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दुनिया में वामपंथ पर भारी क्यों पड़ रहा है दक्षिणपंथ?

पहल टाइम्स डेस्क by पहल टाइम्स डेस्क
February 25, 2025
in विशेष, विश्व
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वामपंथ और दक्षिणपंथ
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नई दिल्ली: इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी ने हाल ही में वैश्विक वामपंथी राजनीति को ‘दोहरे मापदंडों’ वाला करार दिया है। उन्होंने कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अर्जेंटीना के राष्ट्रपति जेवियर मिलेई और वह खुद मिलकर एक नए वैश्विक दक्षिणपंथी आंदोलन का निर्माण कर रहे हैं और उसका नेतृत्व कर रहे हैं। मेलोनी ने कहा कि जब ये राष्ट्रवादी नेता राष्ट्रीय हितों और सीमा सुरक्षा की बात करते हैं, तो वामपंथी उन्हें लोकतंत्र के लिए खतरा बताने लगते हैं। उन्होंने कहा कि वामपंथियों का ‘दोहरा चरित्र’ उजागर हो गया है। मेलोनी ने कहा कि अब दुनिया वामपंथ की झूठी कहानियों पर विश्वास नहीं करती और वे राष्ट्रवादी नेताओं पर होने वाली ‘प्रेरित आलोचनाओं’ से परिचित हैं।

इस वक्त पूरी दुनिया में ही दक्षिणपंथी राजनीति उभार पर है। चाहे वह जापान हो, हंगरी या पोलैंड हो, स्लोवाकिया, इटली, नीदरलैंड्स, अमेरिका हो या अर्जेंटीना, सब जगह राइट-विंग का प्रभुत्व बढ़ता नजर आता है। यूरोप में अब यह बदलाव आ रहा है और वहां के दक्षिणपंथी एक सामूहिक विचारधारा की ओर बढ़ते दिखाई दे रहे हैं। जर्मनी में हाल में हुए चुनावों में विश्वयुद्ध के बाद से पहली बार धुर दक्षिणपंथी पार्टी दूसरे नंबर पर है। जानते हैं-क्या वाकई में दुनिया में दक्षिणपंथ का उभार हो रहा है। क्या है पूरी कहानी।

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कैसे आया वाम और दक्षिण का कॉन्सेप्ट

मध्ययुगीन शासनकाल के दौरान राजा के बायी तरफ बैठने वाले वामपंथी तो दायीं तरफ बैठने वाले दक्षिणपंथी कहलाने लगे। वामपंथी जहां शासन की नीतियों में आम जनता की बात करते थे तो वहीं, दक्षिणपंथी राष्ट्रहित को प्रमुखता देते हैं। यहीं से यह कॉन्सेप्ट आया। बाद में रूस,चीन और क्यूबा के नेतृत्व में वामपंथ ने जोर पकड़ा तो वहीं, अमेरिका और यूरोप के देशों में पूंजीवादी शासन व्यवस्था को अपनाया गया।

2024 में 62 देशों में से 25 में दक्षिणपंथी सरकारें

2024 में दुनिया के 62 देशों में चुनाव हुए और इनमें से 25 देशों में दक्षिणपंथी सरकारों ने सत्ता संभाली। यह कुल चुनावों का 42.4% हिस्सा है। इन आंकड़ों के अनुसार, दक्षिणपंथी विचारधारा न केवल मजबूत हो रही है, बल्कि वैश्विक राजनीति का नया रुझान भी बनती जा रही है। जर्मनी में भी दक्षिणपंथ का उभार देखने को मिल रहा है।

जर्मनी में विश्वयुद्ध के बाद से दक्षिणपंथ का उभार

हाल ही में हुए आम चुनावों से पहले ही चांसलर ओलाफ शुल्ज की सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी (SPD) की बड़ी हार हुई है। चौंकाने वाली बात यह है कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पहली बार जर्मनी में दक्षिणपंथी और कट्टर राष्ट्रवादी पार्टी ‘अल्टरनेटिव फॉर जर्मनी’ (AFD) तेजी से उभरते हुए दूसरे नंबर पर रही। 50 साल से कम उम्र के 70% युवाओं ने इसे वोट दिया है।

G-20 में से तीन देशों में दक्षिणपंथ सरकार

2024 में G20 के सात बड़े देशों में आम चुनाव हुए, जिनमें से तीन ने दक्षिणपंथी सरकार चुनी, तीन ने वामपंथी और एक देश में सत्ता अधिनायकवाद की ओर मुड़ गई। अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की रिपब्लिकन पार्टी ने जबरदस्त वापसी करते हुए सत्ता हासिल की। वहीं, भारत में नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन, एक बार फिर जीत का परचम लहराने में कामयाब रहा।

ब्रिटेन में सत्ता परिवर्तन और रूस में ज्यादा सख्त शासन

ब्रिटेन में सालों बाद सत्ता का रुख बदला और कीयर स्टार्मर की केंद्र-वाम लेबर पार्टी ने जोरदार जीत दर्ज की। दूसरी ओर, रूस में व्लादिमीर पुतिन ने बतौर स्वतंत्र नेता अपनी सत्ता बरकरार रखी, लेकिन देश की राजनीति एक नए, अधिक सख्त शासन की ओर मुड़ती नजर आई।

यूरोप में इटली, फिनलैंड और हंगरी में दक्षिणपंथ

यूरोपीय दक्षिणपंथी विचारधाराओं का धीरे-धीरे अमेरिकी दक्षिणपंथ के साथ एकीकरण यूरोपीय संघ के निर्माण और प्रवासियों व बहुसंस्कृतिवाद के मसलों पर वामपंथी रुख के कारण हुआ है। यूरोप में दक्षिणपंथी सरकारों की संख्या लगातार बढ़ रही है। इटली, फिनलैंड, स्लोवाकिया, हंगरी, क्रोएशिया और चेक रिपब्लिक में दक्षिणपंथी नेता सत्ता में हैं। वहीं, स्वीडन और नीदरलैंड में उदारवादी सरकारें बेहद कमजोर स्थिति में हैं। यहां तक कि यूरोपीय संसद में भी दक्षिणपंथी दलों का दबदबा बढ़ता जा रहा है।

इटली में जॉर्जिया मेलोनी दक्षिणपंथ की अगुवा

इटली में 2022 से जॉर्जिया मेलोनी की दक्षिणपंथी सरकार सत्ता में है। यह पहली बार है जब द्वितीय विश्व युद्ध के बाद कोई राइट-विंग नेता इटली का प्रधानमंत्री बना है। मेलोनी की पार्टी ‘ब्रदर्स ऑफ इटली’ राष्ट्रवाद और पारंपरिक ईसाई मूल्यों को बढ़ावा देती है। उनकी नीतियाँ आप्रवासन पर सख्त नियंत्रण और यूरोपीय संघ की नीतियों से स्वतंत्रता पर केंद्रित हैं।

हंगरी में विक्टर ओर्बान की मजबूत पकड़

हंगरी में विक्टर ओर्बान की पार्टी ‘फिडेस’ लंबे समय से सत्ता में है। ओर्बान की सरकार यूरोपीय संघ की नीतियों से अलग अपनी सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखने और प्रवासियों के प्रवेश को नियंत्रित करने पर जोर देती है।

पोलैंड में PIS पार्टी का दबदबा

पोलैंड में ‘लॉ एंड जस्टिस पार्टी’ (PiS) दक्षिणपंथी राष्ट्रवादी विचारधारा पर चल रही है। यह सरकार कैथोलिक परंपराओं, न्यायिक सुधारों और यूरोपीय संघ के नियमों पर स्वायत्तता बनाए रखने के लिए काम कर रही है।

अमेरिका में ट्रंप दक्षिणपंथी राजनीति के अगुवा बने

अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की रिपब्लिकन पार्टी दक्षिणपंथी विचारधारा की प्रमुख प्रतिनिधि रही है। ट्रंप की नीतियां ‘अमेरिका फर्स्ट’, सीमाओं की सुरक्षा और व्यापारिक राष्ट्रवाद को बढ़ावा देती हैं। 2024 के राष्ट्रपति चुनावों में ट्रंप की वापसी ने अमेरिका में दक्षिणपंथी राजनीति को और मजबूती दी है।

दक्षिण अमेरिका के अर्जेंटीना और ब्राजील में में दक्षिणपंथ

अर्जेंटीना में जेवियर माइली की सरकार भी दक्षिणपंथी नीतियों पर आधारित है। वे मुक्त बाजार और कर कटौती को बढ़ावा देने के पक्षधर हैं। हालांकि जायर बोल्सोनारो हाल ही में सत्ता से बाहर हुए हैं, लेकिन उनकी नीतियां अब भी ब्राजील में प्रभावी हैं। उनकी सरकार ने कानून-व्यवस्था, बंदूक रखने के अधिकार और पर्यावरण नीतियों में बदलाव पर ज़ोर दिया था।

भारत में मोदी और इजरायल में नेतन्याहू ने संभाली कमान

भारत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार हिंदू राष्ट्रवाद, आर्थिक सुधार और आत्मनिर्भर भारत की नीति को आगे बढ़ा रही है। भाजपा सरकार ने राष्ट्रवादी नीतियों को प्राथमिकता दी है, जिसका असर भारत की विदेश नीति और आंतरिक राजनीति में देखा जा सकता है। वहीं, इज़रायल में बेंजामिन नेतन्याहू की दक्षिणपंथी सरकार सत्ता में है। उनकी नीतियां सुरक्षा, इजरायली संप्रभुता और फिलिस्तीनी मुद्दों पर कठोर रुख अपनाने पर केंद्रित हैं।

दक्षिणपंथ का दुनिया में क्या असर होता है

  • दक्षिणपंथी सरकारें आमतौर पर राष्ट्रवाद, सांस्कृतिक संरक्षण और आर्थिक संरक्षणवाद पर जोर देती हैं।
  • अंतरराष्ट्रीय सहयोग में बदलाव: दक्षिणपंथी सरकारें बहुपक्षीय संगठनों (जैसे यूरोपीय संघ और संयुक्त राष्ट्र) पर सवाल उठाती हैं और अपनी स्वतंत्रता को प्राथमिकता देती हैं।
  • आप्रवासन नीतियों में सख्ती: प्रवासियों पर कड़े प्रतिबंध लगाना और अपने देश की सांस्कृतिक पहचान को सुरक्षित रखना इनकी प्रमुख नीतियां हैं।
  • राष्ट्रवाद और संरक्षणवाद: घरेलू उद्योगों को बढ़ावा देना और वैश्विक व्यापार संधियों पर पुनर्विचार करना इनकी विशेषता है।
  • रूढ़िवादी सामाजिक नीतियां: पारंपरिक पारिवारिक मूल्यों को बढ़ावा देना और प्रगतिशील सामाजिक एजेंडों का विरोध करना इनका प्रमुख एजेंडा है।

क्या दक्षिणपंथी राजनीति का यह दौर जारी रहेगा?

प्यू रिसर्च सेंटर की रिपोर्ट ग्लोबल इलेक्शंस इन 2024 के मुताबिक, राजनीतिक असंतोष और नेताओं पर अविश्वास ने दुनिया भर में लोकलुभावन (पॉपुलिस्ट) आंदोलनों को बढ़ावा दिया है। अमेरिका, जर्मनी और मैक्सिको में बढ़ते दक्षिणपंथ और वामपंथी पॉपुलिज्म का उभार इस प्रवृत्ति को दर्शाता है।

दक्षिणपंथ नेता आखिर क्या चाहते हैं

हंगरी के ओर्बन, पोलैंड के डूडा, इटली की मेलोनी और नीदरलैंड्स के वाइल्डर्स को लें। वे सभी एक बात पर सहमत हैं। वे चाहते हैं कि यूरोप अपने मूल में ईसाई बने रहें, लेकिन उसके मानदंड और नियम सभी के लिए समान हों। अपर्याप्त अवसरों और भेदभाव का हवाला देकर दंगों को जायज नहीं ठहराया जा सकेगा।

भारतीय दक्षिणपंथ इसीलिए बना विश्व गुरु

डॉ. राजीव रंजन गिरि कहते हैं कि भारतीय दक्षिणपंथ विश्वगुरु सिद्ध होता है, क्योंकि सभ्यतागत राज्य शब्द को उसी ने गढ़ा है। यह महत्वपूर्ण है, क्योंकि भारत में हिंदू धर्म के अंतर्गत कई अलग-अलग शाखाएं समाहित हुई हैं- शाक्त, शैव, वैष्णव। कई तो बौद्ध, जैन, सिख धर्मों को भी एक व्यापक सनातन परम्परा का ही हिस्सा मानते हैं। यह एक बुनियादी सांस्कृतिक और सभ्यतागत एकता है। जबकि यूरोप में कैथोलिक, प्रोटेस्टेंट, कैल्विनवादी, लूथरन, ऑर्थोडॉक्स आदि होने के बावजूद सभ्यतागत एकता पर जोर नहीं दिया गया था।

यूरोपीय यूनियन में ज्यादातर देश दक्षिणपंथी सत्ता में

दिल्ली यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर डॉ. राजीव रंजन गिरि कहते हैं कि एक अजीब बात ये है कि यूरोपीय यूनियन के अधिकांश देश ऐसे हैं, जहां दक्षिणपंथी सत्ता में हैं। हालांकि, एक संस्थान के रूप में वह वामपंथी बना हुआ है और एक ऐसे संविधानेतर संगठन के रूप में काम करता है, जो किसी के प्रति उत्तरदायी नहीं।

अमेरिका में दक्षिणपंथ के चलते आप्रवासन विरोध

भारतीय दक्षिणपंथ की तरह यूरोपीय दक्षिणपंथ भी अब कुछ हद तक लेफ्ट की ओर झुकता चला गया है। इन मायनों में कि वह सामाजिक कल्याण और सामाजिक न्याय में विश्वास करता है। अमेरिका में ऐसा नहीं है। जहां अमेरिकी दक्षिणपंथी यूरोपीय दक्षिणपंथियों के समान ही आप्रवासन और बहुसंस्कृतिवाद के विरोधी हैं और राज्यसत्ता का नियंत्रण पसंद नहीं करते, वहीं वे अभी भारतीय दक्षिणपंथ की संस्थागत परिपक्वता के स्तर पर नहीं आ सके हैं।

भारतीय और यूरोपीय दक्षिणपंथ में क्या फर्क है

भारतीय दक्षिणपंथ अपने सांस्कृतिक-राष्ट्रवाद के कारण ठोस बुनियाद पर टिका है और एक सभ्यतागत राष्ट्र का निर्माण कर रहा है। लेकिन यूरोपियन दक्षिणपंथ ऐसा तभी कर पाएगा, जब वह यूरोपियन देशों के साथ ही ईयू की प्रकृति में भी बदलाव ला सके।

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