अर्जुन सिंह l शादी के अवसर पर दुल्हा और दुल्हन द्वारा एक वृक्ष लगाकर केवल शादी को ही यादगार नहीं बनाते, बल्कि धरती के प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण की दिशा में योगदान भी देते है। 1995 में मैती नाम से यह आंदोलन उत्तराखंड से शुरू हुआ जो आज देश के कई राज्यों के साथ साथ विदेश तक जा पहुंचा। जिसके द्वारा अबतक करीब पांच लाख शादियों में इससे भी अधिक वृक्ष लगाए गए है।
उत्तराखंड में मैती का अर्थ होता है, लड़की का मायका। मैती आन्दोलन गाँव कस्बे की जागरुक लड़कियाँ आपसी सहयोग से मैती ग्राम गंगा समिति का गठन करती हैं। जब भी किसी बेटी की शादी तय होती है, तो मैती ग्राम गंगा समिति कोई फलदार पौंध, विवाह पर नव दम्पति द्वारा घर या गांव की उपलब्ध जमीन पर लगवाती हैं। जिनकी बेटियाँ इन पौधों को अपनी शादी की यादगार में लगाकर अपने ससुराल चली गई हैं। उनकी ममता अपनी बेटी की इस निशानी को कभी नहीं सूखने देती है। जो शादी की यादगार के साथ पर्यावरण के लिए समृद्धि का कारक भी बनता है।
अमूमन शादियों में जूता छुपा कर दुल्हे से पैसे लेने का चलन देखने में आता है। इस कुरीति को बन्द कर शादी के अवसर पर एक पेड़ लगाने की परम्परा मैती द्वारा शुरु की गई हैं। जिसमे दूल्हा लगाये गये पौध की सुरक्षा एवं देखभाल के निमित कुछ सहयोग राशि मैती ग्राम गंगा समिति को देता है। जैसे-जैसे समिति के कोष में भी वृद्धि होती है। इस धनराशि का उपयोग पौधों की देखभाल, गरीब बेटियों की सहायता, स्वास्थ्य, स्वच्छता तथा बच्चों की शिक्षा में उपयोग किया जाता है।
वही दूसरी ओर ऐसा करने से भविष्य में गाँव की धरती के पानी के स्रोत सूखने से बचेंगे, शुद्ध हवा, ताजे फल सहित जानवरों को चारा उपलब्ध होगा। तो वही नवदम्पति का पहला शिशु जन्म लेगा तो उसके लिए भविष्य में इन सब के साथ साथ पर्याप्त और शुद्ध आक्सीजन भी होगी। इस मुहिम को जन-जन तक पहुंचाने के लिए शादी के निमंत्रण कार्ड मैती वृक्षारोपण कार्यक्रम छपवाया जाता है।
आपको बतादें कि मैती आन्दोलन का जन्म वर्ष 1995 में उत्तराखण्ड राज्य के जनपद चमोली के सीमान्त कस्बे ग्वालदम से शुरु हुआ। राजकीय इण्टर कालेज के तत्कालीन जीव विज्ञान प्रवक्ता कल्याण सिंह रावत द्वारा मैती आन्दोलन की परिकल्पना की तथा इसे साकार रूप दिया। उन्होंने शुरुवाती दौर में यह गढ़वाल तथा कुमायूँ मण्डल के कई गाँवों में इसे चलाया। लेकिन बाद में इसको काफी लोकप्रियता मिली और यह आन्दोलन देश के कई राज्यों के अलावा विदेशों में भी विस्तार पा गया। आज प्रवासी लोग भी अपने बच्चों की शादियों में पेड़ लगाने की परम्परा को आगे बढ़ा रहे हैं।
आज प्रकृति को संजोना बेहद आवश्यक हो गया है। इसे देखते हुए मैती आंदोलन द्वारा निरंतर अभियान चलाए जा रहे है जिसमे, मैती वन, मैती पितृ वन की स्थापना, पर्यावरण एवं विकास मेलों की स्थापना, ऐतिहासिक सम्मान समारोह, महावृक्ष के सम्मान में वृक्षारोपण, टिहरी झील में डूबते शहर की मिट्टी को संरक्षण कर उस मिट्टी पर वृक्षारोपण, वन्य जीव ज्योति यात्राओं का आयोजन, देवभूमि क्षमा यात्रा, कारगिल शहीदों के नाम पर शोर्य वृक्षारोपण, वन्य जीव संरक्षण शिविरों का आयोजन, नर्सरियों का निर्माण कर निशुल्क पौध वितरण, श्री बद्रीनाथ मन्दिर पर भोज वृक्षों का रोपण, हिमालयी में यात्रियों द्वारा छोड़े गए प्लास्टिक व कूड़े का निस्तारण, रजत जयन्ती पर पौधारोपण, ग्राम देव वृक्ष अभियान सहित मैती सम्मान आदि शामिल है।