नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव 2024 की प्रक्रिया तेजी पकड़ती रही है। राजनीतिक दल अपने उम्मीदवारों की अंतिम घोषणा करने की प्रक्रिया में हैं, तो दूसरी तरफ नेताओं के दल बदलने का सिलसिला जारी है। ताजा उदाहरण सीता सोरेन हैं।
तीन बार की विधायक और झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की भाभी सीता सोरेन ने 19 मार्च को JMM (झारखंड मुक्ति मोर्चा) का साथ छोड़, BJP (भारतीय जनता पार्टी) का दामन थाम लिया। इससे पहले झारखंड से ही कांग्रेस की सांसद गीता कोड़ा भाजपा में आईं और मौजूदा सीट (सिंंहभूम) से टिकट भी पा गईं। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले अब तक जितने नेताओं ने दल बदला है, उनका नाम टेबल में देखा जा सकता है:
क्यों दल बदलते हैं नेता?
नेताओं का दल बदलना नई बात नहीं है। नेता कई कारणों, मसलन- टिकट न मिलने, दूसरी पार्टी में जीत की संभावना अधिक दिखने आदि से पार्टी बदलते हैं। हालांकि अब ऐसे नेताओं के लिए बुरी खबर है क्योंकि समय के साथ इनके जीतने की संभावना कम होती जा रही है।
अशोक विश्वविद्यालय के त्रिवेदी सेंटर फॉर पॉलिटिकल डेटा ने लोकसभा आंकड़ों का विश्लेषण किया है, जिससे यह आंकड़ा सामने आया है कि 2019 के चुनावों में दल बदलू नेताओं का सक्सेस रेट (सफलता का दर) 15 प्रतिशत से कम रहा था, जबकि 1960 के दशक में औसतन लगभग 30 प्रतिशत दल बदलू नेता जीत रहे थे।
पिछले लोकसभा चुनाव में कितने दल बदलू लड़े और कितने जीते?
पिछले लोकसभा चुनाव में 8000 से अधिक उम्मीदवार मैदान में थे, इसमें अलग-अलग दलों के 195 दलबदलू उम्मीदवार भी शामिल थे यानी 2019 लोकसभा चुनाव के कुल उम्मीदवारों में 2.4 प्रतिशत दलबदलू थे। दल बदलने वाले 195 नेताओं में से केवल 29 को ही जीत मिली थी, इस तरह पिछली बार का सक्सेस रेट 14.9 प्रतिशत था।
दो चुनाव पहले दल बदलू नेताओं का सक्सेस रेट करीब-करीब दो गुना था। 2004 लोकसभा चुनाव के कुल उम्मीदवारों में दल बदलू उम्मीदवारों का हिस्सा 3.9 प्रतिशत था और सक्सेस रेट 26.2 प्रतिशत था।
दल बदलू नेताओं का गोल्डन ईयर
बदलू राजनेताओं के लिए सबसे अच्छा वर्ष 1977 था। आपातकाल के ठीक बाद हुए इस चुनाव में इंदिरा गांधी से मुकाबले के लिए कई राजनीतिक ताकतों ने हाथ मिलाया था। आपातकाल के दौरान जेल में डाले गए तमाम समाजवादी, जनसंघी और किसान नेताओं ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा था।
1977 के लोकसभा चुनाव में उतरे 2439 उम्मीदवारों में से 6.6 प्रतिशत यानी कुल 161 दल बदलू थे। इस चुनाव में दल बदलू नेताओं का सक्सेस रेट 68.9 प्रतिशत था, जो अब तक का हाईएस्ट है।
हालांकि अगले ही चुनाव में सक्सेस रेट तीन गुना से ज्यादा गिर गया। 1980 के लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी ने वापसी की थी। तब 4,629 उम्मीदवारों में से 377 यानी 8.1 प्रतिशत दलबदलू थे। चुनाव के परिणाम आए तो दल बदलुओं का सक्सेस रेट गिरकर 20.69 प्रतिशत हो गया था।
भाजपा या कांग्रेस: कहां ज्यादा सफल हो रहे हैं दलबदलू?
1984 का साल कांग्रेस में आने वाले दल बदलुओं के लिए सबसे अच्छा साल साबित हुआ था। इंदिरा गांधी हत्या के बाद हुए इस चुनाव में कांग्रेस के प्रति सहानुभूति की लहर चल रही थी। तब कांग्रेस ने 32 दल बदलू उम्मीदवार मैदान में उतारे थे, जिसमें से 26 को जीत मिली थी यानी कांग्रेस में दल बदलू उम्मीदवारों का सक्सेस रेट 81.3 प्रतिशत था।
1984 में भाजपा ने अपना पहला लोकसभा चुनाव लड़ा था। पार्टी से 62 दलबदलू उम्मीदवार लड़े थे, लेकिन किसी को भी जीत नहीं मिली थी यानी सक्सेस रेट जीरो रहा। लेकिन तब से अब तक आंकड़ों में बड़े बदलाव आ चुके हैं।
2019 में भाजपा के कुल उम्मीदवारों में से 5.3 प्रतिशत दल बदलू थे, जिसमें से 56.5 प्रतिशत को जीत मिली थी। कांग्रेस के कुल उम्मीदवारों में 9.5 प्रतिशत दल बदलू थे और जीत सिर्फ 5 प्रतिशत को मिली थी।
2014 में भाजपा की टिकट पर लड़ने वाले दलबदलू उम्मीदवारों का सक्सेस रेट 66.7 प्रतिशत था। कांग्रेस के लिए यह आंकड़ा 5.3 प्रतिशत था।