कौशल किशोर | twitter @mrkkjha
हिमालय दरक रहा है। जोशीमठ की जेपी कॉलोनी के नीचे का जलश्रोत 2 जनवरी को फट गया था। इसके बाद से दरार तेजी से फैलने लगा और जमीन भी धंसने लगी। इसकी वजह से भय का माहौल व्याप्त हो गया है। छह हजार फीट से अधिक ऊंचाई पर स्थित आदि शंकराचार्य का ज्योतिर्मठ और कत्यूरी साम्राज्य की राजधानी संकट में है। भारत को तिब्बत व चीन से जोड़ने वाले सिल्क रूट पर उन्होंने भारतीय ज्ञान परंपराओं का पुनर्पाठ किया था।
आज एक बार फिर सभी निगाहें जोशीमठ पर टिकी हैं। हिमालय में हो रहे घटनाक्रम को पूरी दुनिया देख भी रही है। प्रधानमंत्री मोदी उत्तराखंड के मुख्यमंत्री को इसकी गंभीरता बताते हैं। नई दिल्ली से लेकर देहरादून और चमोली तक सभी सक्रिय हैं। ब्रिटिश उपनिवेशवाद की खुमारी में पनपे पीएम, सीएम और डीएम के पूरे कुनबे को जमीन पर उतरना पड़ा है।
एनटीपीसी गो बैक! इस नारे के साथ लोग सड़कों पर हैं। मुआवजे की मांग करने में भी कम नहीं लगे हैं। बद्रीनाथ कॉरिडोर में दुकानों को मिले मुआवजे से कम कुछ भी नहीं। नौकरशाही इस बीच बहुत व्यस्त है। बेघर हुए लोगों को सुरक्षित स्थान पहुंचाने के साथ चार हजार पूर्वनिर्मित भवन हेतु सामग्री की व्यवस्था खूब किया है। आखिर सोमवार को शीर्ष अदालत भी याचिका को निपटा देती है। इसमें ज्योतिर्मठ के नवीन शंकराचार्य की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। शासन और प्रशासन जोशीमठ में अस्तित्व का संकट दूर करना सुनिश्चित कर सके, इस आशा के साथ सुप्रीम कोर्ट ने इसमें तत्काल सुनवाई से इनकार किया था। अब संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत उन्हें उच्च न्यायालय जाने का इशारा करती है।
इस बीच प्रधानमंत्री कार्यालय ने जोशीमठ को भूस्खलन प्रभावित क्षेत्र घोषित किया।विशेषज्ञों से स्थिति में सुधार के लिए अल्प कालिक और दीर्घ कालिक योजना तैयार करने को कहा है। विशेषज्ञ समित अध्ययन पूरा कर निष्कर्ष साझा करेगी। अब राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) ने भी सरकारी एजेंसियों को इस पर टिप्पणी करने से बचने का सुझाव देती है।
नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन (एनटीपीसी) की 520 मेगावाट क्षमता वाली तपोवन विष्णुगाड़ जलविद्युत परियोजना (टीवीएचपी) जोशीमठ के करीब है। राज्य का प्रशासन निर्माण कार्य रोकने के लिए कहती है। लेकिन प्रोजेक्ट का काम रुकने का नाम ही नहीं लेता है। एनटीपीसी इस विनाश के लिए किसी तरह की जिम्मेदारी नहीं लेती है। केन्द्र और राज्य की सरकारें इसे मानने को बाध्य प्रतीत होती है। केंद्रीय बिजली मंत्री की उत्तराखंड सरकार को दिए सलाह में इसी का संकेत है। इस मामले में केंद्रीय गृह मंत्रालय के साथ चर्चा भी चल रही है। एनटीपीसी सुरंग जोशीमठ शहर के नीचे से नहीं गुजरती है। साथ ही कारक के तौर पर जल रिसाव व निकासी, भारी बारिश, भूकंप और निर्माण कार्यों को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है।
इसके साथ रूलिंग क्लास व पॉलिटिकल क्लास का समीकरण जनता के बीच है। सड़क पर जमा लोग भी दो बातों पर अड़े हैं। समुचित मुआवजे की मांग और नए व पुराने विकास परियोजनाओं पर रोक की बात चल रही। विशेषज्ञों ने शहर को बचाने के लिए विकास कार्यों की त्रुटियों को स्पष्ट कर दिया है। दुर्भाग्यवश उनके सुझाव की परवाह करने वाला कोई नहीं है।
ज्योतिर्मठ में रवि चोपड़ा जैसे विशेषज्ञ व अतुल सती जैसे कार्यकर्ता हिमालय की तस्वीर खूब पेश करते हैं। यहां पर जनता आपसी सहयोग और समन्वय की भावना से जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के नाम पर एकजुट होती है। वहीं जेपी कॉलोनी में बैडमिंटन कोर्ट के आसपास 70 सेंटीमीटर तक जमीन धंस गया है। कहीं और 7-10 सेंटीमीटर जमीन धंसती है। सौ से अधिक पीड़ित आश्रय गृहों में हैं और हजारों लोग बाट जोह रहे हैं।
