प्रकाश मेहरा
एक्जीक्यूटिव एडिटर
नई दिल्ली: ईरान और इजरायल के बीच तनाव हाल के दिनों में चरम पर पहुंच गया है। 13 जून 2025 से शुरू हुए इस संघर्ष ने मध्य पूर्व में युद्ध की स्थिति पैदा कर दी है। इजरायल ने “ऑपरेशन राइजिंग लायन” के तहत ईरान के परमाणु और सैन्य ठिकानों पर बड़े पैमाने पर हवाई हमले शुरू किए, जिसके जवाब में ईरान ने इजरायल पर सैकड़ों बैलिस्टिक मिसाइलें और ड्रोन हमले किए। दोनों देशों के बीच यह युद्ध अब तीसरे दिन में प्रवेश कर चुका है, जिससे भारी तबाही और मानवीय क्षति हुई है।
इजरायल के हमले
इजरायल ने 13 जून 2025 को ईरान के परमाणु ठिकानों, सैन्य अड्डों, तेल और गैस डिपो पर सटीक हवाई हमले किए। इनमें तेहरान, इस्फहान, फोर्डो और नतांज जैसे प्रमुख स्थान शामिल हैं। इजरायल ने ईरान की दुनिया की सबसे बड़ी गैस फील्ड साइट को निशाना बनाया, जिससे उत्पादन ठप हो गया।
इजरायली हमलों में ईरान के कई शीर्ष सैन्य कमांडर और परमाणु वैज्ञानिक मारे गए, जिनमें रिवोल्यूशनरी गार्ड्स के चीफ हुसैन सलामी, चीफ ऑफ स्टाफ मेजर जनरल मोहम्मद बाघेरी (अपुष्ट), और सुप्रीम लीडर के सलाहकार अली शमखानी शामिल हैं। इजरायल ने 200 से अधिक लड़ाकू विमानों और ड्रोनों का इस्तेमाल किया, जिसे मोसाद की खुफिया जानकारी ने समर्थन दिया।
इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा कि “यह ऑपरेशन ईरान के परमाणु खतरे को खत्म करने के लिए शुरू किया गया और तब तक जारी रहेगा जब तक लक्ष्य पूरा नहीं होता।
ईरान का जवाबी हमला !
ईरान ने 13 और 14 जून की रात को इजरायल पर 100 से अधिक बैलिस्टिक मिसाइलें और ड्रोन हमले किए, जिनमें इमाद, गदीर और खैबरशेकन जैसी नई मिसाइलों का इस्तेमाल हुआ। इन हमलों में तेल अवीव, यरुशलम, हाइफा, और अन्य शहरों को निशाना बनाया गया, जिससे कम से कम 10 इजरायली नागरिकों की मौत और 130 से अधिक लोग घायल हुए।
ईरान ने दावा किया कि “उसने इजरायल के तीन F-35 फाइटर जेट्स को मार गिराया और दो पायलटों को जिंदा पकड़ा। ईरानी विदेश मंत्री अब्बास अराघची ने इन हमलों को “ऑपरेशन ट्रू प्रॉमिस” का हिस्सा बताया, जो इजरायली हमलों का जवाब था।
ईरान की युद्धविराम की अपील
भारी नुकसान के बाद, ईरान ने ओमान और कतर से मध्यस्थता करने का अनुरोध किया ताकि अमेरिका के साथ परमाणु वार्ता फिर से शुरू हो और इजरायल के हमले रुकें। ईरानी विदेश मंत्री अब्बास अराघची ने कहा कि “अगर इजरायल हमले रोकता है, तो ईरान भी जवाबी कार्रवाई पर रोक लगाने को तैयार है। इसे कई रिपोर्ट्स में ईरान का “घुटने टेकना” बताया जा रहा है। ईरान ने अमेरिका से भी परमाणु समझौते पर बातचीत की अपील की है, ताकि क्षेत्र में तनाव कम हो।
क्या है अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया ?
- अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान को परमाणु कार्यक्रम पर बातचीत न करने पर गंभीर परिणाम भुगतने की चेतावनी दी।
- इजरायल ने अमेरिका से ईरान के अंडरग्राउंड परमाणु संयंत्र फोर्डो को निशाना बनाने के लिए मदद मांगी।
- जॉर्डन ने स्पष्ट किया कि “वह अपने हवाई क्षेत्र या जमीन को युद्ध के लिए इस्तेमाल नहीं होने देगा।”
- पाकिस्तानी पीएम शहबाज शरीफ ने इजरायली हमलों की निंदा की।
- तुर्की के राष्ट्रपति ने नेतन्याहू को शांति के लिए खतरा बताया।
- भारत ने चिंता जताई है, क्योंकि युद्ध के कारण तेल की कीमतें बढ़ सकती हैं और होर्मुज जलसंधि के रुकने से आर्थिक प्रभाव पड़ सकता है।
दोनों देशों को कितना हुआ नुकसान !
- ईरान में138 से अधिक लोग मारे गए, जिनमें 9 परमाणु वैज्ञानिक, 20 से अधिक सैन्य कमांडर, और कई नागरिक शामिल हैं। नतांज और फोर्डो परमाणु सुविधाओं को भारी नुकसान हुआ।
- इजरायल में 10 नागरिकों की मौत, 130 से अधिक घायल। तेल अवीव और यरुशलम में भारी तबाही।
- दोनों देशों में हवाई अड्डे बंद, स्कूल बंद और आपातकाल की स्थिति लागू।
क्या हैं भविष्य की संभावनाएं
ईरान ने भारी नुकसान के बावजूद जवाबी कार्रवाई की, लेकिन युद्धविराम की अपील से संकेत मिलता है कि वह युद्ध को लंबा नहीं खींचना चाहता। परमाणु वार्ता फिर से शुरू करने की कोशिश ईरान की रणनीति का हिस्सा हो सकती है।
नेतन्याहू ने स्पष्ट किया कि “जब तक ईरान का परमाणु और सैन्य खतरा खत्म नहीं होता, हमले जारी रहेंगे। इजरायल का लक्ष्य ईरान की तेल और गैस संपदा को भी कमजोर करना है। मध्य पूर्व में युद्ध का खतरा बढ़ गया है। अगर अमेरिका खुलकर इजरायल का साथ देता है, तो ईरान के सहयोगी (जैसे हिजबुल्लाह) भी युद्ध में शामिल हो सकते हैं, जिससे स्थिति और बिगड़ सकती है।
भारत के लिए तेल की कीमतों में वृद्धि और होर्मुज जलसंधि के रुकने का खतरा चिंता का विषय है। साथ ही, तेहरान में फंसे भारतीय छात्रों की सुरक्षा भी एक मुद्दा है।
युद्धविराम की अपील और मध्यस्थता
ईरान और इजरायल के बीच युद्ध ने मध्य पूर्व को युद्ध के कगार पर ला खड़ा किया है। ईरान की युद्धविराम की अपील और मध्यस्थता के लिए ओमान-कतर से गुहार को उसके कमजोर पड़ने के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि, नेतन्याहू की आक्रामक रणनीति और अमेरिका का रुख इस युद्ध के भविष्य को तय करेगा। मध्य पूर्व में शांति के लिए कूटनीतिक प्रयासों की तत्काल आवश्यकता है, अन्यथा यह संघर्ष वैश्विक अर्थव्यवस्था और स्थिरता को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है।