अनिल पुरोहित/अशफाक
खंडवा,08 जून (आरएनएस)। क्या खंडवा भाजपा का अभेद्य किला है? निगम परिषद का 25 साल का इतिहास तो यही बताता है। पहली परिषद में अणिमा उबेजा के महापौर चुने जाने के बाद खंडवा में कभी कांग्रेस ने निगम पर कब्जा जमाने में सफलता नहीं पाई। यूँ तो भारतीय जनता पार्टी ही खंडवा विधानसभा क्षेत्र में भी एकतरफा बढ़त बनाए हुए है। पहले हुकुमचद यादव और उसके बाद लगातार देवेंद्र वमा्र को खंडवा ने चुनकर भोपाल पहुंचाया है। एक बार लोकसभा चुनाव में अरुण यादव की कांग्रेस से जीत को छोड़ दें तो लगातार भारतीय जनता पार्टी का ही दबदबा अरसे से खंडवा लोकसभा में भी रहा है। यही हाल जिला पंचायत, जनपद से लेकर मंडी में में रहा है। कांग्रेस हर चुनाव हर मोर्चे पर फिसड्डी साबित हुई है। ऐसे में निगम महापौर चुनाव में कांग्रेस अपनी जीत के लिए क्या तैयारी कर रही है? सुभाष कोठारी के महापौर काल में भाजपा नेताओं का ही विरोधरहा। विधायक देवेंद्र वर्मा से उनकी पटरी कभी नहीं बैठी। उनकी कार्यशैली, नर्मदा पाइपलाइन का बार-बार फूटने का सिलसिला हो या विभिन्न निर्माण कार्येां का बुरा हश्र, कांग्रेस ने कभी विपक्षी दल की भूमिका नहीं निभाई। कांग्रेस कभी निर्माणाधीन स्वीमिंग पूल में हुआ भ्रष्टाचार उठा न सकी। कांग्रेस ने कभी नए बस स्टैण्ड की गुणवत्ता और निर्माण पर सवाल नहीं किया। कभी ट्रांसपेार्ट नगर की हद दर्जे की देरी पर व्यापारियों का साथ दे भाजपा को नहीं घेरा, खुदी हुई सडक़ों पर जनता की तरफ से पैरवी नहीं की। भाजपा ओवरब्रिज की समस्या पर प्रभावी आंदोलन नहीं खड़ा किया।
ऐसे तमाम मुद्दे जिन पर भाजपा की निगम परिषद को घेर कर आम जनता की सहानुभूति बंटोरी जा सकती थी, उन पर कांग्रेस की चुप्पी मतदाता के दिलो दिमाग में है। ऐसे में कांग्रेस किस मुंह से महापौर पद पर अपने उम्मीदवार के लिए वोट की अपेक्षा करेगी? कांग्रेस से महापौर पद के लिए दावेदारी जता रहे कांग्रेस नेता श्याम यादव, बलराम वर्मा अथवा अन्य जिम्ममेदारों ने कब निगम से सवाल किए? कांग्रेस ने हार सहते हुए 25 साल में पूरी एक पीढ़ी गुजार दी। नये मतदाताओं को यह पता ही नहीं हे कि कांगे्रस भी कभी जीती थी। ब्राह्मण उम्मीदवार सुनीता सकरगाये हो या अजय ओझा, दोनों ही अच्छे प्रत्याशी कमजोर संगठन के चलते चुनाव हार गए। कांग्रेस में अपने बूते टिकट लाना, अकेले अपने दम पर ही चुनाव लडऩा, परंपरागत माने जाने वाले मुस्लिम मतदाताओं का छिक जाना, दो दशक में आर्थिक रूप से पार्टी और नेताओं का टूट जाना, कार्यकर्ताओं का अभाव, गुटबाजी में घिरी पार्टी की बची खुची ताकत, विरोध करने की आदत न रहना, ये ऐसे मुद्दे हैं जो कांग्रेस का आइना हैं। जो उम्मीदवार चुनाव मैदान में कूदेगा उसे इन सबसे पार होना होगा उसके बाद मतदाता के पास अपनी बात रख पाएगा। भाजपा से समाजसेवी स्वर्गीय ताराचंद अग्रवाल, संघ के साधारण सिपाही सवर्गीय वीरसिंह हिंडोन, मंत्री विजय शाह की पत्नी भावना शाह और जिलाध्यक्ष रहे सुभाष कोठारी के बाद लगातार सफल्ता का पेच लगानने के लिए नए उम्मीदवार पर मंथन तेज हो चला है। निमाड़ में बरसों सर्वमान नेता रहे नंदकुमार सिंह चौहान की अनुपस्थिति में अब कमान खंडवा एमएलए देवेंद्र वर्मा के हाथ है। भाजपा में परंपरागत है महापौर पद के लिए उम्मीदवारों ममें विधायक की इच्छा अहम होती हे, ऐसे में यहां सांसद ज्ञानेश्वर पाटिल के लिए जोर आजमाइश की गुंजाइश नहीं। बुरहानपुर महापौर प्रत्याशी उनकी रजामंदी से तय होना ही है। भाजपा मुख्यालय से जारी कार्यक्रम अनुसार 11 जून को रायशुमारी होगी। उसके बाद तीन नामों का पैनल बनाकर चर्चा होगी। 15 जून तक उम्मीदवार घेाषित होने की संभावना है।