यह संकट केवल उत्तराखंड तक ही सीमित नहीं है। हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले का गांव झरौता शिमला से चार सौ किलोमीटर दूर है। इसके दो सौ लोगों की आबादी भी आज सुरंग, जलविद्युत परियोजनाओं और आधुनिक विकास दृष्टि का शिकार हुए हैं। भूटान की पत्रकार दावा ग्येल्मो और अन्य लोगों ने दरारों और इसके लिए जिम्मेदार कंपनियों द्वारा भुगतान पर रपट पेश किया हैं। उत्तराखंड में पाँच सौ से अधिक गाँवों के अलावा, कर्णप्रयाग और नैनीताल जैसे शहर भी जोशीमठ जैसी स्थिति में पहुंच सकते हैं। स्मार्ट सिटी योजना की पाइप लाइन के कारण उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ और बागपत जिले में दरार फटने लगी है। बनारस के घाट से जमीन धंसने और दरार फटने की खबर आ रही है। आसन्न खतरे का दायरा जोशीमठ तक सीमित नहीं है।
थर्मल पावर कॉरपोरेशन की कल्पना देश में कोयले से चलने वाली बिजली के लिए किया गया था। हिमालय की घाटी में आज थर्मल पावर पैदा करने के बदले जलविद्युत परियोजना बनाने में लगी है। परियोजना का राजनीतिक अर्थशास्त्र ठेकेदारों के ही सौजन्य से पूरा होता है। हिमालय में आज जेपी और लार्सन एंड टुब्रो की ठेकेदारी है। कोयले की तरह यह राजनीतिक अर्थशास्त्र भी काला है। केदारनाथ में 2013 में आई आपदा और 2021 में ऋषि गंगा की बाढ़ भी इसी कहानी का अंग है। 2 जनवरी से पहले भी दो बार जलश्रोत फटने के बारे में विशेषज्ञों ने साफ कहा है। एक दुर्घटना में टनल बोरिंग मशीन ने प्राकृतिक जलश्रोत को 2009 में ही पंचर कर दिया था। इस सिलसिले का दोहराव भी सुर्खियों में है। 7 फरवरी 2021 को अचानक आई बाढ़ के बाद ही स्थानीय लोगों के घरों और खेतों में दरारें दिखने लगी थी। विशेषज्ञ समिति को अध्ययन पूरा करने में समय लगेगा। वर्षों से जोशीमठ के संरक्षण में लगे विशेषज्ञों और कार्यकर्ताओं के दावों की पुष्टि तभी हो सकेगी।
यह शहर एक भूस्खलन के मलबे पर बसा है। इस तरह यह नाजुक पहाड़ी क्षेत्र अपने ही विनाशकारी भाग्य के भरोसे है। शास्त्रों में जोशीमठ को योशिका और योशी कहा गया है। यह दो मंदिरों (कैलाश मानसरोवर और बद्रीनाथ) का प्रवेश द्वार माना जाता है। माणा और नीति जैसे दो गांव तिब्बत और चीन से हमें जोड़ते हैं। मंदिर के साथ एक मिथक भी जुड़ा है। यह इसके विनाश के समय को ही इंगित करता है। सितंबर 1997 के अंतिम सप्ताह में जोशीमठ की तीर्थयात्रा के दौरान एक दिन मुझे इसका पता चला था। इस पहाड़ी नगर के भाग्य और भविष्य के बद्रीनाथ की जगह से जुड़ी भविष्यवाणी बताने के लिए ही श्री नरसिंह मंदिर के पुजारी ने इसका वर्णन किया था। आधुनिक विज्ञान के युग में इतिहास भी दो खण्ड में विभाजित हो गया है। इसी बीच पसरे अंधकार में भारतीय संस्कृति के ज्ञान की रोशनी भी गुम हो गई है। कयामत के दिन के सतत चर्चा के बाद भी शहर उसी नियति की ओर बढ़ रहा है। आज दोनों ही ज्ञान परंपराएं मौजूदा संकट को दूर करने में असफल ही साबित हुई है।
हिमालय की तुलना अरावली और आल्प्स से नहीं की जा सकती। तीसरा ध्रुव इस वर्ष की शुरुआत से ही कड़ाके की ठंड में उबल रहा है। मीराबेन (मैडलिन स्लेड) समथिंग रांग इन हिमालया लिख कर हिमालय की ओर शेष दुनिया का ध्यान आकृष्ट करती हैं। फिर एक दशक बाद 1962 में ब्रिटिश औपनिवेशिकता का प्रकोप चीन व भारत के युद्ध से प्रकट हुआ था। भू-राजनीतिक वास्तविकताएं भारत के इस दुर्गम हिस्से को तभी से परेशान कर रही है।
सत्तर के दशक से चिपको आंदोलन की भावना के साथ गौरा देवी और उनका रेणी गांव चर्चा में हैं। हिमालय के दरकने की इस घटना से पहले ही उनकी नई पीढ़ियों ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से बातचीत किया था। संकट को दूर करने के लिए आवश्यक पहल हो, इसमें सफलता नहीं मिली। हाल ही में मुख्यमंत्री ने भूकम्प के डर के बावजूद जोशीमठ का दौरा किया। आज जोशीमठ में ज्योतिर्मठ दिख रहा है, किन्तु रौशनी लुप्त हो चुकी है। भविष्य में भी यह अंधेरा व्याप्त रहेगा। इसका डर सताने लगा है।