बात 1963 की है। उत्तर प्रदेश की फर्रुखाबाद लोकसभा सीट पर उप चुनाव हो रहे थे। फर्रुखाबाद संसदीय क्षेत्र- पांच विधान सभा क्षेत्रों से मिलकर बना था। 1963 तक इस सीट का प्रतिनिधित्व एक ब्राह्मण वकील मूल चंद दुबे कर रहे थे। उनके निधन से यह सीट खाली हुई थी। उपचुनाव में चार उम्मीदवारों, बी वी केसकर (कांग्रेस), राममनोहर लोहिया (सोशलिस्ट पार्टी), भरत सिंह राठौर (प्रजा सोशलिस्ट पार्टी) और साथी छेदीलाल (रिपब्लिकन) ने 15 अप्रैल, 1963 को नामांकन दाखिल किया था। इन चारों में सिर्फ भरत सिंह राठौर ही स्थानीय उम्मीदवार थे, बाकी सभी बाहरी थे।
18 मई, 1963 को होने वाले इस चुनाव में डॉ. राम मनोहर लोहिया के चेले और समाजवादी नेता मुलायम सिंह यादव उनका चुनाव प्रचार कर रहे थे। ये वो दौर था, जब युवा मुलायम राजनीति की सीढ़ी चढ़ ही रहे थे। उनके पास पैसों को घोर अभाव था लेकिन उनके सियासी हौसले बहुत मजबूत थे। वह समर्थकों के भरोसे इलाके में मजबूत पकड़ रखते थे।
इसी चुनाव प्रचार के दौरान मुलायम सिंह को विधुना विधानसभा क्षेत्र में प्रचार की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। जब चुनाव प्रचार के दौरान बीच रास्ते में मुलायम सिंह यादव की मुलाकात राम मनोहर लोहिया से हुई, तो डॉ. लोहिया ने मुलायम से पूछ डाला कि प्रचार के दौरान खाते क्या हो, रहते कहां हो? इस पर मुलायम ने जो जवाब दिया था, उसे सुनकर लोहिया दंग रह गए थे।
मुलायम ने तब डॉ. लोहिया से कहा था कि लइया चना रखते हैं, गांवों में लोग भी खिला देते हैं और जहां रात होती है, उसी गांव में सो जाते हैं। तब डॉ. लोहिया ने मुलायम सिंह यादव के कुर्ते में 100 रुपये का नोट चुपचाप रख दिया था। मुलायम सिंह को डॉ. लोहिया के बाद दूसरे सबसे बड़े समाजवादी नेता चौधरी चरण सिंह का भी आशीर्वाद मिला। मुलायम सिंह को लोहिया का उत्तराधिकारी भी कहा जाता है।
जब इस चुनाव के नतीजे आए तो डॉ. लोहिया विजयी घोषित किए गए। उन्होंने अपने निकटम प्रतिद्वंद्वी, कांग्रेस के उम्मीदवार डॉ. केसकर को 50,000 से अधिक वोटों से मात दी थी। इस तरह डॉ. लोहिया पहली बार संसद पहुंचे, जिसमें मुलायम सरीखे नेताओं की बड़ी भूमिका रही।
इससे पहले 1962 में डॉ. लोहिया ने फूलपुर संसदीय सीट से तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के खिलाफ चुनाव लड़ा था लेकिन वो चुनाव हार गए थे। लोहिया को पंडित नेहरू का कट्टर विरोधी माना जाता रहा है। संसद में अक्सर दोनों नेताओं के बीच गर्मागरम बहस हो जाया करती थी।
डॉ. राममनोहर लोहिया का जन्म 23 मार्च, 1910 को आधुनिक उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के अकबरपुर में एक व्यापारी परिवार में हुआ था। जब वह दो वर्ष के थे, तभी उनकी माँ का निधन हो गया था। इसके बाद उनका पालन-पोषण उनके दादा-दादी ने किया था। इसी दौरान लोहिया भारतीय राष्ट्रवाद के प्रति अपने पिता के जुनून से प्रभावित हुए। लोहिया ने विदेश जाने से पहले पहले वाराणसी और फिर कलकत्ता में अध्ययन किया।
भारत में नमक पर ब्रिटिश टैक्स लगाने पर अपनी पीएचडी थीसिस पूरी करने के बाद उन्होंने बर्लिन से डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की थी। उन की पीएचडी थीसिस देश भर में युवाओं पर गांधी के नमक सत्याग्रह के प्रभाव का एक प्रारंभिक प्रमाण था।
1967 में लोहिया ने उत्तर प्रदेश में पहली गैर-कांग्रेसी सरकार के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसी सरकार में मुलायम सिंह को पही बार मंत्री बनाया गया था। यह गठबंधन लोहिया और भारतीय जनसंघ के नेता नानाजी देशमुख द्वारा बनाया गया था। उन्होंने 1967 का लोकसभा आम चुनाव कन्नौज से जीता था, लेकिन कुछ महीने बाद ही उनका निधन हो गया था।