Upgrade
पहल टाइम्स
  • होम
  • दिल्ली
  • राज्य
  • राष्ट्रीय
  • विश्व
  • धर्म
  • व्यापार
  • खेल
  • मनोरंजन
  • गैजेट्स
  • जुर्म
  • लाइफस्टाइल
    • स्वास्थ्य
    • फैशन
    • यात्रा
  • विशेष
    • साक्षात्कार
  • ईमैगजीन
  • होम
  • दिल्ली
  • राज्य
  • राष्ट्रीय
  • विश्व
  • धर्म
  • व्यापार
  • खेल
  • मनोरंजन
  • गैजेट्स
  • जुर्म
  • लाइफस्टाइल
    • स्वास्थ्य
    • फैशन
    • यात्रा
  • विशेष
    • साक्षात्कार
  • ईमैगजीन
No Result
View All Result
पहल टाइम्स
No Result
View All Result
  • होम
  • दिल्ली
  • राज्य
  • राष्ट्रीय
  • विश्व
  • धर्म
  • व्यापार
  • खेल
  • मनोरंजन
  • गैजेट्स
  • जुर्म
  • लाइफस्टाइल
  • विशेष
  • ईमैगजीन
Home राष्ट्रीय

‘एक देश, एक चुनाव’ से देश में होंगे बड़े बदलाव

देश में एक साथ चुनाव कराने में कोई अड़चन नहीं है। अगर इस पर राजनीतिक सहमति बनती है, तो साल 2029 एक नई व्यवस्था का निर्णायक मोड़ साबित होगा।

पहल टाइम्स डेस्क by पहल टाइम्स डेस्क
March 16, 2024
in राष्ट्रीय, विशेष
A A
22
SHARES
744
VIEWS
Share on FacebookShare on Whatsapp

प्रकाश मेहरा


नई दिल्ली। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में बनी समिति ने हैं, ‘एक देश, एक चुनाव’ पर अपनी सिफारिशें सौंप दी जो मेरी निगाह में उचित हैं। यह भारत की जरूरत भी है। साल 1982-83 में खुद चुनाव आयोग ने पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने की सिफारिश की थी। पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ओम प्रकाश रावत बताते हैं कि “मैंने भी महूसस किया था कि आयोग किस कदर काम के दबाव में रहता है। उसे मतदान-नतीजों पर दायर याचिकाओं के जवाब देने के साथ-साथ राज्यसभा, राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति, विधान परिषद् आदि चुनाव भी संचालित करने होते हैं। फिर हर साल चार-पांच विधानसभाओं के लिए भी मत डाले जाते हैं। लोकसभा के चुनाव अलग से होते ही हैं। इसीलिए चुनाव आयोग की एक राय रही है कि कम से कम लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होने चाहिए। अभी बेल्जियम, स्वीडन और दक्षिण अफ्रीका में राष्ट्रीय व स्थानीय स्तर के चुनाव एक साथ होते हैं। अगर अपने यहां भी इस पर सहमति बनती है, तो भारत इस परिवार का चौथा सदस्य बन जाएगा।”

इन्हें भी पढ़े

Sushil Gaikwad

सुशील गायकवाड़ ने महाराष्ट्र सदन के रेजिडेंट कमिश्नर का संभाला कार्यभार

October 10, 2025

परियोजनाओं को पूंजीगत निवेश के लिए राज्यों को मिलेगी विशेष सहायता

October 10, 2025
highway

10,000 KM के 25 ग्रीनफील्ड एक्सप्रेसवे बना रही सरकार!

October 9, 2025
Amit Shah

गृहमंत्री अमित शाह ने Gmail को कहा अलविदा, जानें क्या है नया Email एड्रेस?

October 8, 2025
Load More

कोविंद समिति की सिफारिश

बहरहाल, कोविंद समिति ने सिफारिश की है कि लोकसभा व विधानसभा के चुनाव एक साथ कराए जाएं, और उसके अगले 100 दिनों के भीतर स्थानीय निकाय के चुनाव होने चाहिए। इसके लिए आयोग को जरूरी ‘लॉजिस्टिक’ व्यवस्था, यानी ईवीएम-वीवीपैट मशीनों की खरीद, मतदान कर्मियों व सुरक्षाकर्मियों की तैनाती और अन्य आवश्यक उपाय भी करने होंगे। ये व्यावहारिक सिफारिशें हैं। बस, इसके लिए पहले व्यापक राजनीतिक सहमति बनानी होगी। सियासी दलों में यह आशंका बिल्कुल नहीं होनी चाहिए कि किसी खास एजेंडे के तहत ऐसा किया जा रहा है। अगर संविधान में जरूरी संशोधन हो जाएंगे, तो आगे की प्रक्रिया आसान हो जाएगी। बेशक, सभी दल इस पर सहमत नहीं होंगे, लेकिन अधिकांश पार्टियों को साथ लेकर चलने में ही भलाई है।

सियासी दलों को इससे क्या फायदा!

