प्रकाश मेहरा
अयोध्या। राम के व्यक्तित्व में मर्यादा की पराकाष्ठा है। सामाजिक रा का पालन करते हुए उन्होंने सीता का त्याग मर्यादा कर दिया क्योंकि यह कर्तव्य पालन के क्रम में तत्कालीन समाज को साथ लेकर चलने वाले थे। उनके विशाल व्यक्तित्व का बहुत बड़ा उदाहरण गुरु की सेवा, माता-पिता की सेवा और पिता के वाक्य को ब्रह्म वाक्य की तरह मानना है। आज के युग में वैसे व्यक्तित्व की परिकल्पना भी असंभव है। कोई पिता अपने बेटे को आज्ञा दे कि वह वन चला जाए तो शायद वह नहीं जाएगा। पर राम के लिए कितना आसान था, यह सब कर लेना। क्योंकि, वह झूठ उको खत्म करना चाहते थे, समाज से राक्षसी प्रवृत्ति को समाप्त करना चाहते थे।
वैसे तो में ओशो का चेला हूं। ओशो ने राम के चरित्र की अच्छाइयों और कमजोर पक्ष दोनों पर प्रकाश डाला है। वे बताते हैं कि ईश्वर और कुछ नहीं प्रकृति ही है। अगर प्रकृति अनुरूप आपका व्यवहार होता है, तब आप सब दुख झेल जाएंगे। आपको सुख भी ज्यादा प्रभावित नहीं करेगा। मध्यम मार्ग को अपनाने से आप अवसाद में कभी नहीं जाएंगे। जो मैं और मेरे भाई गाते हैं। वास्तव में, मैं नहीं गा रहा हूं, वह तो वही गा रहा है। मेरे गुरु का आशीर्वाद गा रहा है। उन्होंने तो हमें सिर्फ माध्यम चुना है। हमें गाते हुए हमारे मन और आंखों के सामने राम का धनुष-बाण थामे, मुरली बजाते कृष्ण या डमरू बजाते शिव का मनोहारी रूप ही दिखता है।
तुलसीदास का पद ‘जागिए रघुनाथ कुंवर पंछी वन में बोले’ को गाते हुए, हम उस दृश्य में रमने की कोशिश करते हैं कि एक कोमल से नन्हे बालक राम को जगाया जा रहा है या’ श्रीरामचंद्र कृपाल भजुमन’ हम गाते हैं तब एक भक्त का हृदय भक्ति भाव से ओत-प्रोत हमारे मन में हिलोरे लेता है। ऐसी ही एक और रचना- ‘जननी में न जिऊं बिन राम’ में भरत का अपनी माता से संवाद है। राम के वन गमन के बाद भरत का दुख असीम है। उनके उस दुख को हम अंतरमन में महसूस करते हैं ताकि उनका वह दुख हमारे गाने में झलके।
मुझे लगता है कि यह प्रकृति प्रदत्त व्यवस्था है। यह हमारे अस्तित्व को तय करती है। उसी का परिणाम है कि में और मेरे छोटे भाई साजन जी साथ- साथ पले-बढ़े, साथ-साथ गाना सीखा और अब साथ-साथ गा रहे हैं। मेरे बच्चे रीतेश-रजनीश गा रहे हैं। प्रकृति की व्यवस्था सचमुच अनुपम है। है कि हम दोनों भाई साथ गाएं। हमारे संयुक्त परिवार में कहीं बच्चों की किलकारियां हैं तो कहीं उनकी छोटी-छोटी बातों पर रूठना- मनाना है। हमारे भारतीय जीवन मूल्य बहुत दूरदर्शी हैं। एक साथ रह कर साथ-साथ सुख-दुख भोगने में सब शक्ति अपने अंदर ही महसूस होती है। इसमें बरकत होती है। यह हमारा बड़ा सौभाग्य है और यह राम का आदर्श है कि भाइयों में आपसी प्रेम हो, वे मिल-जुलकर रहें।
राम का माता-पिता के प्रति, गुरु के प्रति, भाई के प्रति, लोगों के प्रति, जीव मात्र के प्रति जो प्रेम और आदर का भाव है, वह अप्रतिम और अनुकरणीय है। मेरे छोटे भाई साजन जी लक्ष्मण जी की तरह मुझे मिले हैं। वे मेरी हर आवश्यकता और मन की दशा को बिना बोले ही जान जाते हैं। मुझे लगता है कि जौवन में प्रेम से बड़ी कोई और चीज नहीं है। हम एक-दूसरे को प्रेम- सम्मान देगे तो हमें भी मिलेगा।
राम भारतीय जन-मानस में बहुत गहरी पैठ किए हुए हैं। जिन दिनों ‘रामायण’ सीरियल टेलीविजन पर प्रसारित होता था, उन दिनों इतवार को जब यह धारावाहिक प्रसारित होता था, तब पूरे मोहल्ले, पूरी गलियां यहां तक कि पूरे शहर सुने हो जाते थे। सच! राम के व्यक्तित्व ने पूरे विश्व को प्रभावित किया है। अच्छे इंसान के अंदर राम तत्त्व हावी रहते हैं और बुरे इंसान के अंदर रावण तत्त्व हावी रहता है।
राम के व्यक्तित्व ने पूरे विश्व को प्रभावित किया है। अच्छे इंसान के अंदर राम तत्त्व हावी रहते हैं और बुरे इंसान के अंदर रावण तत्त्व हावी रहता है।