विवेक तिवारी
नई दिल्ली। देश के ज्यादातर हिस्से भले मानसून की जद में आ गए हैं, चंद रोज पहले तक अनेक राज्य रिकॉर्डतोड़ हीटवेव से जूझ रहे थे। जून महीने में इसकी वजह से देश में लगभग 100 लोगों को जान गंवानी पड़ी। कई अध्ययन बताते हैं कि जलवायु परिवर्तन के चलते आने वाले समय में गर्मी बढ़ने की आशंका है। साइंस डायरेक्ट में छपी एक अध्ययन रिपोर्ट में वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि पिछले 50 सालों में हीटवेव में 62.2% और बिजली गिरने की घटनाओं में 52.8% फीसदी तक की बढ़ोतरी हुई है। यह अध्ययन 1970 से 2019 के बीच मौसम विभाग विभाग की ओर से जारी डेटा के आधार पर किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक पिछले 50 सालों में हीटवेव के चलते लगभग 17000 लोगों की जान गई है।
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के पूर्व सचिव एम राजीवन के साथ वैज्ञानिकों कमलजीत रे, एसएस रे, आर के गिरि और ए पी डिमरी ने ये अध्ययन किया है। राजीवन कहते हैं कि जलवायु परिवर्तन के चलते तापमान तेजी से बढ़ रहा है। इसके चलते आने वाले समय में हीटवेव की घटनाएं बढ़ेंगी। इस साल बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में हीटवेव के चलते लोगों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। पिछले दो दशकों में आंध्र प्रदेश, बिहार, ओडिशा, असम, महाराष्ट्र, केरल और पश्चिम बंगाल जैसे अधिक जनसंख्या वाले राज्यों में एक्स्ट्रीम वेदर इवेंट के चलते बड़ी संख्या में लोगों की जान गई। इन राज्यों में आपदा प्रबंधन की तैयारियों पर विशेष तौर पर ध्यान देने की जरूरत है। इस अध्ययन का उद्देश्य सरकार को आपदा प्रबंधन की तैयारियों के लिए इनपुट प्रदान करना था।
मौसम वैज्ञानिक समरजीत चौधरी के मुताबिक इस साल पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार के कुछ इलाकों में हीटवेव कंडीशन काफी लम्बे समय तक बनी रही। देश के इस हिस्से में इस साल एक महीने से ज्यादा समय तक हीटवेव की स्थिति रही। ऐसा सामान्य तौर पर नहीं होता है। आम तौर पर बिहार के पहाड़ी इलाकों में मौसम में बदलाव के चलते इस इलाके में बीच बीच में हल्की बारिश और तेज हवाएं बनी रहती हैं, लेकिन इस साल इस तरह के इवेंट नहीं हुए। वहीं मानसून में देरी के चलते बंगाल की खाड़ी से आने वाली नम हवाएं भी काफी दिनों तक इस इलाके में नहीं आईं। इसी के चलते हीटवेव की स्थिति काफी लम्बे समय तक बनी रही।
कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में रामित देबनाथ और उनके सहयोगियों द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार, भारत का 90 फीसदी हिस्सा हीटवेव के बेहद खतरनाक जोन में है। पूरी दिल्ली हीटवेव के इस डेंजर जोन में है। रिपोर्ट के मुताबिक आने वाले समय में हीटवेव की वजह से देश में लोगों की कार्यक्षमता 15 फीसदी तक घट सकती है। यह 480 मिलियन लोगों के जीवन की गुणवत्ता को भी कम कर सकती है। वहीं 2050 तक हीटवेव से निपटने के लिए सकल घरेलू उत्पाद का 2.8 प्रतिशत तक खर्च करना पड़ सकता है।
इंटीग्रेटेड रिसर्च एंड एक्शन फॉर डेवलपमेंट और कनाडा की संस्था इंटरनेशनल डेवलपमेंट रिसर्च सेंटर की ओर से दिल्ली और राजकोट शहरों के लिए हीटवेव दिनों की संख्या में वृद्धि का विश्लेषण किया गया है। इसकी रिपोर्ट के मुताबिक 2018 में दिल्ली में 49 दिनों तक हीटवेव दर्ज की गई जो 2019 में बढ़ कर 66 दिन हो गई, जो एक साल में लगभग 35% वृद्धि दर्शाता है। वहीं 2001 से 2010 के आंकड़ों पर नजर डालें तो हीटवेव के दिनों में 51% की वृद्धि दर्ज हुई। राजकोट की बात करें तो 2001-10 के बीच कुल 39 दिन हीट वेव दर्ज की गई। ये संख्या 2011 से 2021 के बीच बढ़ कर 66 दिनों तक पहुंच गई।
