चन्दन कुमार
नई दिल्ली: पारंपरिक स्रोतों से प्राप्त इतिहास के अनुसार राममंदिर की वापसी के लिए 76 युद्ध लड़े गए। जब विवादित स्थल पर मंदिर के दावेदार राजाओं-लड़ाकों ने कुछ समय के लिए कब्जा भी जमाया पर यह स्थाई नहीं रह सका। जिस वर्ष मंदिर तोड़ा गया, उसी वर्ष पास की भीटी रियासत के राजा महताब सिंह, हंसवर रियासत के राजा रणविजय सिंह, रानी जयराज कुंवरि, राजगुरु पं. देवीदीन पांडेय आदि के नेतृत्व में मंदिर की मुक्ति के लिए जवाबी सैन्य अभियान छेड़ा गया। हालांकि शाही सेना को उन्होंने विचलित किया पर वे पार नहीं पा सके।
इसके बाद फरगान का आक्रमणकारी जहीर उद-दीन मुहम्मद बाबर, 1526 ई. में पानीपत के पहले युद्ध में दिल्ली सल्तनत के अंतिम वंशज सुल्तान इब्राहीम लोदी को हराकर भारत में दाखिल हुआ था। बाबर ने इसके साथ ही भारत में मुगल वंश की स्थापना की, और यहां बड़े पैमाने पर मस्जिदों का निर्माण कराना शुरू किया। उसने पानीपत में पहली मस्जिद बनवाई थी, इसके दो साल बाद बाबर ने 1527 में अयोध्या में एक मस्जिद बनवाई, जो बाबरी मस्जिद के नाम से जानी जाती है। इतिहासकारों के मुताबिक इस मस्जिद को बनवाने के लिए बाबर ने ऐसी जगह चुनी जिसे हिंदू अपने अराध्य भगवान श्रीराम का जन्म स्थान मानते थे। इसी मंदिर को विध्वंस कर इसके मलवे और ईट से मस्जिद का निर्माण करवाया!
देश में जब तक मुगलों का शासन रहा तब तक अयोध्या में विवादित स्थल को लेकर कभी कोई बड़ा विवाद नहीं हुआ, लेकिन 1853 में पहली बार इस स्थल के पास सांप्रदायिक हिंसा हुई, उस वक्त भी हिंदू यहां बनी मस्जिद को तोड़कर मंदिर बनवाना चाहते थे, उस दौर में भारत में अंग्रेजों का शासन था। लोगों को शांत करने के लिए अंग्रेज सरकार ने एक फॉर्मूला ढूंढा, जिसके तहत यहां विवादित स्थल पर बाड़ लगा दी गई, बाबरी मस्जिद परिसर के भीतरी हिस्से में मुसलमानों को और बाहरी हिस्से में हिंदुओं को प्रार्थना करने की अनुमति दे दी, साल 1949 में भगवान राम की मूर्तियां मस्जिद में पाई गईं, मुस्लिम समुदाय ने इसका विरोध किया। और दोनों पक्ष अदालत पहुंच गए, सरकार ने इस स्थल को विवादित घोषित करके यहां ताला लगा दिया!
इसके बाद मामला युद्ध के मैदान से अदालत के चौकठ पर पहुंचा ! 15 जनवरी 1885 को निर्मोही अखाड़ा के महंत रघुवरदास ने फैजाबाद के सब जज की अदालत में प्रार्थनापत्र देकर मंदिर निर्माण की आज्ञा मांगी। सब जज ने उनकी मांग अस्वीकार कर दी, तब उन्होंने जिला जज की अदालत में अपील की। 18 मार्च 1886 ई. को जिला जज कर्नल एफईए चेमियर ने विवादित स्थान का स्वयं निरीक्षण किया। उसने रघुवरदास की अपील तो खारिज कर दी पर यह कहते हुए कि हिंदुओं की पवित्र जन्मभूमि पर मस्जिद बनाना दुर्भाग्यपूर्ण है। 1912 से 1934 ई. के बीच साधु समाज और आम श्रद्धालुओं ने विवादित भूमि पर अधिकार जमा लिया, पर अंग्रेजों ने इसे स्थायी नहीं होने दिया। इस दौरान कुछ हिंदुओं पर मुकदमे भी चले पर वे निर्दोष साबित हुए।
22-23 दिसंबर 1949 की रात विवादित ढांचे में रामलला का प्राकट्य प्रसंग सामने आया। दूसरे पक्ष का कहना था कि रामलला को साजिशपूर्वक रखा गया। जबकि राममंदिर की वापसी की जुगत कर रहे लोगों का कहना था कि रामलला चमत्कारिक घटना क्रम के बीच विवादित इमारत में स्वयं प्रकट हुए। इस मुहिम के साथ मंदिर के दावेदारों की नई पीढ़ी सामने आई। इनमें निर्वाणी अखाड़ा से जुड़े महंत अभिरामदास, रामचंद्रदास परमहंस एवं गोपाल सिंह विशारद जैसे किरदार प्रमुख थे। तो पर्दे के पीछे तत्कालीन गोरक्षपीठाधीश्वर एवं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के परमगुरु महंत दिग्विजयनाथ जैसे किरदार भी थे।
