नई दिल्ली: पिछले महीने जोहान्सबर्ग में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ एक संक्षिप्त बैठक के दौरान सीमा मुद्दों पर कड़ी बात करके, प्रधानमंत्री मोदी ने चीन को संदेश दे दिया था, कि भारत अब चीन को लेकर नीति और रणनीति, दोनों बदल चुके हैं।
द सनडे गार्डियन की रिपोर्ट के मुताबिक, उच्च स्तरीय बैठकों की जानकारी रखने वाले एक राजनयिक सूत्र ने कहा है, कि “देश के शीर्ष नेतृत्व ने देश के डिप्लोमेट्स, विदेश विभाग के अधिकारयों और सैन्य कमांडरों को स्पष्ट संदेश दे दिया है, कि चीन को काउंटर करने का प्लान एक्टिव कर दिया जाए।”
रिपोर्ट के मुताबिक, इस प्लान के तहत भारत ने क्वाड देशों के साथ साथ आसियान और प्रशांत द्वीप देशों के साथ सहयोग को गहरा करने के लिए काम करना शुरू कर दिया है।
चीन को काउंटर करने का प्लान एक्टिव
द सनडे गार्डियन ने सूत्रों के हवाले से दावा किया है, कि पीएम मोदी, मंत्री और शीर्ष राजनयिक और सुरक्षा अधिकारी “बीजिंग के विस्तारवादी और आक्रामक एजेंडे का मुकाबला करने के नई दिल्ली के रणनीतिक लक्ष्य” को हासिल करने के लिए इन वैश्विक मंचों और विभिन्न अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों का उपयोग करेंगे।
एक अधिकारी ने अखबार को बताया, कि “ताइवान तक पहुंच बढ़ाना रणनीति में शामिल प्रमुख कदमों में से एक होगा।”
नई दिल्ली में 9-10 सितंबर को आगामी जी20 शिखर सम्मेलन के कारण व्यस्त कार्यक्रम के बावजूद, पीएम मोदी 6-7 सितंबर को जकार्ता में आसियान शिखर सम्मेलन में भाग लेने के इच्छुक हैं। अधिकारियों का कहना है, कि यह चीन को ध्यान में रखकर आसियान देशों तक पहुंचने की मोदी सरकार के प्लान का एक हिस्सा है।
अधिकारी ने कहा, कि यह यात्रा भारत की एक्ट ईस्ट नीति के ढांचे में महत्वपूर्ण है। पीएम मोदी का ध्यान आसियान साझेदारी को गहरा करने पर है, जो भारत की विदेश नीति की आधारशिला के रूप में कार्य करती है। सूत्रों ने कहा, कि पीएम मोदी के क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देने और संबंधों को मजबूत करने के लिए, कई आसियान नेताओं के साथ द्विपक्षीय बैठकें करने की उम्मीद है, जिसका उद्देश्य आक्रामक बीजिंग को नियंत्रित करना भी है।
सूत्रों ने कहा, कि जाहिर तौर पर चीन के प्रभाव का मुकाबला करने की भारत की रणनीति इन क्षेत्रों में फोकस करने की है, क्योंकि ये क्षेत्र पहले से ही चीन से परेशान रहा है।
असल में, भारत इंडो-पैसिफिक ढांचे में आसियान की केंद्रीय भूमिका को पहचानता है, खासकर चीन के प्रभाव और आसियान देशों के साथ उसके समुद्री तनाव के संदर्भ में। इस बैक ग्राउंड में, पीएम मोदी की आसियान पहुंच काफी महत्वपूर्ण हो जाती है। पीएम मोदी, भारत-आसियान शिखर सम्मेलन के अलावा पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में भी हिस्सा लेंगे।
भारत के लिए आसियान कितना महत्वपूर्ण
आसियान के तीन देश, इंडोनेशिया, फिलीपींस और वियतनाम ने चीन के तथाकथित पिछले दिनों जारी किए गये “स्टैंडर्ड मानचित्र” का विरोध किया है, जिसमें भारत के अक्साई चिन और अरुणाचल प्रदेश को चीन का हिस्सा बताया गया है, जिसको लेकर भारत ने कड़ी आपत्ति जताई है।
भारत, दक्षिण पूर्व एशिया में अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए काफी तेजी से कोशिशें कर रहा है, जिसे एक ऐसे कदम के रूप में देखा जा रहा है, जो देशों को क्षेत्र में चीन के प्रभुत्व का मुकाबला करने की अनुमति देगा। 2014 में सत्ता में आने के बाद “लुक ईस्ट” को “एक्ट ईस्ट” में बदलने वाले पीएम मोदी ने राजनयिकों से क्षेत्र में चीन पर लगाम लगाने के लिए आसियान और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के साथ संबंधों को दोगुना और विस्तारित करने के लिए कहा है।
