अजय दीक्षित
राजनीतिक दलों की नजर सिर्फ वोट बैंक पर लगी रहती है, फिर इसके लिए चाहे जैसे भी हथकंडे क्यों न अपनाने पड़े । पिछले दिन सुप्रीम कोर्ट ने शहरों और स्थलों के नया नाम देने पर टिप्पणी की हैं।
वोटों के ध्रुवीकरण के मकसद से दायर की गई एक जनहित याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज करके यह साबित कर दिया कि व्यर्थ के विवादों को जन्म देने से देश का भला नहीं होने वाला । यह याचिका भाजपा नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय ने दायर की थी, जिसमें कहा गया था कि देश के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक-धार्मिक स्थलों के मूल नामों का पता लगाने और उनके वर्तमान नाम से आक्रांताओं के नाम को हटाने के लिए एक नामकरण आयोग का गठन किया जाये । याचिका में यह भी कहा गया था कि सुप्रीम कोर्ट पुरातत्व विभाग को पुराने नामों को प्रकाशित करने के लिए निर्देश दें । याचिका को खारिज करते हुए जस्टिस केएम जोसेफ और बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा कि यह उन मुद्दों को जीवंत करेगा, जो देश में बवाल करवा सकते हैं ।
फैसला सुनाते हुए बेंच ने कहा कि देश के इतिहास को उसकी वर्तमान और आने वाली पीढिय़ों के लिए छेडऩ नहीं चाहिये । कोर्ट ने कहा, हिन्दू धर्म एक धर्म नहीं है बल्कि जीवन जीने का एक तरीका है । इस धर्म में कोई कट्टरता नहीं है । खंडपीठ का कहना था कि अतीत को खोदने से केवल दुश्मनी ही पैदा होगी । शीर्ष कोर्ट के इस आदेश से स्पष्ट है कि नया नामकरण करने के निहित ! राजनीतिक स्वार्थ हैं । इसका मकसद वोट आधारित राजनीति है । राजनीतिक दल देश में मौजूदा समस्याओं के समाधान और विकास की नई तस्वीर पेश करने के बजाय जन भावनाओं को भुनाने के लिए ऐसे विवादित मुद्दे भुनाते रहे हैं । इसमें राष्ट्रीय दल के साथ ही क्षेत्रीय दल भी पीछे नहीं हैं । आजादी के बाद से अब तक 21 राज्यों ने कुल 244 जगहों के नाम बदले हैं । सबसे ज्यादा 76 जगहों के नाम आन्ध्र प्रदेश में बदले गये हैं । तमिलनाडु ने 31और केरल ने 26 जगहों का नाम बदला है । महाराष्ट्र ने भी 18 जगहों का नाम बदला है । उत्तर प्रदेश में आजादी के बाद से अब तक 8 शहरों का नाम ही बदला गया है ।
आजादी के बाद से अब तर्क देश के 9 राज्यों और 2 संघशासित प्रदेशों का भी नाम बदला गया है । किसी भी शहर या जिले का नाम बदलने के लिए सबसे पहले किसी विधायक या एमएलसी द्वारा इसके लिए सरकार से मांग करना बेहद जरूरी होता है । आम लोगों को इस बदलाव की भारी कीमत चुकानी पड़ती है । औसतन एक शहर का नाम बदलने में 300 करोड़ रुपये तक खर्च होते हैं । अगर शहर बड़ा हो तो यह राशि 1000 करोड़ तक भी पहुंच सकती है । यह खर्च देश और दुनिया में किसी भी शहर की प्रसिद्धि पर निर्भर करता है कि नाम बदलवाने पर कितने पैसे का खर्च आयेगा ।
शहर के नए नाम के साथ ही वहां स्थित हर आधिकारिक स्थानों के नामों में बदलाव किया जाता है । तब जाकर किसी शहर का नाम बदलता है । जब भी किसी शहर या जगह का नाम बदला जाता है तो उसमें करोड़ों रुपयों का खर्चा आ जाता है । इसकी वजह है कि बदले गए नाम को हर जगह बदलना पड़ता है । जैसे जब किसी शहर का नाम बदला जाता है तो सभी दस्तावेजों में यह नया नाम दर्ज करना पड़ता है । रेलवे स्टेशन, बस स्टेशन आदि जगहों पर भी नया नाम लिखा जाता है। इन्हीं सब प्रक्रिया के चलते नाम बदलने में करोड़ों रुपयों का खर्च आ जाता है। नाम बदलने में हुआ व्यय लोगों की गाढ़ी कमाई से चुकाये गये टैक्स से पूरा होता है । ऐसे में दूसरी जरूरी विकास योजनाओं के बजट में कटौती करके इस राशि का प्रावधान किया जाता है ।