आर्चिस चौधरी
नई दिल्ली। 18वीं लोकसभा के लिए चल रहे चुनावों के मद्देनजर इस बात को समझने के लिए कि क्या एआई टेक्नोलॉजी चुनाव प्रक्रिया को प्रभावित कर सकती है, इण्डियन विमन प्रेस कॉर्प्स में एक पैनल चर्चा आयोजित की गई। जिसमें जाने माने AI विशेषज्ञ- बूम के वरिष्ठ संवाददाता आर्चिस चौधरी, ‘फेमिनिज्म इंडिया ‘ की सीईओ जपलीन पसरीचा, एआई थॉट लीडर कार्तिक शर्मा, इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन की एसोसिएट पॉलिसी काउंसिल तेजसी पंजियार शामिल थे।
एआई का उपयोग कुछ समय से किया जा रहा है लेकिन जेनेरेटिव एआई ने चुनाव प्रक्रिया पर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रभाव डाले हैं। जेनरेटिव एआई का सबसे बड़ा प्रभाव यह है कि इसने सूचना के प्रसंस्करण में क्रांति ला दी है। बूम के वरिष्ठ संवाददाता आर्चिस चौधरी के अनुसार, जेनेरेटिव एआई का प्रभाव पहले से ही मौजूदा चुनावों में देखा जा सकता है पर मतदान के आस पास और अधिक देखा जा सकता है। उनका ये भी मानना है कि इन उपकरणों का इस्तेमाल राजनीतिक दलों द्वारा दुष्प्रचार अभियान के रूप में किया जा सकता है, जैसे “डीप फेक का चलन बढ़ रहा है और जवाबदेही नहीं होने के कारण, इसका भ्रामक जानकारी फैलाने के लिए दुरुपयोग किया जा सकता है।”
भारत में ‘फेमिनिज्म इंडिया’ की संस्थापक-सीईओ जपलीन पसरीचा के अनुसार, “एआई और ऑनलाइन दुर्व्यवहार भी आपस में जुड़े हुए हैं और पत्रकारों से दुर्व्यवहार होने का अधिक खतरा है”। एआई प्रौद्योगिकी “दोधारी तलवार” है जिसके ट्रोलिंग सहित कई नकारात्मक पक्ष हैं। उन्होंने कहा, “एआई से डीप फेक बनाना महिलाओं को सबसे अधिक प्रभावित करता है”, इसलिए नफरत भरे भाषण और दुर्व्यवहार को रोकने के लिए एक प्रॉपर सिस्टम होना चाहिए। “सोशल मीडिया कंपनियों को इस टेक्नोलॉजी के तेजी से फैलने से पहले ही, ऐसी चीजों के लिए सुरक्षात्मक उपाय करने चाहिए। जब भी कोई नई तकनीक पेश की जाती है तो लैंगिक भेदभाव होना एक आम बात है क्योंकि इंटरनेट समाज के बड़े हिस्से को प्रतिबिंबित करता है।”
एआई थॉट लीडर कार्तिक शर्मा ने हालांकि कहा कि राजनीतिक दलों और राजनेताओं द्वारा अपनी छवि को बेहतर बनाने के लिए चुनाव के दौरान एआई का बहुत प्रभावी ढंग से उपयोग किया जा सकता है, लेकिन समस्या प्रतिरूपण के मामले में दिखाई देती है। “चुनाव के दौरान उम्मीदवार का स्केलेबल संस्करण बनाने के लिए यह एक शानदार माध्यम है”। उन्होंने यह भी कहा, “डीप फेक कंटेंट के मामले में अस्पष्ट आईटी कानूनों के कारण कंटेंट क्रिएटर्स के स्रोत को ट्रैक करना मुश्किल हो जाता है। क़ानून में जेनरेटिव एआई की परिभाषा स्पष्ट नहीं है जिसके कारण जवाबदेही तय करने में समस्या आती है।”
इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन की एसोसिएट पॉलिसी काउंसिल तेजसी पंजियार ने कहा कि एआई का मीडिया की वैधता पर प्रभाव पड़ सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि डीप फेक के खतरे पर आईटी मंत्रालय की नीति में गहरी खामियां हैं, ऐसे में “राजनीतिक दलों की भी जवाबदेही होनी चाहिए”।