अनुराग मिश्र
नई दिल्ली : भारत नार्को टेररिज्म की विभीषिका का सामना कर रहा है। इसके तार पाकिस्तान और अफगानिस्तान से लेकर चीन, म्यांमार, मोजंबिक और ईरान तक फैले हुए हैं। इस बार निशाने पर भारत की युवा पीढ़ी है। रक्षा विशेषज्ञों, नीति निर्माताओं, राजनेताओं, पुलिस अधिकारियों और जांच एजेंसियों से जागरण प्राइम की बातचीत में सामने आया कि ड्रग्स मौजूदा दौर की सबसे बड़ी चुनौती है। उनका कहना है कि युवा पीढ़ी की कौशल क्षमता और बुद्धिमता का इस्तेमाल कर भारत दुनिया में सबसे शक्तिशाली देश बन सकता है। इसे रोकने के लिए कई मुल्क भारत के खिलाफ नार्को टेररिज्म युद्ध छेड़ चुके हैं। दुश्मन के निशाने पर भारत की 65 फीसदी युवा आबादी है।
इसकी बानगी भारत में बढ़ रहा ड्रग्स का इस्तेमाल है। जम्मू-कश्मीर में पिछले पांच साल में ड्रग्स के शिकंजे में फंसे लोगों की तादाद चिंताजनक रूप से 2000 प्रतिशत बढ़ गई। केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं सशक्तीकरण मंत्रालय और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान की नवीनतम सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक, कश्मीर की 4.5 प्रतिशत से ज़्यादा आबादी ड्रग्स का सेवन करती है। चंडीगढ़ के पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (पीजीआईएमईआर) के सामुदायिक चिकित्सा विभाग द्वारा इस वर्ष जारी पुस्तक ‘रोडमैप फॉर प्रिवेंशन एंड कंट्रोल ऑफ सब्सटेंस एब्यूज इन पंजाब’ के दूसरे संस्करण में कहा गया है कि पंजाब की 15.4 फीसदी आबादी यानी 30 लाख से अधिक लोग नशीले पदार्थों का सेवन कर रहे हैं। दिल्ली पुलिस के आंकड़े देखें तो 2022 में मादक पदार्थों की तस्करी छह वर्षों में सबसे अधिक हुई है। असम में 2017 में 1181 किलोग्राम ड्रग्स पकड़ा गया था, जबकि 2022 में यह मात्रा 5026 किलोग्राम हो गई। मिजोरम में 2017 के मुकाबले बरामदगी करीब तीन गुनी हो गई।
ड्रग्स के बढ़ते मामलों की गंभीरता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि देश के गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में कहा था कि ड्रग्स गंभीर समस्या है, इससे हमारी नस्लें बर्बाद हो रही हैं। इसके पीछे भारत में आतंकवाद फैलाने की कोशिश करने वाले देश हैं। इसके ट्रेड से होने वाली आय से आतंकियों को मदद मिलती है। उन्होंने कहा था कि यह लड़ाई देश, राज्य या किसी एक विभाग की नहीं, बल्कि इस लड़ाई को सबको साथ मिलकर लड़ना होगा।
पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल मोहन भंडारी कहते हैं कि भारत की 65 फीसदी आबादी युवा है। जो देश भारत का विकास नहीं चाहते या बाधित करना चाहते हैं, वे युवाओं को गुमराह करने के लिए कई तरह के प्रयास करते हैं। नार्को टेररिज्म उसी का हिस्सा है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार, भारत में 2021 में नशीली दवाओं और शराब की लत से 10,560 आत्महत्याएं दर्ज की गईं, जो 2011 में दर्ज किए गए 3,658 ऐसे मामलों से 189 प्रतिशत अधिक है।
