निशिकांत ठाकुर
संभवतः आज कोई ऐसा आरोप नहीं है, जो उनके द्वारा सीधा सीधा प्रधानमंत्री और उनकी सरकार के महत्वपूर्ण व्यक्तियों पर उन्होंने न केवल लगाया हो, वरन अपनी बातों को बल देने के लिए पूर्व राज्यपाल कहते हैं कि ‘अधिक से अधिक यही होगा कि मुझे जेल में डाल दिया जाएगा- मैं उसके लिए भी तैयार हूं।’ वैसे यह बात बिलकुल सही है कि श्री मलिक अपने पद पर कार्यरत होते हुए भी कई बार सरकार से खुलकर पंगा लेते रहे हैं।
डंके की चोट पर खुलेआम लगा रहे हैं प्रधानमंत्री पर आरोप
इन मामलों में आज सबसे ताजा उदाहरण किसान आंदोलन का रहा है, जब उन्होंने किसान की मांगों का समर्थन किया था और सरकार को चेतावनी भी दी थी, लेकिन अब तो उन्होंने उग्र रूप धारण कर लिया है और डंके की चोट पर खुलेआम प्रधानमंत्री पर आरोप लगा रहे हैं कि ‘प्रधानमंत्री को करप्शन से कोई नफरत नहीं है।’ जबकि, प्रधानमंत्री की छवि ही भ्रष्टाचार मुक्त भारत बनाने की रही है। इस तरह के झूठे निर्मूल आरोप लगाने का हश्र भी मजे हुए राजनीतिज्ञ मलिक जानते ही होंगे। यह उनके आत्मविशास का ही कमाल है जिसके कारण उन्होंने खुलेआम चुनौती देते हुए देश के शीर्ष राजनेताओं पर आरोप लगाया है।
साक्षात्कार में 2019 के पुलवामा हमले के लिए केंद्र सरकार को ज़िम्मेदार बताया
जम्मू और कश्मीर के पूर्व राज्यपाल ने जाने-माने पत्रकार करण थापर को दिए एक साक्षात्कार में 2019 के पुलवामा हमले के लिए केंद्र सरकार को ज़िम्मेदार बताते हुए कई सनसनीखेज़ दावे किए हैं। उन्होंने आरोप लगाया है कि 2019 में कश्मीर के पुलवामा में सीआरपीएफ के काफ़िले पर हुआ हमला सिस्टम की ‘अक्षमता’ और ‘लापरवाही’ का नतीजा था। मलिक इसके लिए सीआरपीएफ और केंद्रीय गृह मंत्रालय को ख़ासतौर पर से ज़िम्मेदार बताते हैं। उस समय राजनाथ सिंह गृहमंत्री थे।
मलिक ने कहा कि सीआरपीएफ ने सरकार से अपने जवानों को ले जाने के लिए विमान उपलब्ध कराने की मांग की थी, लेकिन गृह मंत्रालय ने ऐसा करने से इनकार कर दिया था। वैसे, आज देश में दो ही मुद्दे अपने चरम पर हैं, पहला तो पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मालिक का आरोप और दूसरा गर्म मुद्दा प्रयागराज में हुए अतीक अहमद और उसके भाई की सरेआम पुलिस की मौजूदगी में हुई हत्या।
अतीक अहमद की हत्या पर तो फिर कभी चर्चा कर लेंगे; क्योंकि आजकल इलेक्ट्रानिक मीडिया हो या प्रिंट, सभी इस हत्या पर अलग- अलग तरीके से टिप्पणी कर रहे हैं। एक मुद्दा जो देश के लिए शर्मनाक है, उस पर आज तक किसी भी मीडिया में कोई चर्चा नहीं हुई है और न ही किसी टीवी चैनल पर कोई पंचायत ही कर रहा है ।
अब यह जानने का प्रयास करते हैं कि आखिर सत्यपाल मलिक का पिछला इतिहास क्या रहा है। सत्यपाल मलिक (जन्म 24 जुलाई, 1946) भारतीय राजनीतिज्ञ हैं। मेरठ के एक कॉलेज से उन्होंने पढ़ाई की है। 30 सितंबर, 2017 से 21 अगस्त तक बिहार राज्य के राज्यपाल रहे। इससे पहले अलीगढ़ सीट से 1989 से 1991 तक जनता दल की तरफ से सांसद रहे। 1996 में समाजवादी पार्टी की तरफ से चुनाव लड़े, लेकिन हार गए।
मलिक ने अगस्त 2018 से अक्टूबर 2019 तक जम्मू और कश्मीर के तत्कालीन राज्य के अंतिम राज्यपाल के रूप में कार्य किया, और यह उनके कार्यकाल के दौरान था कि 5 अगस्त 2019 को जम्मू और कश्मीर की विशेष स्थिति को रद्द कर दिया गया। बाद में उन्हें स्थानांतरित कर दिया गया। गोवा के 18वें राज्यपाल के रूप में और उसके बाद उन्होंने अक्टूबर 2022 तक मेघालय के 21वें राज्यपाल के रूप में कार्य किया। राजनेताओं के रूप में उनका पहला प्रमुख कार्यकाल 1974-77 के दौरान उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य के रूप में था।
