प्रकाश मेहरा
नई दिल्ली: जब हम प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के अधिकारियों को देश भर में अनेक जगहों पर भ्रष्टाचार के खिलाफ निरंतर सक्रिय देख रहे हैं, तब किसी ईडी अधिकारी का रिश्वत लेते पकड़े जाना बहुत निराश करता है। अलबत्ता, राजस्थान में ईडी के एक अधिकारी व उसके सहयोगी की गिरफ्तारी जरूरी व स्वागतयोग्य है। किसी भी व्यवस्था में प्रष्ट लोगों के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए। राजस्थान के नीमराणा में एंटी करप्शन ब्यूरो (एसीबी) के अधिकारियों ने ईडी के अधिकारी को 15 लाख रुपये रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों पकड़कर भ्रष्टाचार के खिलाफ एक नया अध्याय लिख दिया है।
भ्रष्टाचार को रोकने के लिए ज्यादा जरूरी है, जांच एजेंसियों का पाक दामन होना। यह ईडी अधिकारी मणिपुर के इंफाल में तैनात था और वहां चिटफंड कंपनी के मामले की जांच कर रहा था। दोषियों या पीड़ितों को बचाने के लिए वह पैसे मांग रहा था। रिश्वत मांगने में राजस्थान सरकार का एक कर्मचारी भी शामिल था, उसको भी गिरफ्तार कर लिया गया है। भ्रष्टाचार का यह पहलू भी नया नहीं है कि मणिपुर के मामले को राजस्थान में रफा- दफा करने की साजिश रची जा रही थी।
जांच एजेंसियों में भ्रष्टाचार के अनेक मामले हैं, जिनसे आम लोगों की चिंता में इजाफा होता है अभी ज्यादा दिन नहीं हुए और सरकार के प्रति अविश्वास भी बढ़ता हैं, जब केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने पांच करोड़ रुपये के भुगतान मामले में ईडी के एक सहायक निदेशक के खिलाफ मामला दर्ज किया था। यह अफसोसनाक है कि सीबीआई भी दूध की धुली नहीं है।
कुछ समय पहले ही असम पुलिस ने एक सीबीआई अधिकारी को गिरफ्तार किया था. यह अधिकारी एक व्यापारी से पैसे वसूलने की साजिश में जुटा था। और तो और, पिछले साल मई में स्वयं सीबीआई ने अपने ही चार सब-इंस्पेक्टरों को रिश्वत के आरोप में गिरफ्तार किया था। पुलिस की बात करें, तो उस पर ऐसे आरोपों को गिनते हुए कोई भी भ्रष्टाचार समग्रता में एक बड़ी चिंता का एजेंसियों में अष्टाचार की पैठ को पहले खत्म थक जाएगा। वास्तव में, विषय है। ऐसे में, जांच करना देश के तेज व न्यायपूर्ण विकास के लिए बहुत जरूरी है।
यह सवाल बहुत पुराना है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ हमें कैसे लड़ना चाहिए? इसका एक ही उपाय है और वह हमारी व्यवस्था के तहत ही किया गया है। जांच एजेंसियों को जहां एक ओर बाहर व्याप्त भ्रष्टाचार से लड़ना है, वहीं उन्हें अपने आंतरिक कमियों से भी निपटना होगा। जैसे ईडी के नाकारा अधिकारी को एसीबी ने पकड़ा है, जैसे एसीबी के धोखेबाज अधिकारियों को पुलिस या सीबीआई पकड़ती है, जैसे सीबीआई के भ्रष्ट अफसरों को स्वयं सीबीआई हथकड़ी पहनाती है, इस सुधार या सतर्क प्रक्रिया को तेज करने की जरूरत है। आखिर लोहा ही लोहे को काटता है।
एजेंसियों को अपनी शुचिता, ईमानदारी, विश्वसनीयता बरकरार रखनी चाहिए। उन्हें कोई राजनीतिक कोण से न देखे, उनका कोई दुरुपयोग न करे, यह सुनिश्चित करने का काम भी स्वयं एजेंसियों का है। जांच एजेंसियों को नैतिकता के मजबूत चबूतरे पर पांव रखकर काम करना चाहिए। राजस्थान की ही अगर बात करें, तो चुनाव से पहले वहां ईडी की बड़ी सक्रियता को गहलोत सरकार ने राजनीतिक प्रतिशोध बताया है। विभिन्न विपक्षी दलों के नेता भी लगातार आरोप लगा रहे हैं कि एजेंसियों का दुरुपयोग हो रहा है। हमारी एजेंसियों को ऐसी आशंकाओं को मजबूत नहीं होने देना चाहिए।