हालांकि, इसे अदालत में भी चुनौती दी जा सकती है। न्यायिक समीक्षा की व्यवस्था हमारे लोकतंत्र को समृद्ध ही बनाती है। मगर संभावना यही है कि ऐसी याचिकाएं खारिज हो जाएंगी। इसकी वजह यह है कि भारत के शुरुआती चार चुनाव (1952, 1957, 1962 और 1967) इसी तर्ज पर हो चुके हैं। लिहाजा, अभी किसी नई व्यवस्था की सिफारिश नहीं की गई है या कोई अनुचित काम नहीं हो रहा। वैसे भी, सियासी दलों को इससे फायदा ही होगा। अभी पूरे पांच साल सत्ता पक्ष और विपक्ष में नूरा-कुश्ती होती रहती है। सरकार बचाने और गिराने में दोनों पक्ष तमाम तरह के उपाय करते रहते हैं। नतीजतन, माननीयों को सदन में जरूरी बहस करने का पर्याप्त समय नहीं मिल पाता। अब विधेयकों पर चर्चा कम होती है, और ध्वनिमत से उनका पारित होना आम बात हो गई है। विकास कार्यों में लगने वाला ज्यादातर समय चुनावी रैलियों में बर्बाद होने लगा है। लिहाजा, एक साथ चुनाव होने के बाद इन सबसे पार पाना संभव हो सकेगा।

2019 लोकसभा चुनाव में कितना हुआ खर्च!

कहा यह भी जा रहा है कि इससे चुनाव-खर्च में कमी आएगी। हालांकि, यह कोई बड़ा मसला नहीं है। असल में, किसी चुनाव-खर्च के दो हिस्से होते हैं- एक, राजनीतिक दलों के खर्च, दूसरा, चुनाव प्रबंधन का खर्च। आकलन है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में सियासी दलों ने तकरीबन 60 हजार करोड़ रुपये खर्च किए थे। एक साथ चुनाव होने पर भी इसमें कमी होने की बहुत संभावना नहीं दिखती, क्योंकि जिनके पास पैसे हैं, वे खर्च करेंगे ही। रही बात चुनाव प्रबंधन की, तो पूरे विश्व में सबसे सस्ता चुनाव भारत ही कराता है। अपने देश में चुनाव के प्रबंधन में प्रति वोट एक डॉलर का खर्च आता है, जबकि इसमें ‘लॉजिस्टिक’ खर्च भी शामिल है। पाकिस्तान के हालिया चुनाव में यह खर्च 1.76 डॉलर प्रति वोट था, जबकि दक्षिण अफ्रीका 25 डॉलर का खर्च वहन करता है। आंकड़े यही हैं कि ज्यादातर देश दो डॉलर से लेकर 25 डॉलर तक खर्च करते हैं। ऐसे में, एक साथ चुनाव कराने से हम यदि कुछ रकम और बचा लेंगे, तो वह बहुत मायने नहीं रखेगा। वैसे भी, जहां चुनाव पर सालाना अरबों रुपये खर्च होते हों, वहां कुछ करोड़ रुपये की बचत का प्रतीकात्मक महत्व ही ज्यादा है।

ईवीएम के निर्माण पर कितना खर्च आता है!

हां, ईवीएम-वीवीपैट मशीनों को बनाने में वक्त लग सकता है। अभी चुनाव आयोग के पास 20 लाख ईवीएम वीवीपैट मशीनें हैं। साल 2024 के आम चुनाव में अनुमानतः 15 लाख मशीनों की जरूरत पड़ेगी, जबकि शेष राज्य विधानसभा चुनावों में इस्तेमाल होंगी। अगर पूरे देश में एक साथ चुनाव कराए जाएं, तो लगभग 40 लाख ईवीएम वीवीपैट मशीनों की दरकार होगी। चूंकि देश में सिर्फ दो कंपनियां (भारत इलेक्ट्रॉनिक और इलेक्ट्रॉनिक्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड) ईवीएम-वीवीपैट मशीनें बनाती हैं और इनकी क्षमता प्रतिवर्ष पांच से छह लाख मशीनें बनाने की है, तो शेष 20 लाख ईवीएम वीवीपैट मशीनें बनाने में इनको करीब तीन-साढ़े तीन साल का वक्त लग सकता है। फिर इसके लिए पूंजी की व्यवस्था भी एक मसला है, क्योंकि एक ईवीएम के निर्माण पर 32 हजार रुपये का खर्च आता है।