वे 1980 से 1986 और 1986-89 तक राज्यसभा में उत्तर प्रदेश का प्रतिनिधित्व किया। वह 1989 से 1991 तक जनता दल के सदस्य के रूप में अलीगढ़ से नौवीं लोकसभा के सदस्य थे। वह अक्टूबर 2017 से अगस्त 2018 तक बिहार के राज्यपाल रहे हैं। 21 मार्च 2018 को उन्हें 28 मई 2018 तक ओडिशा के राज्यपाल के रूप में सेवा देने का अतिरिक्त प्रभार भी दिया गया। अगस्त 2018 में उन्हें जम्मू और कश्मीर का राज्यपाल नियुक्त किया गया।
सोशल मीडिया के ट्विटर, फेसबुक के साथ वॉट्सएप पर सत्यपाल मलिक के साक्षात्कार पर ही कई लोगों ने बहुत कुछ लिखा है और मालिक की जी भरकर आलोचना की गई है। किसी भी व्यक्ति ने या आलोचक ने इस साक्षात्कार पर यह नहीं कहा है कि जिन लोगों का नाम भ्रष्टाचार के मामले में मालिक ने लिया है, उनकी जांच कराई जाए और यदि किसी भी तरह से कोई सच में दोषी हो, तो उसके विरुद्ध भारतीय कानून के तहत कार्यवाही हो। और हां, यदि सत्यपाल मालिक का आरोप सफेद झूठ हो और प्रधानमंत्री की छवि को खराब करने का मात्र एक षड्यंत्र हो तो उनके विरुद्ध भारतीय कानून का तहत कार्यवाही हो।
सभी समाचार एजेंसी ने, चाहे वह इलेक्ट्रानिक हो अथवा प्रिंट, क्या उन्होंने यह मान लिया है कि जो आरोप श्री मलिक द्वारा लगाए गए हैं, उसे यदि अधिक दिखाया गया या इस पर अधिक लिखा गया, तो सरकार गिर जाएगी अथवा प्रलय आ जाएगा? यह बड़ा अजीब लगता है कि किसी ने कुछ कहा और हमने यह मान लिया कि जो कहा जा रहा है, वह ब्रह्मसत्य है। वह सत्य नहीं भी हो सकता है, असत्य भी हो सकता है, लेकिन यह निर्णय तभी लिया जा सकता है, जब उसकी निष्पक्ष जांच कराकर सत्य को सामने लाया जाएगा।
समझ में यह बात नहीं आती कि इन छोटी-छोटी बातों पर सरकार ध्यान क्यों नहीं देती है और चाहती है वह ऐसे आरोपों से कन्नी काटकर बच निकलेगी या आरोपों की उपेक्षा कर देगी या जनता नजरंदाज कर देगी? तो यह उसका भ्रम है, क्योंकि हमारे देश की लगभग शिक्षित जनता अब इस तरह के आरोपों को भूलती नहीं और मौकों की तलाश में रहती है कि जब उसे समय मिलेगा, वह सत्य जानकर रहेगी और झूठ बोलने वालों को सबक सिखाएगी।
क्या सरकार यह समझ रही है कि इन आरोपों से बचकर निकल जाएगी, तो प्रायः ऐसा होता नहीं। अभी सरकार पर दो बड़े गंभीर लगाए गए हैं— पहला, राहुल गांधी ने संसद में और संसद के बाहर सरकार ही नहीं, सीधे प्रधानमंत्री से पूछा है कि अदाणी समूह को जो 20 हजार करोड़ रुपये दिए गए, वे किसके थे और दूसरा आरोप सीधे प्रधानमंत्री पर लगाते हुए पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने 300 करोड़ रुपये की घूस देने की बात कही है। साथ ही पुलवामा में शहीद हुए 40 सेना के जवानों की शहादत का जो गंभीर आरोप लगाया है, कम से कम इन सभी मामलों का उत्तर तो सरकार को देना ही चाहिए।
जनता यह समझना चाहती है कि सत्यपाल मलिक ने जो आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री ने उन्हें घटना की सूचना देने पर जो चुप रहने के लिए कहा था, अब इस तरह देश की जनता को चुप नहीं कराया जाना चाहिए और जांच के माध्यम से दूध का दूध और पानी का पानी उनके सामने लाया जाना चाहिए, यही हमारा संविधान कहता है और यही हमारी जनता भी चाहती है, क्योंकि जब हम विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र को चलाएंगे तो कुछ न कुछ कमी तो रहेगी और आरोप तो लगते ही रहेंगे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं)