Upgrade
पहल टाइम्स
  • होम
  • दिल्ली
  • राज्य
  • राष्ट्रीय
  • विश्व
  • धर्म
  • व्यापार
  • खेल
  • मनोरंजन
  • गैजेट्स
  • जुर्म
  • लाइफस्टाइल
    • स्वास्थ्य
    • फैशन
    • यात्रा
  • विशेष
    • साक्षात्कार
  • ईमैगजीन
  • होम
  • दिल्ली
  • राज्य
  • राष्ट्रीय
  • विश्व
  • धर्म
  • व्यापार
  • खेल
  • मनोरंजन
  • गैजेट्स
  • जुर्म
  • लाइफस्टाइल
    • स्वास्थ्य
    • फैशन
    • यात्रा
  • विशेष
    • साक्षात्कार
  • ईमैगजीन
No Result
View All Result
पहल टाइम्स
No Result
View All Result
  • होम
  • दिल्ली
  • राज्य
  • राष्ट्रीय
  • विश्व
  • धर्म
  • व्यापार
  • खेल
  • मनोरंजन
  • गैजेट्स
  • जुर्म
  • लाइफस्टाइल
  • विशेष
  • ईमैगजीन
Home विशेष

सुमेर से शुरू मकडज़ाल!

पहल टाइम्स डेस्क by पहल टाइम्स डेस्क
July 1, 2022
in विशेष
A A
1
VIEWS
Share on FacebookShare on Whatsapp

हरिशंकर व्यास

सुमेर की पहली सभ्यता में मनुष्य का सभ्यता नाम की आर्टिफिशियल जिंदगी में बंधना शुरू हुआ। तब बना मकडज़ाल वर्तमान के सभी 195 देशों की सच्चाई है। मकडज़ाल इसलिए क्योंकि सभ्यताओं का अनुभव बार-बार बनने और खत्म होने का है। बावजूद इसके मकड़ी की तरह इंसान बार-बार सभ्यता का टूटा जाला फिर बनाने लगता है। उसे जाले का छल, व्यर्थता और नया कुछ सूझता ही नहीं है। सुमेर में पांच हजार साल पहले निर्मित सभ्यता के टैंपलेट पुरानी और आधुनिक सभी सभ्यताओं के तौर-तरीके थे और हैं।

इन्हें भी पढ़े

Harak Singh Rawat attacks BJP, Trivendra Rawat replies

हरक सिंह रावत का BJP पर वार, 27 करोड़ चंदा विवाद से सियासत गरमाई, त्रिवेंद्र रावत का जवाब!

August 26, 2025
Saurabh Bharadwaj

AAP नेता और दिल्ली के पूर्व मंत्री सौरभ भारद्वाज के घर ईडी के छापे!

August 26, 2025
CM Dhami

मुख्यमंत्री ने दिए ड्रग्स फ्री उत्तराखंड के लिए व्यापक अभियान चलाने के निर्देश

August 26, 2025
SSC students Ramlila ground in Delhi

SSC छात्रों का दिल्ली के रामलीला मैदान में विशाल प्रदर्शन, भर्ती प्रक्रिया में सुधार की मांग, 44 हिरासत में !

August 25, 2025
Load More

प्रलय का मुहाना-30: कहते हैं सभ्यता से मानव का अंध युग खत्म हुआ। मनुष्य गुणवान बना। पशु वृत्तियों से बाहर निकला। वह सभ्य हुआ। मनुष्य में वह बुद्धि, समझ, हुनर और क्षमताएं बनीं, जिससे वह सुख-समृद्धि भोगता हुआ है। कितनी गलत है यह धारणा? यदि ऐसा होता तो आठ अरब लोग क्या अलग-अलग देशों, धर्मों, सभ्यताओं की भिन्नताओं-भेदभावों-असमानताओं में जी रहे होते? अभी भी यदि एक-दूसरे के प्रति ऊंच-नीच, सभ्य बनाम असभ्य बनाम बर्बर बनाम जंगली आदि की सोच में मनुष्यों का परस्पर व्यवहार है तो यह सभ्यता और उसकी कथित प्राप्तियों का क्या थोथापन नहीं? सभ्य होने के अभिप्राय में वैयक्तिक या सामुदायिक दोनों जीवन में सभ्यताओं के उत्थान-पतन का अनुभव क्यों है? सभ्यता बनती है और फिर खत्म होती है! सभ्यता और उससे निर्मित सभ्य जीवन वापिस जंगली-लावारिस क्यों बनता है? सभ्य हो कर कलियुगी होना कैसे? क्यों सभ्यताएं बनीं और मिटीं? यदि मनुष्य सभ्यता से पका, बना और समझदार तथा ज्ञानी व मानवीय बना होता तो न सभ्यताएं खत्म होतीं और न इक्कीसवीं सदी में आठ अरब लोगों की जिंदगियां उन अवस्थाओं में जीवन जी रही होतीं, जो पांच हजार साल पहले के खानबदोश जीवन से भी गई गुजरी हैं।

सुमेर सभ्यता का सच
सच्चाई है कि सभ्यता बनाम सभ्यता के झगड़े थे और हैं। सभ्य लोग एक-दूसरे को मारते हैं।  सभ्यताएं कथित सभ्य और बर्बर दोनों तरह के लोगों की क्रूरताओं से खत्म हुई हैं। मानव समाज का यह अनुभव पहली सभ्यता से लगातार है। सुमेर की पहली सभ्यता में मनुष्य का सभ्यता नाम की आर्टिफिशियल जिंदगी में बंधना शुरु हुआ। तब बना मकडज़ाल वर्तमान के सभी 195 देशों की सच्चाई है। सुमेर में पांच हजार साल पहले निर्मित सभ्यता के टैंपलेट पुरानी और आधुनिक सभी सभ्यताओं के तौर-तरीके थे और हैं। इसलिए सुमेर की पहली सभ्यता का सार बताता है कि मानव समाज ने कैसा तो मकडज़ाल बनाया और उसके परिणाम में कैसे पृथ्वी और मनुष्यता दोनों प्रलय के मुहाने पर हैं।

मकडज़ाल इसलिए क्योंकि सभ्यताओं का अनुभव बार-बार बनने और खत्म होने का है। बावजूद इसके मकड़ी की तरह इंसान बार-बार सभ्यता का टूटा जाला फिर बनाने लगता है। उसे जाले का छल, व्यर्थता और नया कुछ सूझता ही नहीं है।

पहली मानव सभ्यता आधुनिक इराक में यूफ्रेट्स-टिगरिस नदी के दोआब में बनी। नदियों के मुहाने से पहले। ईसा पूर्व सन् 35 सौ में सुमेर नाम के इलाके में खेतिहर बस्ती से सभ्यता का ताना-बाना बनना शुरू हुआ। तब से अगले दो हजार वर्षों में जो विकास हुआ उसके प्रभाव में नदी क्षेत्र के मध्य और उत्तर में सिटी-स्टेट के रूप में चौतरफा कृषि आधारित शहर-राष्ट्र बने। उस नाते सुमेर-मेसोपोटामियाई इलाके का महत्व सभ्यता की पहली पौध और पौधशाला जैसा है। सुमेर में बने सभ्यता टैंपलेट को दुनिया ने अपनाया। मिस्र में नील नदी घाटी (तीन हजार ईसा पूर्व), सिंधु नदी घाटी (हड़प्पा ढाई हजार ईसा पूर्व), चाइनीज पीली-यांग्त्जी नदी (22 सौ ईसा पूर्व) सहित अमेरिकी महाद्वीप में सभ्यताओं के बीज मेसोपोटामिया से ही गए! किन-किन बातों के बीज? पहला कोर बीज मनुष्य बुद्धि, संज्ञानात्मक खोपड़ी में व्यक्तियों में निजी स्वार्थ की जरूरत में सहयोग व परस्पर रिश्तों को बनाने की कॉगनेटिव बुनावट बनना। शरीर की वैयक्तिक जरूरत, स्वार्थ, हित, फायदे में रिश्ते-नाते का व्यवस्थागत मकडज़ाल बनाना। मतलब दिमाग में रिलेशनल स्वार्थों की बुद्धि का वह विकास, जो सामूहिक व्यवस्थाओं की आड़ में वैयक्तिक अहम और हित को साधे। उस नाते सुमेर की सभ्यता से मानव व्यवहार में स्वार्थ और अहम की प्रवृत्तियों का सेंट्रल प्वाइंट बनना शुरू हुआ। अन्य शब्दों में वह मालिकाना-स्वामित्वादी भूख, शासक-शासित, शोषक-शोषण जैसी प्रवृत्तियों में मनुष्य सफर का प्रारंभ था।

स्वार्थ केंद्रित ताना-बाना
सुमेर में खेतिहर आबादी ने कृषि के अनुभव में पानी और सिंचाई का महत्व जाना। खेतों को कैसे नदी धाराओं-नहरों से अबाधित पानी मिले, इसकी चिंता और स्वार्थ में तब मनुष्य दिमाग में परस्पर सहयोग का आइडिया बना। अबाधित सिंचाई के लिए लोगों ने आपस में जिम्मेवारियां बनाईं। मतलब सामुदायिक-सार्वजनिक जीवन की पहली व्यवस्था का निर्माण। तब से आज तक मनुष्य, समाज और सामुदायिकता के हवाले स्वार्थ-हित में तमाम तरह की व्यवस्थाएं बनाते हुए है।

उससे पहले मनुष्य का शिकारी-पशुपालक जीवन था। होमो सेपियन ने दो लाख, 45 हजार साल का खानाबदोश जीवन बिना व्यवस्थाओं के गुजारा था। तब व्यक्ति निज, परिवार व कबीले के छोटे दायरे में स्वार्थों-निर्भरताओं की सरल रिलेशनशिप में जीवन जीते हुए था। लेकिन खेती ने मनुष्य को बदला। एक तो लोगों ने संग्रह करना शुरू किया। वह सामान के संग्रहण (जैसे अनाज) पर जीवनयापन को मजबूर था। यों पशुपालन में भी पालतू पशुओं, चीजों का संग्रह था लेकिन कृषि जीवन से मनुष्यों की प्रवृत्ति में बुनियादी परिवर्तन आया। घर में अनाज का संग्रह, मालिकाना बोध, उससे लेन-देन, जमाखोरी, पुजारी और राजा को चढ़ावा, सुरक्षा-व्यवस्था के बदले में लगान-टैक्स, भूखे खानाबदोशों या पड़ोसी बस्तियों की छीना-झपटी, चोरी, हमले, लड़ाई, जैसे नए अनुभवों, समस्याओं के समाधान में लोगों ने सामुदायिक व्यवस्थाएं बनाईं। कृषि जीवन में एक-दूसरे की जरूरत के कारण लोगों में काम का बंटवारा हुआ। समाज वर्ग-वर्ण में बंटा। इस सबको बनाने वाला याकि सभ्यता की नींव बनाने वाला दिमागी इंजीनियर कौन था? तो जवाब है कबीलाई वक्त से चला आ रहा पुजारी!

पुजारी के जादू टोनों से नींव
सभी का मत है कि खानाबदोश कबीलों के पुजारियों ने ही बस्ती-शहर और खेती के आइडिया को प्रमोट किया। इन सिटी-स्टेट के शुरुआती निर्माता-शासक कबीलों के वंशानुगत कुलीन पुजारी थे। उन्होंने ही पानी और सिंचाई का जादू बनाया। मेसोपोटामिया में भी नदी को ईश्वर याकि भागीरथी देवताओं के चमत्कार की लोगों में महिमा बनाई गई। ईसा पूर्व 31 सौ तक मेसोपोटामिया की बस्तियों-शहरों के भीतर, सेंटर में ओझा-पुजारियों ने जहां पूजा स्थान-मंदिर बनाए वहीं व्यवस्थाओं को शक्ल दी। खेतिहर शहर की चारदिवारियां बनवाईं ताकि खानाबदोशों या दूसरी बस्तियों के लोगों से बचा रहा जा सके। यह अपने बाड़े-टोले की सुरक्षा की चिम्पांजियों की मनोवृत्ति का ही होमो सेपियन द्वारा व्यवस्थागत निर्माण था। पुजारियों ने बस्ती की सुरक्षा के लिए लड़ाके तैयार किए। उनका लीडर कबीलाई मुखिया जैसा नया अवतारी राजा था। हर शहर एक स्वतंत्र देश था। सिटी-स्टेट का वह सभ्यतागत पौधारोपण पुजारी की बुद्धि, जादू-टोनों के खाद-पानी से था।

परिणामत: शासन की व्यवस्थाएं।
तब कृषि आसान नहीं थी। लोगों में चिंता और प्राकृतिक ताकतों (सांप-बिच्छू से लेकर बारिश-पानी) का डर बढ़ता हुआ था। पुजारियों की सिम्बॉलिक कल्पनाओं ने प्राकृतिक ताकतों की देवता रूपी मान्यताएं बनवाई हुई थीं। विज्ञानियों के अनुसार मेसोपोटामियाई देवताओं का मामला बचकाना था तो अप्रत्याशित व खतरनाक भी, जिन्हें संभालने में सिर्फ पुजारी सक्षम था। ईसा पूर्व सन् 31 सौ तक दक्षिणी मेसोपोटामिया में शहर-राज्य की सभी चारदिवारियों में लोग पूरी तरह पुजारी-देवताओं पर आश्रित थे। सुमेर में कोई सात सौ साल शहर-राज्य की चारदिवारियों के भीतर व्यवस्थाओं के जाले बने। इनका केंद्र बिंदु याकि विश्वकर्मा पुजारी था। इसी दौर में अगल-बगल के सिटी-स्टेट के लोगों में परस्पर हिंसा, प्रतिस्पर्धा, लड़ाइयों की मनोवृत्तियों को खूब पंख मिले। मतलब देश के रूप में शहर, उसकी चारदिवारी, मंदिर, पुजारी, सिंचित क्षेत्रों की उपज की आर्थिकी में मनुष्य का नया स्वभाव बना। सिटी-स्टेट की अगल-बगल की सभ्यताओं से तेरे-मेरे का फर्क, मनुष्यों में परस्पर दुराव, झगड़ों के बीज बने। सिटी-स्टेट के भीतर के समाज में पुजारी-राजा ने लोगों के इंटरकनेक्शन, व्यवहार की व्यवस्थाएं, नियम-कायदे बनाए। मनुष्य की भूख, भय, असुरक्षा की आदिम प्रवृत्तियों के पोषण, फैलाव, समाधान में व्यक्ति और समाज का वह नए सिरे से ढलना और बनना था। खानाबदोश जिंदगी से अलग नया मानव स्वभाव और व्यवहार। उसके लिए नई-नई व्यवस्थाएं।

कुलीन वर्ग के बीज
उस काल में लोग तांबे के हथियारों से लड़ा करते थे। सिटी-राज्य की हर ईकाई हिंसा-लड़ाई-युद्ध की प्रवृत्तियों को न केवल उकेरते हुए थी, बल्कि उनकी गौरवगाथा, नायक-महानायकों की कथा-कहानियां भी बनने लगी थीं। वहीं काल था जब मनुष्यों ने शासक वर्ग पाया। रूलिंग-कुलीन वर्ग का निर्माण और विकास हुआ। सुमेरिया में राजा-योद्धाओं के विकसित कुलीन वर्ग और पुजारियों के इतिहास का पहला नायक ‘गुडिय़ा’ था। उसकी प्रतिमा संग्रहालय में है, जिसे देख निष्कर्ष बनता है कि सुमेर की पहली सभ्यता में ही ‘शक्तिशाली’ राजा को इंसान ने जान लिया था। उस वक्त से ही अवतारी राजा की मनुष्य नियति शुरू हुई।

राजाओं की शक्ति में मनुष्यों के जीवन की लोकगाथा का पहला प्रमाण मेसोपोटामियन संस्कृति में है। भाषा विकास के बाद लिखित ‘गिलगमेश’ महाकाव्य में सिटी-स्टेट (गिलगमेश) की रक्षा में महानायकत्व का बखान है। इसमें ब्योरा है कि राजाओं का प्रभाव और अधिकार पुजारियों की इच्छा पर निर्भर होता था। पुजारी की मर्जी जो वह जब चाहे तब किसे भी देवताओं का पसंदीदा सांसारिक प्रतिनिधि घोषित करे। पुजारी ही तब राजा को ईश्वर का अवतार घोषित कर उसके प्रति प्रजा की भक्ति बनवाता था। जाहिर है राजा के लिए भी जरूरी था जो वह पुजारी की बुद्धि, जादू-टोनों, उसके भरोसे-समर्थन से अपनी सत्ता बनाए रखे।

