प्रकाश मेहरा
नई दिल्ली: साल 2023 चिंता और आशंकाओं के साथ शुरू हुआ था। कोरोना की दहशत हवा में फैलती दिख रही थी। विश्व बैंक को तो डर लग रहा था कि कहीं हम 1970 जैसी बड़ी आर्थिक मंदी के मुहाने पर तो नहीं खड़े हैं। हालांकि, इसके साथ ही उसने भरोसा जताया था कि दुनिया भर में मंदी की चिंता के बीच भारत से ही यह उम्मीद दिखती है कि वह सबसे अच्छी तरह इस परिस्थिति से मुकाबला कर सकता है और साल खत्म होते-होते कम से कम यह बात दावे के साथ कही जा सकती है कि भारत ने विश्व बैंक को निराश नहीं किया।
इस बार लग रहा है कि एक ऐसा साल गया, जिसमें तमाम चुनौतियों के बावजूद काफी कुछ हासिल भी हुआ और आने वाले साल ही नहीं, आने वाले कई सालों के लिए एक मजबूत बुनियाद भी तैयार हुई है। हालांकि, चुनौतियां भी हैं और बहुत बड़ी भी, पर यह साफ है कि भारत अब एक नई छलांग के लिए तैयार है। वह छलांग, जिसका इंतजार काफी समय से हो रहा था, कहा जा रहा था कि हाथी कैसे छलांग लगाएगा?
हाथी की चाल पर सवाल उठाने वाले शायद भूल गए कि 2022 चीन के कैलेंडर में बाघ का साल था, बाघ भारत का राष्ट्रीय पशु है, और टाइगर इकोनॉमीज या दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों से मुकाबले के लिए एक दमदार प्रतीक भी, पर 2023 खरगोश का साल है और खरगोश इस बार चीन के बजाय भारत की तरफ से दौड़ पड़ा है। इसी का असर है कि यह साल जीडीपी की रफ्तार में उम्मीद से ज्यादा तेजी लाने में कामयाब हुआ है। साल की तीसरी तिमाही और वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही यानी जुलाई से सितंबर के बीच भारत की जीडीपी में 7.6 प्रतिशत की बढ़त हुई है, यानी रिजर्व बैंक के अनुमान 6.5 प्रतिशत से कहीं ज्यादा। यही नहीं, दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में भारत की वृद्धि दर सबसे तेज रहने वाली है। रफ्तार में तेजी का असर भारत में ही नहीं, दुनिया भर में महसूस किया जा रहा है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का कहना है कि दुनिया के विकास में भारत 16 प्रतिशत का योगदान कर रहा है। उसने भारत को ‘ग्लोबल ग्रोथ लीडर’ की संज्ञा दी है, यानी विकास के मोर्चे पर विश्व गुरु।
चिंताएं गंभीर थीं और चुनौती विकट, पर करीब- करीब हर मोर्चे पर भारत बाधाएं पार करने में कामयाब रहा। यहां तक कि आर्थिक संकट से जूझती दुनिया में अपनी हैसियत बढ़ाने में भी भारत सफल रहा, ब्रिटेन को पीछे छोड़कर वह दुनिया की पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया। इस कामयाबी के पीछे कुछ चीजों की बहुत- बड़ी भूमिका है, जैसे डिजिटल ट्रांसफर। यहां भारत में बैठकर शायद महसूस नहीं होता कि हम कितना बदल गए हैं। बहुत देश इस राह चलने को आतुर हैं। साथ ही, जीएसटी और आयकर के मोर्चे पर भी डिजिटलीकरण के फायदे साफ दिखाई पड़ रहे हैं। जीएसटी की औसत अपमासिक वसूली 1.66 लाख करोड़ रुपये हो चुकी है।
टेक्नोलॉजी की दुनिया में तो भारत का सिक्का चल ही रहा था, बल्कि अब कृत्रिम मेधा या आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और अंतरिक्ष विज्ञान में भारत का दबदबा जगजाहिर हो चुका है। इसरो की दसियों साल की मेहनत रंग ला चुकी है और अब तो निजी कंपनियां भी इन दोनों क्षेत्रों में बड़े सौदों की तैयारी में जुटी हैं।
