तरुण राठी
आर्य समाज से निकले समाज सेवियों और देश प्रेमियों में दक्षिण एशियाई बिरादरी के अध्यक्ष सत्य पाल जी का निधन इस बीच की दुखदाई खबर है। लाला लाजपत राय द्वारा 1921 में स्थापित जीवनदानी लोक सेवकों की परंपरा को अपने कर्म से उन्नत करने वाले विभूतियों में उनकी गिनती होती रहेगी। उनकी सेवा का विस्तृत दायरा गांव की पंचायत से लेकर देश विदेश तक फैलता गया। बीते 15 फरवरी को दक्षिणी दिल्ली के लाजपत नगर स्थित लोक सेवक मंडल के मुख्यालय लाजपत भवन से उनके नहीं रहने की खबर आई थी। पंजाब के फरीदकोट में 8 नवंबर 1934 को उनका जन्म हुआ था। साठ के दशक के शुरुआत में उन्होंने लोक सेवा का जो काम आरंभ किया, जीवन के अंतिम प्रहर तक जारी रखा। हमें प्रेरित करने वाले विभूतियों में उनका भी नाम है।
उनके ठीक पहले साउथ एशियन फ्रेटरनिटी के अध्यक्ष पद पर कुलदीप नैयर और पूर्व प्रधान मंत्री इंदर कुमार गुजराल जैसी शख्सियत रहे। उनके करीबी दोस्तों में पूर्व प्रधानमंत्री डा मन मोहन सिंह से लेकर बाबा आमटे, सुब्बा राव और सुंदर लाल बहुगुणा जैसे नाम मिलते हैं। पता नहीं इक्कीसवीं सदी में भारत जोड़ो और न्याय यात्रा की बात करने वाले लोगों में कितने को पता है कि अस्सी के दशक में बाबा आमटे के भारत जोड़ो यात्रा के संयोजक भी वही थे। सर्वेंट्स ऑफ दी पीपल सोसाइटी के अध्यक्ष राज कुमार जी उनकी स्मृति में इसका बराबर जिक्र करते हुए ठीक ही कहते हैं कि बाबा का उन्होंने ही देश भर में परिचय कराया था।
उनके परलोक गमन से ठीक दो महीने पहले सरदार पटेल की पुण्य तिथि पर इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र में केंद्रीय संस्कृति राज्य मंत्री मीनाक्षी लेखी और चिदानंद मुनि जी के साथ मिल कर हमने उन्हें आयरन मैन ऑफ इंडिया अवार्ड से भी सम्मानित किया था। मेरे मित्र भरत नागर और कौशल किशोर उनकी शान में प्रस्तुति गान करते हैं। नारी शक्ति वंदन की बात पर उनकी सेवा भी सरदार पटेल की तरह ही असरदार साबित हुई है।
उन्होंने वकालत की पढ़ाई पूरी कर भटिंडा में प्रैक्टिस शुरु किया था। जेपी और विनोबा की बात मान कर लाजपत भवन की सेवा में लग गए। पत्रकारिता के क्षेत्र में उनकी सेवाओं का असर उड़ीशा में दिखता है। वहां एक कहावत प्रचलित हुआ, समाज में लपेट दो। हिंदीपट्टी में जैसे कहते हैं कि अखबार में लपेट दो। उत्कलमणि गोपबंधु दास के कार्यों को सच्चे अर्थों में आगे बढ़ाने वाले व्यक्ति भी वही हैं। ओडिया दैनिक समाज की प्रतिष्ठा में भले उनकी कोई गिनती नहीं हो, पर उनकी सेवा उत्कलमणि की तरह अद्वितीय है। लौकिक दृष्टिकोण से वास्तुकारों की श्रेणी में गिने जाने योग्य।
नागपुर से संचालित राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से पहले पुणे से संचालित सर्वेंट्स ऑफ़ इंडिया सोसाइटी और लाहौर (विभाजन के बाद पाकिस्तान में) से संचालित सर्वेंट्स ऑफ़ दी पीपल सोसाइटी की पब्लिक लाइफ ऑर्डर मिलती है। सत्य पाल जी लोक सेवा का यही मार्ग चुनते हैं। स्वतंत्रता के बाद गांधी और सावरकर भी बिना किसी सार्वजनिक पद पर बने लोक सेवा का कार्य जारी रखते हैं। पब्लिक ऑफिस के बिना लोक सेवा का उनका मिशन जय प्रकाश नारायण और विनोबा भावे जैसे गांधीवादी नेताओं की याद दिलाती रहेगी। लाल बहादुर शास्त्री बेहतरीन प्रधानमंत्रियों में गिने जाते हैं। त्रिस्तरीय पंचायती राज के पिता बलवंत राय मेहता गुजरात के दूसरे मुख्य मंत्री हुए। राजर्षी पुरुषोत्तम दास टंडन और युवा तुर्क माने जाने वाले कृष्णकांत भी उसी परंपरा को आगे बढ़ाते हैं। सत्य पाल जी इन विभूतियों के साथ मिल कर लोक सेवा का कार्य करते हुए नब्बे बसंत देखने वाले लोगों के क्लब में शामिल हुए हैं। उनका जाना एक युग के अन्त का प्रतीक है।
साठ के दशक में जब जेपी अखिल भारतीय पंचायत परिषद के अध्यक्ष निर्वाचित हुए तो उनकी टीम में सत्य पाल जी को महासचिव का पद मिला था। साल भर सेवा के लिए अपने गांव सिताबदियारा भेजते हैं। उन दिनों लोक सेवक मंडल के सचिव लाल बहादुर शास्त्री और अध्यक्ष राजर्षी पुरुषोत्तम दास टंडन रहे। गांव की सेवा में उनकी दिलचस्पी की वजह से ही उनको दुधिके गाँव (पंजाब के मोगा जिले में लालाजी का जन्म स्थान) भेजते हैं। लाजपत भवन में हुई उनकी स्मृति सभा में पहुंचने वाले इस गांव के लोगों की बातें भी काम की है।
मुश्किल समय में बेहतरीन नायक उभरते हैं। अस्सी के दशक में भारत के नेतृत्व में दक्षिण एशिया के देशों के राष्ट्रध्यक्षो ने मिल कर सार्क नामक समूह का गठन किया था। इसके सात अन्य सदस्य देशों में पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान, भूटान, मालदीव, नेपाल और श्रीलंका शामिल हैं। भूमंडलीकरण के दौर में सार्क देशों के नागरिकों के बीच आपसी स्नेह को सहेजने के लिए बनी इस बिरादरी (साउथ एशियन फ्रैटरनिटी) का खूब विकास हुआ है। सत्यपाल जी शुरु से ही इसके डिफैक्टो लीडर रहे। गुजराल डॉक्ट्रिन, भारत पाक सम्बंध और अमन की बात करते हुए उन्होंने जिस मार्ग का अवलंबन किया अखण्ड भारत के नाम पर होने वाली कोशिश में भी वही तत्त्व दृष्टिगोचर होते हैं।
उनकी छवि सार्वजनिक जीवन में सक्रिय एक संत के तौर पर सामने आती है। दक्षिण एशियाई बिरादरी के नेता दीपक मालवीय और लोक सेवक मंडल के अध्यक्ष राज कुमार जी इस परंपरा को आगे बढ़ाने में लगे हैं। हम इनके सफलता की कामना करते हैं।
(लेखक उत्तर प्रदेश फिल्म विकास परिषद के उपाध्यक्ष हैं)