स्पेशल डेस्क/नई दिल्ली: साल 2013 में नई नवेली आम आदमी पार्टी ने अपने पहले चुनाव में 70 में से 28 सीटें जीतकर सबको चौंका दिया था। उस समय बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी लेकिन आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस से मिलकर सरकार बनाई. लेकिन ये सरकार सिर्फ़ 49 दिनों तक चल पाई।
अरविंद केजरीवाल ने फ़रवरी 2014 में ये कहते हुए इस्तीफ़ा दे दिया कि ‘दिल्ली विधानसभा में संख्या बल की कमी की वजह से वो जन लोकपाल बिल पास कराने में नाकाम रहे हैं, इसलिए फिर से चुनाव बाद पूर्ण जनादेश के साथ लौटेंगे।’ 2015 में जब चुनाव हुआ तो दिल्ली की राजनीति में इतिहास रचते हुए ‘आप’ ने 70 में से 67 सीटें जीत लीं। इस बात को एक दशक बीत चुके हैं
दिल्ली में कथित शराब घोटाले में जेल से रिहा होने के बाद केजरीवाल ने पिछले साल सितंबर में मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा दे दिया और एलान किया, “मैं सीएम की कुर्सी से इस्तीफ़ा देने जा रहा हूं और मैं तब तक सीएम की कुर्सी पर नहीं बैठूंगा जब तक जनता अपना फ़ैसला न सुना दे।” और केजरीवाल तबसे दिल्ली की जनता के बीच हैं, सभाएं कर रहे हैं, यात्रा निकाल रहे हैं और नई घोषणाएं कर रहे हैं, जिनमें ‘पुजारी ग्रंथी सम्मान योजना’ और ‘महिला सम्मान योजना’ चर्चा में हैं।
विश्लेषकों का मानना है कि इस बार का चुनाव काफ़ी रोचक होने वाला है. जिस भ्रष्टाचार के मुद्दे पर अन्ना आंदोलन के बीच से आम आदमी पार्टी का जन्म हुआ, इसी मुद्दे पर बीजेपी केजरीवाल को घेरने की पुरज़ोर कोशिश कर रही है। बीजेपी ने अभी अपने पूरे उम्मीदवारों की सूची भी जारी नहीं की है लेकिन चुनाव प्रचार अभियान के लिए पार्टी ने अपने स्टार प्रचारक पीएम नरेंद्र मोदी को उतार दिया है और उन्होंने अपनी पहली ही चुनावी सभा में आम आदमी पार्टी पर आक्रामक हमला बोला।
पीएम मोदी ने आम आदमी पार्टी को ‘आप-दा’ कहा. बीजेपी की ओर से मुख्यमंत्री रहते हुए अरविंद केजरीवाल के आधिकारिक आवास को ‘शीशमहल’ बनाने के आरोप पुरज़ोर तरीक़े से लगाए जा रहे हैं। विश्लेषकों का कहना है कि यह चुनाव इसलिए भी रोचक होने जा रहा है क्योंकि इसके नतीजे राष्ट्रीय राजनीति को प्रभावित करेंगे और सबसे ज़्यादा, आम आदमी पार्टी के भविष्य को तय करेंगे।
बीते चार सालों में मुख्यमंत्री रहते अरविंद केजरीवाल, पूर्व उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया, पूर्व स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे और उन्हें जेल भी जाना पड़ा। आप के राज्यसभा सांसद संजय सिंह की भी गिरफ़्तारी हुई. हालांकि ये सभी लोग ज़मानत पर बाहर हैं।
राजनीतिक टिप्पणीकार और वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश मेहरा कहते हैं कि बीजेपी इस चुनाव में अधिक आक्रामक है. इसकी वजह ये भी है कि पिछले दो चुनावों से इस बार उसकी स्थिति बहुत बेहतर है।
प्रकाश मेहरा ने एक पॉडकास्ट में कहा “टक्कर सिर्फ आम आदमी पार्टी और बीजेपी के बीच है. कांग्रेस कहीं पिक्चर में नहीं है और वह सिर्फ वोट कटवा होगी. इस चुनाव में केजरीवाल के लिए बहुत कुछ दांव पर लगा है। बाकी पार्टियां हार भी जाएं तो उनका बहुत कुछ दांव पर नहीं है।”
कहीं न कहीं इस बार दिल्ली का ये चुनावी दंगल तय करेगा अरविंद केजरीवाल का भविष्य क्योंकि इस बार आम आदमी पार्टी के विरोध में कांग्रेस और बीजेपी दोनों नजर आ रही हैं जिस भी चुनाव में आप और कांग्रेस का ध्रुवीकरण हुआ वहां आम आदमी पार्टी को नुकसान हुआ है। हालांकि इस बार का ये रण बड़ा ही दिलचस्प होने वाला है।
लेकिन इस चुनाव में कांग्रेस की भूमिका दिलचस्प हो गई है। अगर बीजेपी तेज़ी से वोट शेयर का अंतर कम करती है तो कुछ सीटों पर जीत का फैसला इस बात पर निर्भर करेगा कि कांग्रेस का प्रदर्शन कैसा रहता है।