कोरोना का डर खत्म होने के बाद लोगों ने बाहर निकलना और खर्च करना शुरू किया है, बल्कि जोर- शोर से किया है। ‘सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी’ के मुताबिक, इस बार कंज्यूमर सेंटिमेंट में तेजी के पीछे गांवों से आने वाली मांग का भी बड़ा हाथ है। यही नहीं, कंपनियों के रिजल्ट देख लें या बार-बार आसमान में सुराख करने की कोशिश करता हुआ शेयर बाजार, सब यही दिखा रहे हैं कि भारत एक नई रेस की तैयारी में है।
वैसे साल खत्म होते-होते एक चेतावनी आई है, जो भारत सरकार के लिए अगले साल चिंता का कारण बन सकती है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने चेताया है कि भारत सरकार पर कर्ज का बोझ काफी बढ़ चुका है और खतरा है कि यह कर्ज भारत की जीडीपी, यानी सकल घरेलू उत्पाद से भी ऊपर निकल जाए। हालांकि, भारत सरकार ने इस आशंका को निर्मूल बताया और कहा है कि वर्ष 2028 तक ऐसा होने की कोई गुंजाइश नहीं है।
इस बात से एक दूसरा सवाल उठता है, जो शायद आने वाले साल के लिए बहुत सारे जवाब और रास्ते खोल सकता है। कर्ज कितना है, इससे ज्यादा जरूरी सवाल है कि कर्ज लेकर किया क्या जा रहा है? आने वाले साल में भारत के लिए सबसे बड़ी उम्मीदें या सबसे बड़ी चुनौतियां क्या हैं? भारत और भारतीयों की महत्वाकांक्षा बढ़ रही है। तमाम भारतीय कंपनियां इस बक्त दुनिया के दूसरे हिस्सों में जाकर कारोबार फैला रही हैं या वहां कंपनियां खरीदती दिख रही हैं। दुनिया के मौजूदा हालात में भारत के लिए जबर्दस्त मौके दिख रहे हैं। कंसल्टिंग कंपनी मैकेंजी की स्टेट ऑफ फैशन रिपोर्ट के मुताबिक, भारत आने वाले साल में लग्जरी कंजंप्शन यानी महंगी चीजों की खरीद के मामले में दुनिया का सबसे चमकदार बाजार रहने वाला है।
यह एक बड़ी चिंता का कारण भी हो सकता है, क्योंकि गरीब-अमीर की खाई बढ़ने की चिंता और के शेप्ड रिकवरी यानी कोरोना से उबरने के दौर में गरीबों का और गरीब होना सभी विशेषज्ञों को परेशान करता रहा है, लेकिन अब इसे एक और चश्मे से देखना शायद जरूरी है। लगभग तीस साल से भारत में मध्यवर्ग की महत्ता पर जोर दिया जा रहा है। सिद्धांतकार बताते हैं कि अगर मध्यवर्ग आगे बढ़ता है, तो समाज के सबसे कमजोर लोगों को सहारा देना सरकार के लिए आसान हो जाता है। क्या यही बात थोड़ा आगे बढ़ाकर लागू नहीं हो सकती ? पिछले दो-तीन साल में जिस तरह से देश में अमीरों की संख्या और उनके पास जमा संपत्ति में उछाल आया है, उसका सदुपयोग करने का रास्ता क्या हो ? सरकार टैक्स लगाकर उनसे पैसा ले और गरीबों की मदद करे। अनुभव बताता है कि यह नुस्खा बहुत कारगर नहीं है। दूसरा सवाल है कि क्या अमीर होने के साथ-साथ लोग अपने आस-पास के समाज में बहुत सारे लोगों को साथ लेकर बढ़ रहे होते हैं या नहीं?
पिछले साल देश में कई अरबपतियों ने अपनी संपत्ति का बड़ा हिस्सा समाज कार्यों में लगाने का एलान किया है। यह सिलसिला रफ्तार पकड़ता दिख रहा है। ऐसे में, जॉर्ज ऑरवेल का कथन याद आता है, ‘या तो हम सब एक अच्छी दुनिया में रहेंगे या फिर कोई भी नहीं रहेगा।’
उम्मीद करनी चाहिए कि 2024 में भारतीय समाज इस दुविधा का हल निकालेगा और फिर तो न जाने कितनी दिशाओं में कितने ही रास्ते खुल जाएंगे।
इस बार लग रहा है कि एक ऐसा साल बीत रहा है जिसमें तमाम चुनौतियों के बावजूद काफी कुछ हासिल हुआ और आने वाले कई सालों के लिए एक मजबूत बुनियाद भी तैयार हुई है: प्रकाश मेहरा