यहां यह आशंका नहीं होनी चाहिए कि ईवीएम- निर्माण में गड़बड़ी भी हो सकती है। हर मशीन के निर्माण की वीडियो रिकॉर्डिंग की जाती है, जो स्थायी तौर पर सुरक्षित रखी जाती है। यदि किसी ईवीएम में आपराधिक गड़बड़ी पकड़ में आती है, तो अपराधी तक आसानी से पहुंचा जा सकता है।

2029 तक आयोग की नई व्यवस्था तैयार!

स्पष्ट है, चुनाव आयोग पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने में सक्षम है। कर्मियों की कमी कोई मसला नहीं है। हमारे संविधान-निर्माताओं ने शुरुआत में ही इसकी मुकम्मल व्यवस्था कर दी है। भले ही, तब एक चुनाव आयुक्त और कुछ कर्मियों के साथ चुनाव आयोग की परिकल्पना की गई थी, जो अब बढ़ते-बढ़ते तीन चुनाव आयुक्त और करीब 350 कर्मियों का एक कुनबा बन चुका है, लेकिन भारतीय संविधान ने चुनाव आयोग को यह अधिकार दे रखा है कि वह जरूरत पड़ने पर जितने चाहे, उतने केंद्र व राज्य कर्मियों की सेवाएं ले सकता है, और वे उसे देने से इनकार भी नहीं कर सकते। जाहिर है, भारत में एक साथ चुनाव कराने में कोई अड़चन नहीं है। अगर इस पर व्यापक राजनीतिक सहमति बनती है, तो साल 2029 एक नई व्यवस्था का शुरुआती-बिंदु साबित हो सकता है।

इन्हें भी पढ़ें

  • All
  • विशेष
  • लाइफस्टाइल
  • खेल
gyanvapi

ज्ञानव्यापी में मज्जिद से पहले मंदिर था, हिंदू पक्ष ने किया दावा

January 26, 2024
Rahul Gandhi's 'Bharat Jodo Yatra

बीजेपी के खिलाफ राहुल को मिला बड़ा हथियार?

April 22, 2023
अंतिम संस्कार

समाज के अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति का अंतिम संस्कार भी हुआ अतिक्रमण का शिकार!

September 20, 2025
पहल टाइम्स

पहल टाइम्स का संचालन पहल मीडिया ग्रुप्स के द्वारा किया जा रहा है. पहल टाइम्स का प्रयास समाज के लिए उपयोगी खबरों के प्रसार का रहा है. पहल गुप्स के समूह संपादक शूरबीर सिंह नेगी है.

Learn more

पहल टाइम्स कार्यालय

प्रधान संपादकः- शूरवीर सिंह नेगी

9-सी, मोहम्मदपुर, आरके पुरम नई दिल्ली

फोन नं-  +91 11 46678331

मोबाइल- + 91 9910877052

ईमेल- pahaltimes@gmail.com

Categories

  • Uncategorized
  • खाना खजाना
  • खेल
  • गैजेट्स
  • जुर्म
  • दिल्ली
  • धर्म
  • फैशन
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • राजनीति
  • राज्य
  • राष्ट्रीय
  • लाइफस्टाइल
  • विशेष
  • विश्व
  • व्यापार
  • साक्षात्कार
  • सामाजिक कार्य
  • स्वास्थ्य

Recent Posts

  • अमेरिका-रूस या चीन…सबसे ज्यादा हाइपरसोनिक मिसाइल कौन बना रहा है?
  • बिहार चुनाव: सीट बंटवारे पर राजी हुए चिराग पासवान, जल्द होगा ऐलान
  • दिल्ली सरकार का ऐलान, प्रदूषण कम का तरीका बताने पर मिलेंगे 50 लाख

© 2021 पहल टाइम्स - देश-दुनिया की संपूर्ण खबरें सिर्फ यहां.

  • होम
  • दिल्ली
  • राज्य
  • राष्ट्रीय
  • विश्व
  • धर्म
  • व्यापार
  • खेल
  • मनोरंजन
  • गैजेट्स
  • जुर्म
  • लाइफस्टाइल
    • स्वास्थ्य
    • फैशन
    • यात्रा
  • विशेष
    • साक्षात्कार
  • ईमैगजीन

© 2021 पहल टाइम्स - देश-दुनिया की संपूर्ण खबरें सिर्फ यहां.