अधिकारियों ने कहा, “चीन को घेरने और उसका मुकाबला करने के लिए क्षेत्रवार रणनीति पर काम किया जा रहा है।”
भारतीय अधिकारियों ने कहा, कि “एक और प्रभावी डिप्लोमेटिक उपकरण, जिसे भारत चीन के खिलाफ उपयोग करने का इच्छुक है, वह ताइवान है। भारत सरकार आने वाले दिनों में आर्थिक, व्यापार, रणनीतिक और राजनयिक मोर्चों पर ताइवान तक पहुंच बढ़ाने जा रही है।”
जबकि, चीन ने दो दिन पहले ही धमकी दी है, कि अगर भारत, ताइवान के साथ संबंधों को बढ़ावा देता है, तो आपसी संबंध खराब होंगे।चीन ने गुरुवार को कहा है, कि भारत को “एक चीन सिद्धांत” का पालन करना चाहिए और ताइवान के साथ सैन्य और सुरक्षा सहयोग नहीं करना चाहिए।
चीन की यह प्रतिक्रिया उस वक्त आई है, जब भारत के तीनों सेनाओं के पूर्व प्रमुखों ने पिछले दिनों ताइवान की यात्रा की है, जिसे बीजिंग एक अलग क्षेत्र के रूप में दावा करता है।
भारत के पूर्व सेना प्रमुख एम.एम. नरवणे, पूर्व नौसेना प्रमुख करमबीर सिंह और पूर्व वायुसेना प्रमुख आर.के.एस. भदौरिया ने 8 अगस्त को केटागलन फोरम के 2023 इंडो-पैसिफिक सुरक्षा संवाद के लिए ताइवान का दौरा किया था और इस दौरान उन्होंने कई प्लेटफॉर्म पर बातचीत की थी।
तीनों पूर्व सेना प्रमुखों की ताइवान की यात्रा अत्यंत दुर्लभ थी, जो बताता है, कि मोदी सरकार का प्लान एक्टिव हो चुका है। वहीं, भारत के एक राजनयिक ने कहा, कि “चीन, जो मानचित्र मुद्दे पर भारत को शांत रहने के लिए कह रहा है, वो ताइवान पर आक्रामक रुख अपना रहा है, क्योंकि अब उसे लग रहा है, कि उसकी एक चीन नीति पर विवाद हो रहा है।”
सूत्रों ने कहा, भारत चीन को उसी की भाषा में जवाब देते हुए अब इसी तरह कई और वरिष्ठ अधिकारियों को ताइवान भेजना जारी रखेगा। एक राजनयिक ने कहा, कि “पीएम मोदी चाहते हैं, कि भारत संबंधित पक्षों के बीच सहयोग और संवाद बढ़ाए, ताकि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति, सुरक्षा और समृद्धि को बनाए रखा जा सके और आगे बढ़ाया जा सके।”
चीन के खिलाफ चौतरफा तैयारी
इसके अलावा, मोदी सरकार ने सीमा पर सुरक्षा चिंताओं को दूर करने के लिए भी हाल ही में, भारतीय सेना के लिए घरेलू निर्माताओं को हथियारों के लिए 7,300 करोड़ रुपये का ऑर्डर दिया है। वहीं, 7,000 करोड़ रुपये के एक और कॉन्ट्रैक्ट पर बातचीत एडवांस स्टेज में है।
रिपोर्ट के मुताबिक, ये डील आने वाले हफ्तों में पूरे हो जाएंगे।
सूत्रों ने कहा है, कि उपकरणों की लिस्ट में ड्रोन और काउंटर-ड्रोन सिस्टम, स्वचालित स्पेक्ट्रम मॉनिटरिंग सिस्टम, लोइटर मूनिशन हथियार, सिमुलेटर, कम्युनिकेश सिस्टम और वाहन शामिल हैं। मालाबार अभ्यास में भाग लेने के लिए ऑस्ट्रेलिया के पूर्वी तट पर जाते समय, चीनी युद्धपोत हाई यांग 24, जो एक निगरानी जहाज है, वो श्रीलंका आ रहा था, जिसका जवाब देते हुए भारतीय नौसेना ने फौरन अपना युद्धपोत पापुआ न्यू गिनी और सोलोमन द्वीप के लिए रवाना कर दिया।
इसने प्रशांत देशों के साथ मजबूत सैन्य और राजनयिक संबंधों में भारत की रुचि को रेखांकित किया। एक सूत्र ने कहा, कि “इस तरह भारत क्षेत्र में चीन के प्रभाव से निपटने के लिए एक व्यापक रणनीति पर काम कर रहा है।”सूत्रों के मुताबिक, पीएम मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने, चीन का मुकाबला करने के लिए क्वाड देशों और अन्य आसियान देशों के साथ ज्यादा से ज्यादा समुद्री अभ्यास आयोजित करने के लिए शीर्ष सुरक्षा और सैन्य अधिकारियों के साथ परामर्श तेज कर दिया है।
इसी तरह, भारत ने कनेक्टिविटी परियोजना पर तेजी से काम किया है, जिसका उद्देश्य खाड़ी में चीन के बढ़ते कदम का मुकाबला करने के लिए नई दिल्ली को मध्य पूर्व से जोड़ना है। समझा जा रहा है, कि पीएम मोदी ने उस महत्वाकांक्षी परियोजना की समीक्षा की, जिसका उद्देश्य मध्य पूर्व को सड़कों, रेल और बंदरगाहों के माध्यम से भारत से जोड़ना है।