सतीश मुखिया
मथुरा: भगवान श्री कृष्ण की नगरी मथुरा और ब्रज किसी भी पहचान का मोहताज नहीं है। ब्रज की संस्कृति और भारतीय इतिहास में गायों का विशेष महत्व है। हम सभी जानते हैं कि भगवान श्री कृष्ण ने बाल रूप में बृज के 84 कोष क्षेत्र में कैसे बाल्यपन में अपनी लीलाए की। भारतीय धर्म ग्रंथो और हिंदू धर्म में भी गाय का विशेष महत्व बताया गया है और बिना गोधन के भारतीय संस्कृति की परिकल्पना करना बहुत ही मुश्किल है। जब वर्ष 1947 में देश आजाद हुआ तो गोधन के लिए सरकार के द्वारा गोचर जमीने छोड़ी गई जिससे इन जमीनों पर गोधन के लिए चारा उगाने और उनके रखरखाव के लिए इस्तेमाल किया जाना था लेकिन आज आजादी के 75 वर्ष बाद इन गोचारण, गोचर जमीनों पर अस्तित्व का संकट मंडरा रहा है और यह अपने आप को बचाने के लिए जूझ रही है।
मथुरा धार्मिक नगरी है और यहां साल भर श्रद्धालुओं व पर्यटकों का आवागमन बना रहता है। दिल्ली के नजदीक होने और आवागमन की सुलभ सुविधा उपलब्ध होने के कारण यह क्षेत्र विकास की ओर अग्रसर है। जिस कारण श्रद्धालु भगवान श्री कृष्ण की नगरी मथुरा और ब्रज में अपना एक आशियाना बनाना चाहता है जिसका फायदा उठाया भूमि के क्रय विक्रय करने वाले बिल्डरों और भू माफियाओं ने, वर्ष 2017 में नगर पालिका से नगर निगम मथुरा वृंदावन बनने के बाद और शहरी क्षेत्र में 18 से 20 पंचायत के शामिल होने के बाद मथुरा शहर का क्षेत्रफल काफी मात्रा में बढ़ गया जिससे इसके आसपास के क्षेत्र में कच्ची कॉलोनी का विकास होने लगा।
इन लोगों के द्वारा श्रद्धालुओं को जिले भर में जहां-तहां खाली पड़ी गोचर जमीन और अन्य नजूल की जमीनों को राजस्व विभाग के अधिकारियों के साथ मिली भगत करके खुर्द बुर्ध करना शुरू कर दिया। जबकि इन जमीनों का ना तो मूल रूप में परिवर्तन किया जा सकता है अगर करना है तो यह कार्य जिले के जिलाधिकारी द्वारा ही किया जा सकता है। जिन जमीनों पर गोधन के लिए चार उगाया जाना था उन जमीनों पर बड़ी-बड़ी बिल्डिंग, अस्पताल और विद्यालय का निर्माण हो चुका है लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार के राजस्व विभाग में आज भी यह जमीने खसरा खतौनियों में गोचर जमीन के रूप में दर्ज हैं लेकिन वर्तमान में इनका भौतिक रूप बदल चुका है और शहर के अंदर इन जमीनों को खोजने बहुत मुश्किल काम है।
यह काम केवल भू माफियाओं द्वारा नहीं किया गया इसको संपन्न कराने में नेता नगरी और कार्यपालिका के कुछ कट्टर ईमानदार कर्मचारी अप्रत्यक्ष रूप से इसमें शामिल है जो की मिठाई रूपी सेवा लेने के उपरांत इन जमीनों को खुर्द बुर्ध करने में अपनी मुख्य भूमिका निभा रहे हैं जब कोई जागरूक नागरिक इनके गलत कार्यों की विभाग में शिकायत करता है तब यह लोग उसका फोन नंबर और नाम इन लोगों को बता देते हैं और उसके बाद उसको विभिन्न तरीकों से प्रताड़ित करवाते हैं।
अब सवाल यह उठता है कि जिस गोधन के लिए इन जमीनों की व्यवस्था की गई थी वह यहां वहां गलियों में भटकते हुए कूड़ा कचरा व अपशिष्ट में अपना मुंह मारती हुई दिखाई पड़ती है और उनके बछड़े,बछिया गंदगी में से अपना भोजन प्राप्त करते हुए दिखाई पड़ते हैं, क्या यह हिंदू धर्म और संस्कृति का पतन नहीं है कि जिस गाय की हम पूजा करते है वह गोधन अपना पेट भरने के लिए यहां वहां कचरे में अपना मुंह मारती हुई घूम रही है। अभी 2 दिन पहले मथुरा को स्वच्छ भारत अभियान के तहत स्वच्छता को लेकर देश में 11वां स्थान प्राप्त हुआ है लेकिन हकीकत क्या है यह सब आप, हम और बृजवासी अच्छी तरह से जानते हैं।
एक तरफ केंद्र सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार सबका साथ, सबका विकास का वादा करते हैं लेकिन हमारे हिंदू धर्म की धुरी गोधन आज विचलित, व्यथित और भूख से तड़प रही हैं और अपना जीवन यापन करने के लिए संघर्ष कर रही है। सरकार और धार्मिक ट्रस्टों द्वारा मथुरा वृंदावन में विभिन्न गौशालाएं संचालित की जा रही है लेकिन यह गौशालाएं किस तरह से कार्य कर रही है उसकी निगरानी की आवश्यकता है की इन गायों के लिए कार्य करने वाली गौशालाएं और धार्मिक टेस्ट दिनों दिन तरक्की कर रहे हैं लेकिन गए आज भी सड़कों पर भटकती हुई दिखाई पड़ती है।
उनके लिए केंद्र सरकार द्वारा व्यवस्था की गई गोचर जमीनों पर हरे भरे चारे की जगह बड़ी-ऊंची रंग बिरंगी बिल्डिंग उग चुकी है, क्या शासन प्रशासन को यह दिखाई नहीं देता या जानबूझकर अपनी आंखों पर पट्टी बांधे हुए हैं। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सावन के महीने में शिव भक्तों का वर्णन के लिए विशेष व्यवस्थाएं कर रहे हैं क्या वह इन गोचर जमीनों पर हुए कब्जे को इन भू माफिया से मुक्त कराएंगे या वह भी सिस्टम के आगे आत्म समर्पण कर देंगे।