स्पेशल डेस्क/नई दिल्ली : इजरायल-ईरान संघर्ष में भारत की स्थिति जटिल और संतुलित है, क्योंकि भारत के दोनों देशों के साथ महत्वपूर्ण कूटनीतिक और आर्थिक संबंध हैं। हाल की रिपोर्ट्स और विश्लेषण के आधार पर, कुछ बिंदु भारत की स्थिति और मोदी सरकार के सामने आने वाली चुनौतियों को स्पष्ट करते हैं।
क्या है भारत का रुख !
भारत ने इजरायल और ईरान दोनों के साथ अपने संबंधों को संतुलित बनाए रखा है। इजरायल भारत के लिए एक प्रमुख रक्षा और प्रौद्योगिकी साझेदार है, जबकि ईरान भारत को तेल आपूर्ति और चाबहार बंदरगाह जैसे रणनीतिक प्रोजेक्ट्स में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। विशेषज्ञों, जैसे कि ORF के कबीर तनेजा, का मानना है कि भारत इस संघर्ष में तटस्थ और संतुलनवादी रुख अपनाएगा।
भारत ने दोनों देशों से आक्रामक कदमों से बचने और बातचीत के जरिए स्थिति को शांत करने का आग्रह किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और ईरान के विदेश मंत्री सैय्यद अब्बास अरागची के साथ हाल ही में फोन पर बातचीत में क्षेत्रीय शांति और स्थिरता पर जोर दिया। भारत ने इसराइल-ईरान तनाव पर चिंता जताते हुए कूटनीति को बढ़ावा देने की बात कही है।
भारत ने ऐतिहासिक रूप से फलस्तीन के दो-राष्ट्र समाधान का समर्थन किया है, जो इसराइल-ईरान संघर्ष के संदर्भ में भी भारत की नीति को प्रभावित करता है। यह भारत की तटस्थता को और मजबूत करता है।
मोदी सरकार की चुनौतियाँ
भारत के लिए सबसे बड़ी चुनौती इजरायल और ईरान के बीच संतुलन बनाए रखना है। दोनों देशों के साथ मजबूत संबंध होने के कारण, भारत किसी एक पक्ष को चुनने से बच रहा है। उदाहरण के लिए, जब ईरान ने पुर्तगाली जहाज को कब्जे में लिया, जिसमें 17 भारतीय थे, तब विदेश मंत्री एस. जयशंकर को हस्तक्षेप करना पड़ा। इस तरह की घटनाएँ भारत के लिए कूटनीतिक चुनौतियाँ बढ़ाती हैं।
इसराइल-ईरान युद्ध के बढ़ने से मध्य-पूर्व में अस्थिरता बढ़ सकती है, जिसका भारत की अर्थव्यवस्था पर असर पड़ सकता है। भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए ईरान और अन्य खाड़ी देशों पर निर्भर है। तेल की कीमतों में उछाल और व्यापार मार्गों में रुकावट भारत के लिए आर्थिक चुनौती होगी। हालाँकि, एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी के अनुसार, अभी तक इसका भारत की अर्थव्यवस्था पर बड़ा असर नहीं पड़ा है, लेकिन लंबे समय तक युद्ध जारी रहने पर नुकसान हो सकता है।
सामाजिक और राजनीतिक तनाव
मध्य-पूर्व में बढ़ता तनाव भारत के रणनीतिक हितों, जैसे कि चाबहार बंदरगाह और इंडिया-मिडल ईस्ट-यूरोप इकनॉमिक कॉरिडोर (IMEC) को प्रभावित कर सकता है। इसके अलावा, इजरायल-ईरान संघर्ष के कारण भारत में रह रहे 18,000 भारतीयों (इसराइल में) और 5,000-10,000 भारतीयों (ईरान में) की सुरक्षा भी एक चिंता का विषय है। इजरायल -फलस्तीन या इजरायल -ईरान संघर्ष को लेकर भारत में धार्मिक आधार पर राय बँटी हुई है। कुछ समूह इसराइल का समर्थन करते हैं, जबकि अन्य फलस्तीन या ईरान के पक्ष में हैं। यह आंतरिक सामाजिक और राजनीतिक तनाव को बढ़ा सकता है।
इजरायल का ईरान हमला
13 जून को इजरायल ने ईरान के परमाणु ठिकानों और सैन्य कमांडरों पर हमला किया, जिसे “ऑपरेशन राइज़िंग लायन” नाम दिया गया। इस हमले में ईरान के रिवोल्यूशनरी गार्ड्स के कमांडर हुसैन सलामी और कई परमाणु वैज्ञानिक मारे गए।
ईरान ने इजरायल के हमलों को गंभीरता से लिया और कहा कि इसराइल और अमेरिका को इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी। ईरान ने इजरायल पर 100 मिसाइलें दागीं, जिससे तनाव और बढ़ गया।
भारत ने दोनों देशों से संयम बरतने और बातचीत के जरिए समाधान निकालने की अपील की है। विदेश मंत्रालय ने कहा कि भारत स्थिति पर बारीकी से नजर रख रहा है। नेतन्याहू ने मोदी को फोन पर इजरायल के हमलों की जानकारी दी, और भारत ने क्षेत्र में शांति की आवश्यकता पर बल दिया।
मोदी सरकार के लिए कुछ मुख्य चुनौतियाँ
भारत-इजरायल-ईरान संघर्ष में किसी एक पक्ष को चुनने के बजाय तटस्थ और संतुलनवादी नीति अपनाएगा, जैसा कि उसकी गुटनिरपेक्ष परंपरा रही है। मोदी सरकार के लिए कुछ मुख्य चुनौतियाँ हैं कूटनीतिक संतुलन बनाए रखना, आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित करना, क्षेत्रीय परियोजनाओं की रक्षा करना और आंतरिक सामाजिक तनाव को नियंत्रित करना। हाल की रिपोर्ट्स से पता चलता है कि भारत स्थिति पर नजर रख रहा है और शांति के लिए कूटनीति को बढ़ावा दे रहा है।