सात-आठ अप्रैल 1984 को दिल्ली में आयोजित विहिप की धर्मसंसद में सनातन-वैदिक धर्म के विभिन्न संप्रदायों के 528 संतों ने एकमत से रामजन्मभूमि मुक्ति के निर्णय के प्रस्ताव का समर्थन किया। 18 जून 1984 को दिगंबर अखाड़ा में संतों की सभा के माध्यम से रामजन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति का गठन किया गया। जन जागरण के उद्देश्य से मुक्ति यज्ञ समिति के संयोजन में बिहार के सीतामढ़ी से 25 सितंबर को राम-जानकी रथयात्रा शुरू हुई। इसी वर्ष सात अक्टूबर को हजारों आम रामभक्तों एवं साधु-संतों ने अयोध्या स्थित तट पर सरयू जल से रामजन्मभूमि मुक्ति का संकल्प लिया।
21 जनवरी 1986 को अधिवक्ता उमेशचंद्र पांडेय ने रामलला के द्वार पर लगा ताला खोलवाने के लिए फैजाबाद की मुंसिफ अदालत में मुकदमा दायर किया। मुंसिफ ने इस पर कोई भी आदेश देने से इंकार कर दिया। इसके बाद पांडेय जनपद न्यायाधीश की अदालत में गए और एक फरवरी 1986 को जनपद न्यायाधीश ने ही ताला खोलवाने का आदेश दिया।
25 सितंबर, 1990 को सोमनाथ से लाल कृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा शुरू हो गई। आगे बढ़ने से पहले आडवाणी ने भाषण दिया जिसे यह कहते हुए समाप्त किया कि ‘सौगंध राम की खाते हैं, मंदिर वही बनाएंगे। बाबरी मस्जिद गिराए जाने से पहले भी एक घटना हुई, जिसने सभी को हिला दिया था. 2 नवंबर 1990 का दिन एक काले अध्याय के समान है. इसी दिन अयोध्या में कारसेवकों पर पुलिस ने गोलियां बरसाई थीं. जिसमें 40 लोगों की मौत हो गई थी. इसके बाद का मंजर भी काफी हैरान करने वाला रहा !
आखिरकार विवादित ढांचे को 6 दिसम्बर 1992 को कारसेवकों ने गिरा दिया। ढ़ांचा विध्वंस के बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को 4 राज्यों की सरकारों से हाथ धोना पड़ा था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विश्व हिन्दू परिषद और बजरंग दल पर प्रतिबंध लगा दिया गया। देश का माहौल गर्म था। तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने हड़बड़ाहट में हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान की भाजपा सरकार भंग कर दी। उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने आखिरी ईंट गिरते ही अपना मुख्यमंत्री का आधिकारिक राइटिंग पैड मंगाकर इस्तीफा लिख डाला। उस दौरान कल्याण सिंह ने कहा था कि यह सरकार राम मंदिर के नाम पर बनी थी और उसका मकसद पूरा हुआ। ऐसे में यह सरकार राममंदिर के नाम पर कुर्बान है।
एक लम्बी क़ानूनी लड़ाई लड़ने के बाद 9 नवंबर 2019: सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए राम जन्मभूमि की 2.77 एकड़ जमीन हिंदू पक्ष को देने का फैसला सुनाया, साथ ही इसका मालिकाना हक केंद्र सरकार के पास रहेगा। इसके अतिरिक्त उत्तर प्रदेश सरकार को आदेश दिया की मुस्लिम पक्ष को 5 एकड़ जमीन किसी अन्य स्थान पर दिया जाए। 5 अगस्त 2020 वह तारीख है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भगवान श्रीराम की नगरी अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर के निर्माण के लिए भूमि पूजन में हिस्सा लिया। अब यह मंदिर भव्य रूप से बनकर तैयार हो गया है ! 22 जनवरी 2024: अयोध्या में तैयार हुआ भव्य राम मंदिर में कई मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी।