प्रकाश मेहरा
दिल्ली डेस्क
कर्नाटक में कांग्रेस सरकार के आधे कार्यकाल (2.5 वर्ष) पूरे होने के साथ ही पार्टी के अंदर सत्ता-साझेदारी को लेकर खुली खींचतान शुरू हो गई है। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार के बीच पुराना विवाद फिर से भड़क उठा है, जो अब दिल्ली तक पहुंच चुका है। हाईकमान पर दबाव बढ़ रहा है, जबकि भाजपा इसे अवसर के रूप में देख रही है। यह कलह न केवल राज्य की राजनीति को अस्थिर कर रही है, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस की छवि को भी नुकसान पहुंचा रही है, खासकर बिहार चुनावों की हार के बाद।
सत्ता-साझेदारी का समझौता
कांग्रेस की कर्नाटक सरकार 20 मई 2023 को बनी, जब पार्टी ने 2018 के बाद सत्ता हासिल की। सिद्धारमैया को मुख्यमंत्री बनाया गया, जबकि वीक्षिपू (Vokkaliga) समुदाय से आने वाले डीके शिवकुमार को उपमुख्यमंत्री और राज्य कांग्रेस अध्यक्ष का पद मिला। यह फैसला एक अनौपचारिक समझौते पर आधारित था, जिसमें तय हुआ कि सिद्धारमैया पहले 2.5 वर्ष (आधा कार्यकाल) संभालेंगे, और बाकी 2.5 वर्ष शिवकुमार को सौंपा जाएगा।
यह समझौता मल्लिकार्जुन खड़गे, केसी वेणुगोपाल और रणदीप सिंह सुरजेवाला की मौजूदगी में हुआ था। शिवकुमार ने शुरुआत में खुद को पहले सीएम बनाने की मांग की, लेकिन सिद्धारमैया की वरिष्ठता के कारण यह स्वीकार नहीं हुआ। सिद्धारमैया ने डॉ. डीके सुरेश के सामने वादा किया कि 2.5 वर्ष पूरे होने से एक सप्ताह पहले इस्तीफा दे देंगे।
वर्तमान कलह के कारण..क्या ट्रिगर कर रहा है विवाद ?
सरकार के आधे कार्यकाल (नवंबर 2025 की शुरुआत में) पूरे होने के साथ ही कलह चरम पर पहुंच गई। सिद्धारमैया कैबिनेट में बदलाव चाहते हैं, लेकिन शिवकुमार का गुट इसे तभी मानने को तैयार है जब सीएम पद का हस्तांतरण हो। शिवकुमार समर्थक मानते हैं कि फेरबदल के बिना सिद्धारमैया पूरे 5 वर्ष रहना चाहते हैं।
20 नवंबर को 7-8 विधायक और कुछ विधान परिषद सदस्य (एमएलसी) शिवकुमार समर्थक दिल्ली पहुंचे और खड़गे से मिले। यह तीसरा बैच था, जो पावर-शेयरिंग पर जोर दे रहा है। 21 नवंबर को खड़गे ने इन विधायकों से 10 मिनट की बैठक की।
सिद्धारमैया का क्या रुख
जुलाई 2025 से सिद्धारमैया पूरे कार्यकाल का दावा कर रहे हैं। 22 नवंबर को उन्होंने कहा कि वे मार्च 2026 में अगला बजट पेश करेंगे। चामराजनगर दौरे पर उन्होंने अपनी स्थिति मजबूत बताई। शिवकुमार ने 21 नवंबर को सेंट्रल जेल जाकर दो पार्टी विधायकों से मुलाकात की, जो उनके दावे को जिंदा रखने का संकेत था। साथ ही, सिद्धारमैया गुट के मंत्री सतीश जरकीहोली ने डिनर मीटिंग बुलाई, जिसमें 4-5 उपमुख्यमंत्री पद और राज्य अध्यक्ष बदलाव की मांग हुई।
यह कलह राज्य प्रशासन को प्रभावित कर रही है, जैसा कि भाजपा का दावा है कि इससे विकास रुक गया है।
कौन किसके साथ ?