दुनिया में अवैध ड्रग्स के तौर पर 6 चीजों का सबसे ज्यादा इस्तेमाल होता है। इनमें गांजा, कोकीन, अफीम, MDMA, ट्रैंक्वलाइजर और सूंघने वाला नशा जैसे बोनफिक्स, कोडीन शामिल हैं। वर्ल्ड ड्रग रिपोर्ट 2021 के मुताबिक भारत में सबसे ज्यादा हेरोइन इस्तेमाल होता है। नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985 (एनडीपीएस एक्ट) के तहत 2011 में दर्ज मामले 25,785 थे, जो 204 प्रतिशत बढ़कर 2021 में 78,331 हो गए।
नशीली दवाओं के दुरुपयोग और शराब से आत्महत्या की घटनाएं 30 से 45 वर्ष के आयु वर्ग में सबसे अधिक हैं, इसके बाद 18-30 वर्ष का आयु वर्ग है। 2021 में एनडीपीएस अधिनियम के तहत दर्ज कम से कम 59 प्रतिशत मामले व्यक्तिगत उपभोग के लिए ड्रग्स रखने के थे। ऐसे मामलों की संख्या चिंताजनक रूप से 2020 में 33,246 से बढ़कर 2021 में 46,029 हो गई है।
भारत के खिलाफ इस साजिश में पड़ोसी देश भी शामिल हैं। जम्मू-कश्मीर के पुलिस प्रमुख दिलबाग सिंह स्पष्ट कह चुके हैं कि नार्को टेररिज्म पाकिस्तान की तरफ से खड़ी की गई ‘सबसे बड़ी चुनौती’ है, जिससे निपटने के लिए हरसंभव प्रयास किए जा रहे हैं। कश्मीर पुलिस के महानिरीक्षक विजय कुमार भी कह चुके हैं कि नशीले पदार्थ सीमा पार से आ रहे हैं। उन्हें बेचकर मिलने वाला पैसा आतंकवादियों और आतंकी संगठनों को दिया जाता है। वे उस पैसे से हथियार और गोला-बारूद खरीदते हैं। सीमा पार से युवा पीढ़ी के खिलाफ साजिश की बात एक अध्ययन से भी साबित होती है। इंस्टीट्यूट फॉर डेवलपमेंट एंड कम्युनिकेशंस, चंडीगढ़ के सर्वेक्षण में पता चला कि नशे के आदी 75.8 प्रतिशत लोग सीमावर्ती जिलों में रहते थे और 15-35 वर्ष के बीच की आयु के थे।
जीवन में समस्याओं और संघर्ष से जूझने की शुरुआत युवावस्था में होती है और ये संघर्ष कई किस्म के तनावों को जन्म देता है। विज्ञान कहता है कि ड्रग्स में ऐसे केमिकल्स होते हैं, जो स्ट्रेस कम करने, याददाश्त कम करने, कुछ केमिकल रिएक्शनों के कारण शरीर व दिमाग को शिथिल करने और यहां तक कि सोच न पाने तक की तासीर पैदा कर देते हैं।
2019 में सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ था। पंजाब के फरीदकोट के उस वीडियो में एक महिला कूड़े के ढेर में पड़े अपने बेटे के शव के पास विलाप करती दिख रही थी। लड़के के हाथ की नसों में नशे की सिरिंज लगी हुई थी। शायद ड्रग्स की ओवरडोज की वजह से उसकी मौत हो गई थी। उसी दौरान सोशल मीडिया पर प्रचारित अमृतसर के एक अन्य वीडियो में एक व्यक्ति अपने बेटे की मौत पर शोक मनाता दिख रहा था। बताया गया कि उसका बेटा भी नशे की गिरफ्त में था।
युवा पीढ़ी की सोच को कर रहा खोखला
मनोहर पर्रिकर इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस के काउंटर टेररिज्म सेंटर के कोऑर्डिनेटर आदिल रशीद कहते हैं कि अमेरिका के अफगानिस्तान छोड़ने और तालिबान शासन आने के बाद वहां निरंकुशता बढ़ी है। अमेरिका के वहां रहने से पाकिस्तान पर भी अंकुश था। वहीं पाकिस्तान की इकोनॉमी भी चौपट है। ऐसे में ड्रग्स और हथियारों की खेप, आमद और भारत समेत अन्य देशों में इसे खपाने का सिलसिला बढ़ा है। मौजूदा समय में आतंकवाद की फंडिंग के लिए ड्रग्स महती आवश्यकता है। किसी देश की युवा पीढ़ी को बर्बाद करने का यह सबसे बड़ा हथियार है। रशीद कहते हैं, अहिस्ता-अहिस्ता ड्रग्स हमारी युवा पीढ़ी की सोच को कुंद और खोखला कर रहा है। इससे उनके नैतिक मूल्यों में गिरावट आ रही है।
