हरिशंकर व्यास
अगले लोकसभा चुनाव से पहले विपक्ष को सबसे बड़ा सवाल है कि सच्चा विपक्ष कौन है? कौन विपक्षी पार्टी है, जो नीतियों, सिद्धांतों या देश और इसके नागरिकों के हितों को केंद्र में रख कर भाजपा को हराना चाहती है और कौन विपक्षी पार्टी है, जिसको अपने नेता को प्रधानमंत्री बनाने या विपक्ष का सर्वमान्य नेता बनाने के लिए भाजपा को हराना? विपक्षी पार्टियों और उसके नेताओं की ईमानदारी से पता चलेगा कि अगले लोकसभा चुनाव में भाजपा से मुकाबले के लिए विपक्ष कितना तैयार है।
इस लिहाज से सबसे पहले चर्चा ममता बनर्जी की होनी चाहिए। वे भाजपा की सबसे कटु और मुखर आलोचक हैं। लेकिन क्या वे अगले चुनाव में भाजपा को हराने के लिए ईमानदारी से विपक्ष के साथ काम करने को तैयार हैं? नहीं, वे ईमानदारी से विपक्ष को नेतृत्व देने या मदद देने को तैयार नहीं हैं। उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव में एक के बाद एक उम्मीदवार घोषित किए और अपनी चौथी पसंद के तौर पर यशवंत सिन्हा का नाम आगे किया विपक्ष ने इसे स्वीकार कर लिया लेकिन उससे बाद ममता अपने घर में बैठ गईं। उन्होंने अपने विधायकों सांसदों के वोट सिन्हा को दिलाए पर ऐसा नहीं लगा कि सिन्हा उनके उम्मीदवार हैं तो वे उनके लिए कुछ अतिरिक्त मेहनत कर रही हैं। उन्होंने सिन्हा को अपने यहां आने नहीं दिया और न उनके लिए किसी दूसरी पार्टी से बात की। इसके बाद उप राष्ट्रपति के चुनाव में उन्होंने विपक्ष की उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा को समर्थन देने से इनकार कर दिया। सोचें, विपक्ष ने उनके बताए यशवंत सिन्हा को पूरा समर्थन दिया पर वे उप राष्ट्रपति चुनाव में विपक्षी उम्मीदवार का समर्थन नहीं करेंगी।
ऐसा सिर्फ इसलिए है क्योंकि विपक्ष की उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा कांग्रेस की नेता हैं। कांग्रेस को किनारे करने की राजनीति के तहत ही उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव में एक के बाद एक गैर कांग्रेसी नेताओं के नाम सुझाए थे। जब उप राष्ट्रपति चुनाव में कांग्रेस नेता का नाम आ गया तो वे बिदक गईं। वे इतनी नाराज हो गई हैं कि महंगाई, जीएसटी, बेरोजगारी आदि के मसले पर संसद में हो रहे प्रदर्शनों में भी उनकी पार्टी के सांसद हिस्सा नहीं ले रहे हैं क्योंकि इन विरोध प्रदर्शनों का नेतृत्व कांग्रेस कर रही है। उन्हीं की तर्ज पर आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल भी राजनीति कर रहे हैं। उनकी पार्टी भी संसद में कांग्रेस और 13 विपक्षी पार्टियों की ओर से किए जा रहे प्रदर्शनों में शामिल नहीं हो रही है। उन्होंने उप राष्ट्रपति पद को लेकर अपने पत्ते नहीं खोले हैं लेकिन हैरानी नहीं होगी अगर वे भी ममता की तरह अपनी पार्टी को चुनाव से दूर रखने का फैसला करें। इन दोनों पार्टियों को कांग्रेस से परेशानी है और साथ ही इनके नेताओं की खुद की महत्वाकांक्षा भी बहुत बड़ी है।
असली और सच्चे विपक्ष के नाते इस बार राष्ट्रपति चुनाव में तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने काम किया। उन्होंने उम्मीदवार के नाम पर ध्यान नहीं दिया और न इस बहस में गए कि यशवंत सिन्हा का नाम किसने तय कराया है। उन्होंने खुल कर यशवंत सिन्हा की मदद की। निश्चित रूप से उनको अपने राज्य में सत्ता बचाने की चिंता है लेकिन वे महंगाई, जीएसटी, रुपए की कीमत, बेरोजगारी आदि के मसले पर ईमानदार विरोध कर रहे हैं। तभी कांग्रेस से दूरी होने के बावजूद संसद में कांग्रेस के प्रदर्शन में केसीआर के सांसद हिस्सा ले रहे हैं। कांग्रेस खुद टीआरएस का विरोध कर रही है इसके बावजूद संसद में टीआरएस के सांसद कांग्रेस का साथ दे रहे हैं।
लेफ्ट पार्टियां भी संसद के अंदर और बाहर विपक्षी एकता के लिए काम कर रहे हैं। ध्यान रहे यशवंत सिन्हा का नाम लेफ्ट की धुर विरोधी ममता बनर्जी ने सुझाया था और अनेक कम्युनिस्ट नेताओं को यशवंत सिन्हा की भाजपा की पृष्ठभूमि से परेशानी थी फिर भी लेफ्ट ने एकजुट होकर उनका समर्थन किया। तमिलनाडु में सरकार चला रही डीएमके, उत्तर प्रदेश की मुख्य विपक्षी समाजवादी पार्टी और बिहार की मुख्य विपक्षी राष्ट्रीय जनता दल के नेता भी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा से दूर हैं और विपक्षी एकता के प्रति गंभीर हैं।