आरबीआई समय पर मुद्रास्फीति पर काबू पाने के कदम उठाता, तो आज स्थिति बेहतर होती। लेकिन वह महंगाई नियंत्रण की अपनी मुख्य जिम्मेदारी भूल कर आर्थिक वृद्धि दर, मुद्रा विनिमय दर, ब्याज दर आदि संभालने और सरकार के लिए लाभांश का इंतजाम करने में जुटा रहा।
महंगाई से फिलहाल राहत नहीं मिलने वाली है। इस हफ्ते थोक भाव सूचकांक (डब्लूपीआई) के जारी आंकड़े का यही संदेश है। ये आंकड़ा 15.9 फीसदी तक पहुंच गया है। डब्लूपीआई का मतलब होता है कि उत्पादको की लागत में इतनी महंगाई का सामना करना पड़ा है। तो अब जो चीजें उत्पादित होंगी, वे अगले तीन-चार महीनों में उपभोक्ताओं तक पहुंचेगी। और तभी इस महंगाई का बोझ उन्हें उठाना होगा। बहरहाल, ये महंगाई क्यों है? क्या कोरोना महामारी या यूक्रेन युद्ध इसके लिए दोषी है? सरकार और मीडिया की तरफ से यही धारणा बनाई गई है। लेकिन नरेंद्र मोदी सरकार के ही मुख्य आर्थिक सलाहकार रह चुके अर्थशास्त्री अरविंद सुब्रह्मनियम ने अपने तार्किक हस्तक्षेप से इस धारणा को चुनौती दी है। उन्होंने बताया है कि अक्टूबर 2019 से ही महंगाई दर भारतीय रिजर्व बैंक के मुद्रास्फीति लक्ष्य से अधिक रहा है। सुब्रह्मनियम की दलील है कि अगर तभी से आरबीआई मुद्रास्फीति पर काबू पाने के कदम उठाता, तो आज स्थिति बेहतर होती। लेकिन आरबीआई मुद्रास्फीति नियंत्रण की अपनी मुख्य जिम्मेदारी भूल कर आर्थिक वृद्धि दर, मुद्रा विनिमय दर, ब्याज दर को संभालने और सरकार के लिए लाभांश का इंतजाम करने में जुटा रहा।
सुब्रह्मनियन ने हैरत जताई है कि मोनिटरी पॉलिसी कमेटी में मौजूद गैर-सरकारी सदस्यों ने भी मौद्रिक प्रबंधन के बारे में अपनी स्वतंत्र राय नहीं दी। पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार की ये टिप्पणी गौरतलब है- ‘ये विफलता इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है कि यह संस्थागत साख और योग्यता के बारे में भयानक प्रश्न खड़े करती है। संस्थाएं- खासकर आरबीआई जैसी महत्त्वपूर्ण और सम्मानित संस्था- सिर्फ सरकार का विस्तार बन कर नहीं रह सकती।’ सुब्रह्मनियम ने उचित ही ध्यान दिलाया है कि मुद्रास्फीति पर नियंत्रण सकल अर्थव्यवस्था की स्थिरता का आधार है। यही निरंतर और समावेशी विकास की बुनियाद है। स्पष्टत: इस काम में आरबीआई नाकाम रही। उसने लाभांश के रूप में सरकार को अतिरिक्त धन उपलब्ध कराने के कार्यों में अपना अधिक समय गंवाया। अब परिणाम सामने है। बेकाबू महंगाई के कारण पूरी अर्थव्यवस्था डोलती नजर आ रही है। और जब ये हाल है, तब भी सरकार हेडलाइन संभालने में ही व्यस्त है।