सरकार ने सुप्रीम कोर्ट (SC) में हलफनामा दायर कर कहा है कि वो राजद्रोह कानून (धारा 124A) की समीक्षा करेगी. लिहाजा कोर्ट को इस पर आगे की सुनवाई करने की जरूरत नहीं है. सरकार का कहना है कि धारा 124 को लेकर न्यायविद, बुद्धिजीवियों की अलग-अलग राय है. हालांकि सभी लोग इस बात को लेकर एकमत हैं कि एक चुनी हुई सरकार को अस्थिर करने और देश की अखंडता और संप्रभुता को प्रभावित करने जैसे गंभीर मामलों से निपटने के लिए कानून होना चाहिए. सरकार इन सबको देखते हुए इस कानून की फिर से समीक्षा करेगी.
‘नागरिक स्वतंत्रता को लेकर प्रधानमंत्री खुद सजग हैं’
केंद्रीय गृह मंत्रालय की कर से दाखिल हलफनामे में कहा गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस मामले को लेकर सजग हैं और समय-समय पर अलग-अलग मंचों पर नागरिक स्वतंत्रता और मानवाधिकारों के सम्मान पर अपने विचार रखते रहे हैं. उनका मानना है कि जब देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है एक राष्ट्र के तौर पर हमें औपनिवेशिक बोझ को कम करने की जरूरत है. भारत सरकार इस क्रम में 2014 से 2015 के बीच 1500 पुराने कानूनों को खत्म कर चुकी है.
अटॉर्नी जनरल की राय
इससे पहले अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने सरकार का पक्ष रखने के बजाए कोर्ट के अधिकारी के तौर पर अपनी राय देते हुए कहा था कि आजकल हनुमान चालीसा पढ़ने के मामले में भी राजद्रोह कानून लग जाता है लेकिन किसी कानून के दुरुपयोग से उसकी वैधानिकता तय नहीं की जा सकती है. राजद्रोह कानून भले ही कायम रहे, लेकिन इसका दुरुपयोग रोका जा सके, इसके लिए सुप्रीम कोर्ट को दिशानिर्देश बनाने चाहिए.
कोर्ट में दायर याचिकाओं में मांग
सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर कर राजद्रोह कानून के दुरुपयोग की बात उठाई गई हैं. याचिकाओं में इसे ब्रिटिश राज की दमनकारी नीतियों का हिस्सा बताते हुए खत्म करने की मांग की गई है.