नई दिल्ली : सीएसआईआर-आईएचबीटी, पालमपुर, हिमाचल प्रदेश सुगंधित फसलों की खेती को बढ़ावा देने के लिए सीएसआईआर अरोमा मिशन तृतीय चरण के अंतर्गत प्रयासरत है। इसी मिशन के तहत संस्थान द्वारा ऊना जिला के चोकी मनियाड पंचायत एवं कांगड़ा जिला के प्रागपुर ब्लॉक के लग बलियाना पंचायत में सुगंधित फसल नींबू घास की उन्न्त खेती और प्रसंस्करण पर पौध वितरण, जागरूकता एवं प्रशिक्षण कार्यक्रम 18 एवं 20 जुलाई, 2023 को आयोजित किए गए।
इस क्षेत्र के किसानों को पारंपरिक फसलों से गैर-लाभकारी रिटर्न एवं जंगली-जानवरों जैसे की बंदरों और आवारा पशुओं के द्वारा नुकसान की बढ़ती घटनाओं का सामना करना पड़ रहा है। इन नुकसानों को रोकने के लिए व कृषक समुदाय की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने हेतु,सीएसआईआर-आईएचबीटी सुगंधित फसलों की खेती के माध्यम से उनकी आय को दोगुना करने के लिए प्रयासरत है।
टीम सीएसआईआर-आईएचबीटी ने नींबू घास की खेती के लिए संभावित स्थानों का सर्वेक्षण किया, लोगों को अरोमा मिशन तृतीय चरण के बारे मे जागरूक किया और 27 एकड़ भूमि के लिए नींबू घास के 3 लाख स्लिप्स का वितरण किया। ड़ा राकेश कुमार, वरिष्ठ प्रधान विज्ञानी एवं सह नोडल अधिकारी अरोमा मिशन ने बताया की नींबू घास बहुवर्षीय एवं बार-बार काटी जा सकने वाली घास है। इस फसल की व्यापक रूप से उष्णकटिबंधीय और उपउष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में खेती की जाती है। इसकी पत्तियों से सगंध तेल प्राप्त होता है। नींबू घास के तेल में सिट्रल (80-85%) प्रमुख घटक होता है। नींबू घास के तेल का साबुन, डिटर्जेंट, और सौंदर्य प्रसाधनों में एक खुशबू घटक के रूप में प्रयोग किया जाता है तथा अरोमा चिकित्सा में भी इसका उपयोग होता है।
सुगंधित तेल काटी गई नींबू घास से निकाला जाता है। नींबू घास के तेल की कीमत 1400-1700/- रुपये प्रति किलो है। प्रति कनाल औसतन 8-10 क्विंटल घास एवं 5-6 किलो सगंधित तेल की प्राप्ति हो जाती है। इससे किसान अनुपजाऊ जमीन से भी प्रति वर्ष लगभग 4000-5000 रुपए का शुद्ध लाभ अर्जित कर सकते हैं जहां से उनको जीरो इनकम प्राप्त होती है। साथ ही बंदर एवं जंगली जानवर इस फसल को नुकसान नहीं करते। उन्होने बताया की बरसात का मौसम इसकी रोपाई के लिए उपयुक्त समय है। एक बार रोपाई करने से 5-6 वर्ष तक इसकी फसल प्राप्त की जा सकती है। टीम ने किसानों को अपने क्षेत्र में सुगंधित फसलों की खेती के लिए खेत की तैयारी, फसल की आवश्यकताओं, प्रबंधन तकनीकों और प्रसंस्करण प्रक्रियाओं के बारे में बताया। हिमाचल प्रदेश में कांगड़ा, ऊना, हमीरपुर, बिलासपुर, सिरमौर, मंडी जिलों के निचले क्षेत्र नींबू घास की खेती के लिए काफी उपयुक्त हैं।
डॉ. सुदेश कुमार यादव, निदेशक, सीएसआईआर-आईएचबीटी, पालमपुर ने बताया कि अरोमा मिशन के अंतर्गत सगंधित फसलों को बढ़ावा देने हेतु संस्थान समय समय पर जागरूकता एवं प्रशिक्षण शिविर आयोजित करता है ताकि किसान लाभान्वित हो सकें। अंतरराष्ट्रीय बाजार में सुगंधित फसलों से प्राप्त होने वाले उत्पादों की बहुत अधिक मांग रहती है।