ध्यान रहे भाषा विकास के बाद आज्ञा और व्यवस्थाओं की राज्याज्ञाओं को बनाने-लिखने का काम पुजारी और मंदिर व्यवस्था का था। मेसोपोटामिया से ही शिक्षा-दीक्षा का जिम्मा पुजारियों-पंडितों से शुरू हुआ तो उस व्यवस्था को बाकी सभ्यताओं ने भी अपनाया। सिंधु नदी घाटी या चाइनीज व नील नदी घाटी सभी और सुमेर की पौध से ही कुलीन पुजारी वर्ग का शिक्षा पर एकाधिकार हुआ। मेसोपोटामिया संस्कृति में मंदिरों के पुस्तकालयों में ज्ञान का संग्रहण होता था। उन्हीं से फिर कुलीन वर्ग को शिक्षा प्राप्त होती थी।

सभ्यता से प्रगति, अर्थ?
मोटा-मोटी सुमेर से शुरू सभ्यता की पहली खूबी बड़े शहर से समाज और राज्य का निर्माण था।  उसमें धर्म, मंदिर-स्मारक, राजनीति, चारदिवारियों, वास्तुकला, कम्युनिकेशन और कृषि-पशुपालन आधारित आर्थिकी की धुरी पर व्यवस्था केंद्रित संस्कृति-सभ्यता थी। आबादी पुजारी, योद्धा, कारिंदों, किसान, व्यापारी, कामगारों के श्रम विभाजन के वर्गीय, जातीय सांचों में बंटी। भारत में लोग जाति, वर्ण व्यवस्था का जो रोना-धोना करते हैं, संस्कृति की जिन बुराइयों में हिंदू समाज की बखिया उधेड़ते हैं वे सब सिंधु घाटी नदी की मौलिक देन नहीं है, बल्कि सभी आरंभिक-प्राचीन व्यवस्थाओं के सभ्यता विकास के बीजों से है। सामाजिक-आर्थिक वर्ण-वर्ग विभाजन और चारदिवारियों के कारण नस्ल, कौम, राष्ट्रीयताओं का बाद में जो मनुष्य इतिहास बनता गया वह सुमेर सभ्यता से शुरू सिलसिले की बदौलत है। सुमेर, मेसोपोटामिया में सभ्यता के बीज और पौध से मनुष्य बुद्धि का जैसे-जो विकास हुआ वह तब सभी ओर फैला। वही से सर्वत्र एक धर्म, एक केंद्रीय सत्ता, समान सामाजिक संरचना, भाषा और लेखन प्रणाली, एक जटिल अर्थव्यवस्था का निर्माण। इनसे फिर आवागमन साधन, नए औजार, व्यापार, इमारतों का निर्माण, कुम्हार, बढ़ई, जुलाहे आदि जातियों के अलग-अलग कार्य विभाजन।

ध्यान रहे सभी प्रारंभिक सभ्यताएं नदी किनारे बनीं। सभी कृषि और अनाज आधारित। सभी की सिटी-स्टेट की सरंचना में पुजारी-राजा का आधिपत्य। इससे विकसित कुलीन वर्ग, कारिंदों से खेतिहर लोगों का जमीन अधिकार सुनिश्चित-सुरक्षित होता था और बदले में फसल पर लगाम वसूली से कुलीनों का व्यवस्था बनाना और चलाना। एक ही नदी से सबको पानी मिलता था तो पानी (प्राकृतिक संसाधन) झगड़े का प्रारंभिक कारण था। ये सिटी-स्टेट शुरुआत में पुजारी-राजा की वैयक्तिक जागीर जैसे थे तो बस्तियों (देशों) में पानी को लेकर खूब लड़ाई-झगड़े थे। उस नाते यह मानना गलत नहीं है कि सभ्यता के जन्म से लेकर बचपन और युवा होने तक के दो हजार सालों की मनुष्य ट्रेनिंग, शिक्षा-दीक्षा का लब्बोलुआब लड़ाई, भेदभाव, हिंसा और स्वार्थ-अहम-भय, भूख की मनोवृत्तियों के औजार और व्यवस्थाओं के निर्माण और उपयोग है।

