प्रकाश मेहरा
नई दिल्ली: लम्बे इंतज़ार के बाद सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने इंकार कर दिया है हालांकि पांच जजों की खंड पीठ कुछ मुद्दों पर सहमत नजर आई वही कुछ मुद्दों पर साफ़ असहमति भी दिखाई दी है. खंडपीठ ने एकमत से माना कि वो समलैंगिक विवाह को मान्यता नहीं दे सकती और कहा कि ये संसद के अधिकार क्षेत्र का मामला है.
साथ ही कोर्ट ने समलैंगिक जोड़ों को सामाजिक और कानूनी अधिकार देने के लिए पैनल का गठन करने के सरकार के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया. लगभग 14 करोड़ की आबादी वाले इस समुदाय को सुप्रीम कोर्ट के फैसले का बेसब्री से इंतज़ार था. जिस तेजी से अप्रैल और मई महीने में इस मामले की सुनवाई हुई,समुदाय के लोगों को सकारात्मक फैसले की उम्मीद थी लेकिन मंगलवार को आये निर्णय से वे काफी मायूस नजर आए.
निराशा हाथ लगी
मुंबई में अपने पार्टनर के साथ 19 साल से रह रहे डॉ प्रसाद राज दांडेकर फ़ोन पर लंबी सांस भरते हुए कहते हैं ” जैसे ही मैंने फैसला सुनना शुरू किया मेरी आँखों में आंसू बहने लगे। हम 19 साल से रुके हुए थे सामान अधिकार को लेकर हमारी लड़ाई जारी रहेगी ”
‘समलैंगिक रिश्ते नई व्यवस्था नहीं ‘
न्यायमूर्ति संजय किशन कौल ने कहा कि समलैंगिक रिश्तों को प्राचीन समय से ही मान्यता मिली हुई है ये रिश्ते न सिर्फ यौन गतिविधि के लिए थे बल्कि भावनाओं की पूर्ति के लिए भी होते थे उन्होंने अपने आदेश में कुछ सूफी परंपराओं का जिक्र किया।
जस्टिस कौल ने कहा कि वो CJI के आदेश से सहमत हैं
इन पर पांचों जज सहमत
विशेष विवाह अधिनयम और विदेशी विवाह अधिनियम को संवैधानिक चुनौती नहीं दी जा सकती. विषमलैंगिक सम्बन्धो में यानी महिला और पुरुष के तौर पर रह रहे ट्रांस और इंटरसेक्स जोड़े पर्सनल लॉ सहित मौज़ूदा कानूनों के तहत शादी कर सकते हैं. एक व्यापक भेदभाव विरोधी कानून होना चाहिए।
इन पर सिर्फ 3 जज सहमत
अविवाहित और समलैंगिक लोगों को गोद लेने का अधिकार देने के लिए गोद लेने के कानूनों में बदलाव नहीं किया जाना चाहिए. समलैंगिक जोड़े के साथ रहने के अधिकार को शादी के समान कानूनी दर्जा नहीं दिया जा सकता।