवाई
पुलिस ने 17 से 50 उपद्रवियों को हिरासत में लिया। सीसीटीवी फुटेज के आधार पर उपद्रवियों की पहचान की जा रही है और उनके खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA) और गैंगस्टर एक्ट के तहत कार्रवाई की घोषणा की गई है। सरकारी संपत्ति को हुए नुकसान की वसूली भी उपद्रवियों से की जाएगी। स्थिति को नियंत्रित करने के लिए PAC और RAF को तैनात किया गया। करीब 5 घंटे की मशक्कत के बाद स्थिति काबू में आई। रात करीब 8:30 बजे चंद्रशेखर आजाद को भारी पुलिस बल के साथ प्रयागराज से वाराणसी भेज दिया गया।
विवाद और दावे !
कार्यकर्ताओं का आरोप था कि तहसील प्रशासन ने पीड़ित परिवार को आवासीय और कृषि पट्टा नहीं दिया। हालांकि, तहसीलदार ने दावा किया कि 200 वर्ग मीटर आवासीय और 11 बीघा कृषि पट्टा आवंटित किया गया था। कुछ समाचारों में कहा गया कि यह उपद्रव सवर्णों, खासकर ठाकुर समुदाय के खिलाफ आक्रोश का परिणाम था। इस घटना को इटावा और कन्नौज में हाल की जातीय हिंसा की घटनाओं से भी जोड़ा गया, जहां ब्राह्मणों और यादवों के बीच तनाव देखा गया था।
प्रशासन और पुलिस की विफलता पर सवाल !
एक्स पर कई पोस्ट्स में प्रशासन की निष्क्रियता पर सवाल उठाए गए। कुछ यूजर्स ने दावा किया कि पुलिस शुरूआती दौर में उपद्रव को नियंत्रित करने में नाकाम रही और स्थानीय ग्रामीणों और दुकानदारों ने उपद्रवियों का विरोध किया। एक यूजर ने यह भी कहा कि इस घटना ने “नए किस्म की अराजकता” की आशंका को जन्म दिया है।
प्रयागराज में भीम आर्मी का उपद्रव एक स्थानीय दलित युवक की हत्या और प्रशासन की कथित निष्क्रियता के खिलाफ गुस्से का परिणाम था। चंद्रशेखर आजाद को रोकने के पुलिस के फैसले ने इस गुस्से को हिंसक प्रदर्शन में बदल दिया। इस घटना ने न केवल कानून-व्यवस्था की स्थिति पर सवाल उठाए, बल्कि उत्तर प्रदेश में बढ़ते जातीय तनाव को भी उजागर किया। पुलिस अब सख्त कार्रवाई की तैयारी में है, और इस घटना के दीर्घकालिक प्रभावों पर नजर रखी जा रही है।