रिटायर्ड लेफ्टिनेंट कर्नल जे.एस. सोढ़ी कहते हैं कि 1971 में भारत से हारने के बाद पाकिस्तान समझ गया कि सैन्य युद्ध में वह भारत को पराजित नहीं कर सकता। ऐसे में उसने छद्म युद्ध को बढ़ावा दिया। अनुच्छेद 370 हटने के पहले जम्मू-कश्मीर में हुई घटनाओं के पीछे पाकिस्तान का यही वार था। 1971 के बाद पाकिस्तान ने एक डॉक्टरिन बनाई। जिया-उल-हक के समय बनाई गई उस डॉक्टरिन में कहा गया था- ब्लीड इंडिया इन टू थाउंजेड कट्स। इसके तहत मिसइन्फॉर्मेशन और दुष्प्रचार को बढ़ावा दिया जाता है। पंजाब में आतंकी गतिविधियों को बढ़ावा देने के पीछे यही मकसद था। भारत सरकार के कठोर कदमों से आतंकी गतिविधियां खत्म हो चुकी हैं। इसलिए पाकिस्तान इसी डॉक्टरिन को नारको आतंकवाद के तौर पर अमल में ला रहा है। उसकी रणनीति है कि यहां समाज में ड्रग्स का जहर इस कदर फैला दिया जाए कि युवाओं की काम करने की क्षमता, सोच और उत्पादकता प्रभावित हो। चीन इस मामले में पाकिस्तान का गुपचुप समर्थन कर रहा है। भारत का आत्मनिर्भर होना, आतंकी गतिविधियों पर लगाम लगाना चीन और पाकिस्तान को सुहा नहीं रहा है।
ड्रग और आतंकी कनेक्शन
आदिल रशीद कहते हैं कि ड्रग्स और आतंक का कनेक्शन बिल्कुल स्पष्ट है। ड्रग पैडलर को थल, मरुस्थल और समुद्री, तमाम खुफिया रास्ते मालूम होते हैं। यह रास्ते वह आतंकियों को बताते देते हैं। इसके एवज में वह ड्रग माफियाओं को अत्याधुनिक हथियार मुहैया कराते हैं। पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई इस काम को लंबे समय से अंजाम दे रही है। उसका एक सुगठित नेटवर्क है।
नार्को आतंकवाद शब्द का इस्तेमाल
नार्को-आतंकवाद शब्द का प्रयोग पहली बार अमेरिका में किया गया था जब बोलीविया, कोलंबिया, पेरू, निकारागुआ और अन्य मध्य अमेरिकी देशों में ड्रग तस्करों ने अवैध व्यापार को एक पेशे के रूप में संगठित किया और समानांतर सरकार चलाई। ये देश भारी मात्रा में कोकीन और भांग का उत्पादन करते हैं। दरअसल, इस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था कोकीन और भांग की खेती पर निर्भर करती है। पड़ोसी होने के साथ अमेरिका नशीले पदार्थों का सबसे बड़ा बाजार भी है। नशीली दवाओं के आदी लोगों की बढ़ती संख्या ने अमेरिकी सरकार को कार्रवाई के लिए मजबूर किया। हालांकि, उसे भी इसका एहसास बहुत बाद में हुआ यानी जब राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने 1980 के दशक में लैटिन अमेरिकी देशों में वामपंथी आंदोलनों के खिलाफ लड़ने का फैसला किया। तब पहली बार नार्को-आतंकवाद मुद्दा बना था।
पाकिस्तान ड्रग्स का बड़ा केंद्र