सिद्धारमैया ओबीसी नेता, वरिष्ठतम। वे हाईकमान को भरोसा दिला रहे हैं कि वे पूरे 5 वर्ष काम करेंगे। उनके गुट में दलित और आदिवासी विधायक मजबूत हैं (कांग्रेस ने 2023 में 51 आरक्षित सीटों में से 36 जीतीं)। डीके शिवकुमार वीक्षिपू समुदाय के प्रभावशाली नेता। वे धैर्य दिखा रहे हैं, लेकिन उनके 140 विधायकों का दावा कर रहे हैं। उन्होंने कहा, “मैं गुटबाजी में विश्वास नहीं करता, विधायक खुद दिल्ली गए।” वे राज्य अध्यक्ष पद छोड़ने को तैयार हैं, लेकिन सीएम दावे पर अड़े हैं।
जी. परमेश्वरा गृह मंत्री ने 23-24 नवंबर को सीएम पद पर दावा ठोका और शिवकुमार को चुनौती दी। यह नया ट्विस्ट है, जो कलह को और जटिल बना रहा है।
हाईकमान का क्या संदेश ?
मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी और सुरजेवाला। बिहार हार के बाद हस्तक्षेप से बच रहे हैं। 22 नवंबर को सिद्धारमैया से खड़गे की लंबी बैठक हुई, जिसमें फेरबदल स्थगित रखने को कहा गया। खड़गे ने कहा, “सीएम बदलाव का फैसला हाईकमान लेगा।” वे स्टेटस को बनाए रखना चाहते हैं, ताकि 2026 के पड़ोसी राज्यों (केरल आदि) के चुनाव प्रभावित न हों।
सिद्धारमैया ने कहा “कोई नवंबर क्रांति नहीं, यह मीडिया की अफवाह है। हम 5 वर्ष शासन करेंगे। हाईकमान का फैसला मानूंगा, चाहे मुझे बने रहना पड़े या न पड़े।” शिवकुमार बोले “मैं सीएम की कुर्सी के लिए जल्दबाजी में नहीं हूं। जनसेवा के लिए हूं। विधायकों को मैंने नहीं भेजा, वे खुद गए।”
खड़गे ने कहा “कर्नाटक में सीएम बदलाव का फैसला हाईकमान लेगा।” विधायकों से कहा कि “वे बेंगलुरु लौटकर फिर मिलें। सुरजेवाला बोले भाजपा और मीडिया पर मानेगिंग कैंपेन का आरोप लगाया, विधायकों को सार्वजनिक बयान न देने की चेतावनी दी।
कर्नाटक से दिल्ली तक सियासत
कलह से प्रशासन ठप हो रहा है। भाजपा ने 21 नवंबर को कांग्रेस सरकार की ‘हाफ-टर्म रिपोर्ट कार्ड’ जारी की, जिसमें शासन विफलता का आरोप लगाया। बीजापुर विधायक बसनगौड़ा पाटिल यत्नाल ने कहा, “एमएलए खरीदना और सौदेबाजी गलत ट्रेंड है।” दिल्ली में विधायकों का डेरा और हाईकमान की बैठकें राष्ट्रीय राजनीति को हिला रही हैं। कांग्रेस को बिहार हार के बाद कर्नाटक खोने का डर है। इंडिया गठबंधन की कमजोरी बढ़ रही है।
अब क्या होगा आगे ?
सिद्धारमैया को बनाए रखेगा, ताकि स्थिरता बनी रहे। फेरबदल स्थगित रहेगा। अगर शिवकुमार का दबाव कामयाब हुआ, तो 2026 तक सीएम बदलाव हो सकता है। लेकिन बगावत का खतरा बढ़ेगा, जैसा राजस्थान-मध्य प्रदेश में हुआ।विपक्ष इसे भुनाएगा, 2028 चुनावों में कमजोरी दिखाएगा। हाईकमान के फैसले पर सबकी नजरें हैं—यह कर्नाटक को स्थिर करेगा या टूटने की कगार पर ला देगा? आने वाले हफ्तों में स्पष्टता मिल सकती है।