इंटीग्रेटेड रिसर्च एंड एक्शन फॉर डेवलपमेंट के डिप्टी डायरेक्टर रोहित मगोत्रा के मुताबिक 21वीं सदी में हीटवेव की आवृत्ति और तीव्रता बढ़ने की आशंका है। हाल ही में आई 6वीं आईपीसीसी रिपोर्ट में पृथ्वी की सतह के 2.0 डिग्री फ़ारेनहाइट (1.1 डिग्री सेल्सियस) के आसपास गर्म होने पर चेतावनी दी गई है। इससे भविष्य में वैश्विक औसत तापमान और हीटवेव में वृद्धि होगी।
कब होता है हीटवेव
आईएमडी का कहना है कि हीटवेव तब होता है, जब किसी जगह का तापमान मैदानी इलाकों में 40 डिग्री सेल्सियस, तटीय क्षेत्रों में 37 डिग्री सेल्सियस और पहाड़ी क्षेत्रों में 30 डिग्री सेल्सियस को पार कर जाता है। जब किसी जगह पर किसी ख़ास दिन उस क्षेत्र के सामान्य तापमान से 4.5 से 6.4 डिग्री सेल्सियस अधिक तापमान दर्ज किया जाता है, तो मौसम एजेंसी हीटवेव की घोषणा करती है। यदि तापमान सामान्य से 6.4 डिग्री सेल्सियस अधिक है, तो आईएमडी इसे ‘गंभीर’ हीट वेव घोषित करता है। आईएमडी हीट वेव घोषित करने के लिए एक अन्य मानदंड का भी उपयोग करता है, जो पूर्ण रूप से दर्ज तापमान पर आधारित होता है। यदि तापमान 45 डिग्री सेल्सियस को पार कर जाता है, तो विभाग हीटवेव घोषित करता है। जब यह 47 डिग्री को पार करता है, तो ‘गंभीर’ हीटवेव की घोषणा की जाती है।
हीटवेव है जानलेवा
दिल्ली मेडिकल काउंसिल की साइंफिक कमेटी के चेयरमैन डॉक्टर नरेंद्र सैनी के मुताबिक हीट वेव को हल्के में नहीं लेना चाहिए। इससे जान भी जा सकती है। हमारे शरीर के ज्यादातर अंग 37 डिग्री सेल्सियस पर बेहतर तरीके से काम करते हैं। जैसे जैसे तापमान बढ़ेगा, इनके काम करने की क्षमता प्रभावित होगी। बेहद गर्मी में निकलने से शरीर का तापमान बढ़ जाएगा जिससे अंग नाकाम होने लगेंगे। शरीर जलने लगेगा, शरीर का तापमान ज्यादा बढ़ने से दिमाग, दिल सहित अन्य अंगों के काम करने की क्षमता कम हो जाएगी।
डॉ. सैनी के अनुसार, यदि किसी को गर्मी लग गई है तो उसे तुरंत किसी छाया वाले स्थान पर ले जाएं। उसके पूरे शरीर पर ठंडे पानी का कपड़ा रखें। अगर व्यक्ति होश में है तो उसे पानी में इलेक्ट्रॉल या चीनी और नमक मिला कर दें। अगर आसपास अस्पताल है तो तुरंत उस व्यक्ति को अस्पताल ले जाएं।
32 डिग्री तापमान पर बढ़ सकती है मुश्किल, जानिए क्या है डिस्कंफरटेबल इंडेक्स
मौसम वैज्ञानिकों के मुताबिक अगर हवा में आर्द्रता का स्तर 50 फीसदी से ज्यादा हो, हवा की स्पीड 10 किलोमीटर प्रति घंटा से कम हो और तापमान 32 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा हो, तो ऐसा मौसम बन जाता है जिसमें जितना तापमान होता है उससे कहीं अधिक गर्मी और उमस महसूस होती है। वैज्ञानिक इस मौसम को डिस्कंफरटेबल इंडेक्स के तहत नापते हैं। मौसम में असहजता को ध्यान में रखते हुए ही डिस्कंफरटेबल इंडेक्स को बनाया गया है। मौसम वैज्ञानिक समरजीत चौधरी के मुताबिक असुविधा सूचकांक हवा के तापमान और आर्द्रता को जोड़ता है, इसके जरिए इन पैरामीटर पर इंसान को महसूस होने वाली गर्मी का अनुमान लगाया जा सकता है। उदाहरण के लिए, जब हवा में आर्द्रता का स्तर 70 डिग्री हो और तापमान 32 डिग्री सेल्सियस (90 डिग्री फ़ारेनहाइट) हो और हवा बहुत धीमी हो, तो किसी इंसान को महसूस होने वाली गर्मी लगभग 41 डिग्री सेल्सियस (106 डिग्री फ़ारेनहाइट) के बराबर होती है। इस गर्मी सूचकांक तापमान में 20% की एक अंतर्निहित (अस्थिर) आर्द्रता है।