सभ्यता और उसके पर्याय में प्रगति व आधुनिकता जैसे फंदों का जहां सवाल है तो इस सच्चाई पर क्या सोचें कि सुमेर, मेसोपोटामिया से ही सिटी-स्टेट की प्रगति लगातार अगल-बगल के सिटी-स्टेट को लड़ाते हुए थी। दूसरे शहर (सभ्यता) पर हमला करके वहां के लोगों को दास बनाने, उन पर कोड़े चला कर काम लेने का क्या सभ्यता का व्यवहार नहीं था? गुलाम बनाना, अधीन बनाना, उपनिवेश बनाना, प्रकृति-पर्यावरण के संसाधनों के लिए सभ्यताओं की लड़ाइयां क्या पांच हजार वर्षों की सच्चाई नहीं हैं? सभ्यता ने भेदभाव और मानव व प्रकृति का जो शोषण बनाया है और लोगों को जितनी तरह से बांटा (वह भी सभ्यता के नाम पर) है वह सचमुच पांच हजार वर्षों की सर्वाधिक डार्क, काली, अंधी और भयावह हकीकत है। बावजूद इसके अनुभव को प्रगति व आधुनिकता के चश्मे में सभ्य मानना बहुत त्रासद है। भला ऐसे अनुभवों पर सोचने और नए सिरे से सभ्यता को गढऩे की जरूरत क्यों नहीं हुई? सुमेर-मेसोपोटामिया की सभ्यता और उसके बाद सभ्यताओं के लगातार, बार-बार पतन के बावजूद उनसे मनुष्य कुछ सीखता हुआ क्यों नहीं?

इन्हें भी पढ़ें

  • All
  • विशेष
  • लाइफस्टाइल
  • खेल
Corona virus

मुख्य महामारी विशेषज्ञ ने बोले- कोरोना मुक्त हुआ भारत पर अभी भी मास्क जरूरी

April 5, 2022
UN

यूएन: सवाल और भी हैं!

January 12, 2023
प्रशांत किशोर

सच होने जा रही है PK की एक और भविष्यवाणी?

December 12, 2022
पहल टाइम्स

पहल टाइम्स का संचालन पहल मीडिया ग्रुप्स के द्वारा किया जा रहा है. पहल टाइम्स का प्रयास समाज के लिए उपयोगी खबरों के प्रसार का रहा है. पहल गुप्स के समूह संपादक शूरबीर सिंह नेगी है.

Learn more

पहल टाइम्स कार्यालय

प्रधान संपादकः- शूरवीर सिंह नेगी

9-सी, मोहम्मदपुर, आरके पुरम नई दिल्ली

फोन नं-  +91 11 46678331

मोबाइल- + 91 9910877052

ईमेल- pahaltimes@gmail.com

Categories

  • Uncategorized
  • खाना खजाना
  • खेल
  • गैजेट्स
  • जुर्म
  • दिल्ली
  • धर्म
  • फैशन
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • राजनीति
  • राज्य
  • राष्ट्रीय
  • लाइफस्टाइल
  • विशेष
  • विश्व
  • व्यापार
  • साक्षात्कार
  • सामाजिक कार्य
  • स्वास्थ्य

Recent Posts

  • हरक सिंह रावत का BJP पर वार, 27 करोड़ चंदा विवाद से सियासत गरमाई, त्रिवेंद्र रावत का जवाब!
  • BJP नहीं देगी कोई बड़ा सरप्राइज? जानें नए अध्यक्ष पर क्या है नया अपडेट
  • कल से चालू ट्रंप के 50 फीसदी टैरिफ का मीटर, क्‍या होगा जीडीपी का

© 2021 पहल टाइम्स - देश-दुनिया की संपूर्ण खबरें सिर्फ यहां.

  • होम
  • दिल्ली
  • राज्य
  • राष्ट्रीय
  • विश्व
  • धर्म
  • व्यापार
  • खेल
  • मनोरंजन
  • गैजेट्स
  • जुर्म
  • लाइफस्टाइल
    • स्वास्थ्य
    • फैशन
    • यात्रा
  • विशेष
    • साक्षात्कार
  • ईमैगजीन

© 2021 पहल टाइम्स - देश-दुनिया की संपूर्ण खबरें सिर्फ यहां.