स्पेशल डेस्क/नई दिल्ली : भारत में जनगणना 2027, जो 16 साल बाद हो रही है, कई कारणों और विशेषताओं के चलते बेहद खास है। यह जनगणना न केवल जनसंख्या और सामाजिक-आर्थिक आंकड़ों को अपडेट करेगी, बल्कि इसमें कई नई और महत्वपूर्ण विशेषताएं भी शामिल हैं। नीचे इसकी वजहों और विशेषताओं को विस्तार से एग्जीक्यूटिव एडिटर प्रकाश मेहरा ने समझाया है, जो इसे खास बनाती हैं।
जनगणना में देरी के कारण !
2021 में होने वाली जनगणना कोविड-19 महामारी के कारण स्थगित कर दी गई थी। अप्रैल 2020 में पहले चरण की शुरुआत होने वाली थी, लेकिन लॉकडाउन और प्रशासनिक चुनौतियों के कारण इसे टाल दिया गया। महामारी के बाद भी, प्रशासनिक और राजनीतिक कारणों से जनगणना में देरी हुई, जिसके परिणामस्वरूप यह 16 साल बाद 2027 में हो रही है।
चुनाव और प्रशासनिक प्राथमिकताएं
2024 में लोकसभा चुनाव और विभिन्न राज्यों में विधानसभा चुनावों के कारण जनगणना को प्राथमिकता नहीं दी गई। विश्लेषकों का मानना है कि “2024 के अंत तक भी जनगणना शुरू करना संभव नहीं था।जनगणना एक विशाल प्रशासनिक कार्य है, जिसमें लगभग 30 लाख प्रगणक और पर्यवेक्षक शामिल होते हैं। यह प्रक्रिया समय और संसाधनों की मांग करती है, जिसके कारण देरी हुई।
जनगणना 2027 की विशेषताएं
पहली डिजिटल जनगणना यह भारत की पहली पूरी तरह डिजिटल जनगणना होगी। डेटा संग्रह के लिए मोबाइल ऐप का उपयोग किया जाएगा, जो प्रक्रिया को तेज और अधिक कुशल बनाएगा। मोबाइल ऐप उपयोगकर्ता के अनुकूल होगा, और डेटा तुरंत प्रसंस्करण के लिए उपलब्ध होगा, जिससे लॉजिस्टिक्स की आवश्यकता कम होगी। स्व-गणना का प्रावधान भी होगा, जिसमें लोग खुद अपने विवरण ऑनलाइन दर्ज कर सकेंगे।
इस बार जनगणना में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) सहित जातिगत आंकड़े भी एकत्र किए जाएंगे, जो 1951 के बाद पहली बार होगा। जातिगत जनगणना सामाजिक संरचना को समझने और नीति निर्माण में मदद करेगी, हालांकि यह आरक्षण का आधार बनेगी या नहीं, यह स्पष्ट नहीं है। यह कदम राजनीतिक रूप से संवेदनशील है, क्योंकि कई राजनीतिक दल लंबे समय से जातिगत डेटा की मांग कर रहे हैं।
ट्रांसजेंडर परिवारों का डेटा
पहली बार उन परिवारों की जानकारी एकत्र की जाएगी, जिनके मुखिया ट्रांसजेंडर हैं। पहले जनगणना में केवल पुरुष और महिला के कॉलम थे, लेकिन अब ट्रांसजेंडर को शामिल किया गया है।
जनगणना दो चरणों में होगी
पहला चरण: आवास और मकान सूचीकरण, जो सितंबर 2026 तक, खासकर पहाड़ी राज्यों (जैसे उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, कश्मीर, लद्दाख) में पूरा होगा। इन क्षेत्रों में बर्फबारी के कारण सितंबर 2026 को संदर्भ तिथि रखी गई है।
दूसरा चरण: जनसंख्या गणना, जिसमें व्यक्तिगत विवरण जैसे आयु, लिंग, शिक्षा, रोजगार, धर्म, और प्रजनन (महिलाओं के लिए) एकत्र किए जाएंगे। यह 1 मार्च 2027 को रात 12 बजे की संदर्भ तिथि के साथ पूरा होगा।
परिसीमन और महिला आरक्षण के लिए महत्व
2026 के बाद की जनगणना के आंकड़े निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन के लिए आधार होंगे। यह इसलिए जरूरी है क्योंकि जनसंख्या के आधार पर निर्वाचन क्षेत्रों में असमानताएं बढ़ रही हैं। लोकसभा और विधानसभाओं में 33% महिला आरक्षण लागू करने के लिए भी परिसीमन आवश्यक है, जो इस जनगणना के आंकड़ों पर निर्भर करेगा।
जनगणना की अहमियत
नीति निर्माण और योजना जनगणना डेटा सरकार को शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, और बुनियादी ढांचे की योजना बनाने में मदद करता है। पुराने आंकड़े (2011) अब अप्रासंगिक हो चुके हैं, क्योंकि सामाजिक-आर्थिक स्थिति में काफी बदलाव आ चुका है। प्रोफेसर उदय शंकर के अनुसार, दशकीय जनगणना का डेटा कभी पुराना नहीं होता और यह चेकपॉइंट के रूप में काम करता है।
यह जनगणना जनसंख्या के आकार, वितरण, शिक्षा, रोजगार, और सामाजिक-आर्थिक स्थिति के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करेगी। यह डेटा गरीबी, बेघरता (जैसे कोलकाता में 70,000 लोग फुटपाथ पर रहते हैं), और अन्य सामाजिक मुद्दों को समझने में मदद करेगा।
विशाल प्रशासनिक कार्य
भारत की जनगणना दुनिया के सबसे बड़े प्रशासनिक अभ्यासों में से एक है, जिसमें 135 करोड़ लोगों की गणना होगी। यह कार्य स्कूल शिक्षकों, सरकारी अधिकारियों, और स्थानीय निकायों के सहयोग से किया जाएगा।
डेटा विश्वसनीयता और राजनीतिक दबाव
कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार सर्वे डेटा को अपनी मर्जी से प्रदर्शित कर सकती है, लेकिन जनगणना डेटा के साथ ऐसा करना मुश्किल है। जातिगत डेटा संग्रह से राजनीतिक विवाद उत्पन्न हो सकते हैं, क्योंकि यह सामाजिक और राजनीतिक नीतियों को प्रभावित करेगा। पिछली जनगणनाओं में डेटा जारी होने में दो से तीन साल लग गए। इस बार भी समय पर डेटा जारी करना एक चुनौती होगी, खासकर 2029 के लोकसभा चुनाव से पहले परिसीमन के लिए। डिजिटल जनगणना के लिए तकनीकी बुनियादी ढांचे और प्रशिक्षण की आवश्यकता होगी। ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट कनेक्टिविटी और डिजिटल साक्षरता एक समस्या हो सकती है।
जातिगत डेटा और परिसीमन से निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या और सीटों का वितरण बदल सकता है, जो 2029 के चुनावों को प्रभावित करेगा। ओबीसी और ट्रांसजेंडर डेटा सामाजिक समावेशन और आरक्षण नीतियों को नया रूप दे सकता है। अपडेटेड डेटा से सरकार को संसाधनों का बेहतर आवंटन करने में मदद मिलेगी, खासकर ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में।
जनसांख्यिकीय और सामाजिक संरचना
जनगणना 2027 भारत के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है, जो न केवल जनसंख्या के आंकड़े अपडेट करेगी, बल्कि डिजिटल तकनीक, जातिगत डेटा, और ट्रांसजेंडर समावेशन जैसी नई विशेषताओं के साथ सामाजिक-आर्थिक नीतियों को दिशा देगी। कोविड-19 के कारण हुई देरी के बावजूद, यह जनगणना देश की बदलती जनसांख्यिकीय और सामाजिक संरचना को समझने का एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करेगी। हालांकि, समय पर डेटा जारी करना और राजनीतिक विवादों से बचना इसकी सफलता के लिए महत्वपूर्ण होगा।