राष्ट्रपति चुनाव में किसी भी उम्मीदवार के अपने प्रदेश में ऐसी बेइज्जती नहीं हुई होगी, जैसी यशवंत सिन्हा की हुई है। उनको पूरे देश में अच्छी खासी संख्या में वोट मिले हैं। किसी भी विपक्षी उम्मीदवार को जितने वोट मिलते हैं उतने उनको भी मिल गए। लेकिन झारखंड में उनकी बहुत बुरी दशा हुई। यूपीए और एनडीए दोनों के नेताओं ने उनका साथ छोड़ दिया। आमतौर पर उम्मीदवार जिस राज्य का होता है वहां के विधायक व सांसद पार्टी लाइन से हट कर उसको वोट करते हैं। लेकिन इस बार झारखंड में उलटा हुआ है। राज्य में 81 विधायक और 14 सांसद हैं, जिनमें से यशवंत सिन्हा को एक भी सांसद का वोट नहीं मिला। विधायकों में भी सिर्फ आठ ने उनको वोट दिया। यह तब हुआ, जबकि राज्य में दो सांसद यूपीए के हैं और 50 के करीब विधायकों का समर्थन जेएमएम के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के साथ है।
असल में राज्य में सरकार चला रही जेएमएम ने पहले ही आदिवासी के नाम पर द्रौपदी मुर्मू का समर्थन करने का ऐलान कर दिया था। कांग्रेस ने जरूर यशवंत सिन्हा को समर्थन दिया लेकिन कांग्रेस के विधायकों और इकलौती सांसद ने क्रॉस वोटिंग कर दी। यह प्रदेश में पार्टी के नए प्रभारी महासचिव अविनाश पांडे के लिए भी बड़ा झटका है, जिन्होंने सिन्हा को वोट दिलाने का जी-तोड़ प्रयास किया। कांग्रेस के 12 विधायकों और एक सांसद ने मुर्मू को वोट किया। जेएमएम के सभी 30 विधायकों और एक सांसद ने भी मुर्मू को वोट किया और भाजपा व उसके सहयोगियों के 12 सांसदों और 30 विधायकों ने भी मुर्मू के लिए वोट किया। इस तरह कांग्रेस के बचे हुए और लेफ्ट व राजद के कुल नौ वोट सिन्हा को मिले।