पाकिस्तान इस क्षेत्र के अन्य देशों के लिए नशीले पदार्थों का एक प्रमुख स्रोत है, क्योंकि यह अफ़ीम उत्पादन के तथाकथित “गोल्डन क्रिसेंट” या “डेथ क्रिसेंट” पर स्थित है, जैसा कि दुनिया भर में मादक द्रव्य विरोधी एजेंसियों द्वारा लोकप्रिय रूप से कहा जाता है। पाकिस्तान से आने वाले ड्रग्स के लिए अफगानिस्तान और ईरान एक ट्रांजिट प्वाइंट बन जाता है। पाकिस्तान की सीमाओं पर सख्ती न होना और कुछ क्षेत्रों में प्रभावी कानून की कमी के कारण तस्करों के लिए सीमा पार ड्रग्स ले जाना अपेक्षाकृत आसान हो जाता है।
ऐसे आता है पाक से ड्रग
तमिलनाडु और केरल पाकिस्तान से तस्करी की जाने वाली दवाओं के प्रमुख गंतव्य बन गए हैं। इसका एक मुख्य कारण लंबी तटरेखा और चेन्नई और कोच्चि में बड़े बंदरगाहों का होना है। दूसरा कारण यह है कि इन बंदरगाहों से श्रीलंका और मालदीव तक ड्रग्स पहुंचाना आसान है। आंध्र प्रदेश, उड़ीसा और कर्नाटक भी मिनी ट्रांजिट प्वाइंट बन चुके हैं।
ड्रग्स का उत्पादन करने वाली दो बड़ी जगहों के बीच में है भारत
देश में ड्रग्स का काला कारोबार बढ़ने के पीछे का कारण भारत का गोल्डन ट्रायंगल और गोल्डन क्रिसेंट के बीच में होना है। गोल्डन ट्रायंगल (त्रिकोण) वह क्षेत्र है जिसमें थाईलैंड, लाओस और म्यांमार की सीमाएं रुक और मेकांग नदियों के संगम पर मिलती हैं। दुनिया के 75 प्रतिशत हेरोइन का उत्पादन यहीं किया जाता है। गोल्डन क्रिसेंट क्षेत्र में पाकिस्तान, अफगानिस्तान और ईरान शामिल हैं। इस क्षेत्र में भारी मात्रा में अफीम का उत्पादन होता है। यह स्थान अफगानिस्तान और पाकिस्तान की पहाड़ी परिधि को कवर करता है, जो पूर्वी ईरान तक फैला हुआ है। इन दोनों जगहों से भारत में भारी मात्रा में ड्रग्स भेजी जाती है।
अधिकारियों का कहना है कि गोल्डन ट्रायंगल और गोल्डन क्रिसेंट से सबसे पहले ड्रग्स भारत भेजी जाती है। गुजरात, महाराष्ट्र, बंगाल के बंदरगाहों पर भारी मात्रा में ड्रग्स पहुंचता है। यहां से इसे देश के विभिन्न हिस्सों में स्थित फैक्ट्री में भेजा जाता है। वहां उच्च गुणवत्ता वाला अलग-अलग ड्रग्स तैयार करने के बाद उसे विदेश भेजा जाता है।
इंडो-पैसिफक जियोपॉलिटिक्स मामलों के जानकार आकाश साहू कहते हैं कि दक्षिण पूर्व एशिया में ड्रग का वितरण और प्रोडक्शन अवैध पर कई बिलियन डॉलर की इकोनॉमी है। इसमें कई आपराधिक समूह और सिंडीकेट काम करते हैं। गोल्डन ट्रायंगल में बॉर्डर रीजन जैसे म्यांमार, थाईलैंड, लाओस शामिल हैं। ये सभी चीन के बॉर्डर के करीब हैं। इस क्षेत्र की कानून-व्यवस्था खराब है। इस क्षेत्र में कई आपराधिक गतिविधियां अधिकारियों की नजर में चलती है।
रोहिंग्या बड़े ड्रग स्मगलर, आर्म्स स्मगलर
रिटायर्ड मेजर जनरल जीडी बख्शी कहते हैं कि रोहिंग्या बहुत बड़ी मुसीबत हैं। 1947 में ये लोग पाकिस्तान में मिलना चाहते थे, लेकिन पाकिस्तान खुद घबरा गया कि हम तीन हिस्सों में कैसे बटेंगे। पर अब ये सबसे बड़े ड्रग स्मगलर, आर्म्स स्मगलर रोहिंग्या हैं। म्यांमार में इन्होंने विद्रोह किया। म्यांमार की सरकार ने दबाया तो ये भारत में आने की कोशिश कर रहे हैं।
पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह के मुताबिक यूपी में जो रोहिंग्या पकड़े गए उन्होंने बताया है कि संगठित गिरोह इनके कैम्प लगाता है पश्चिम बंगाल में। उन कैम्प में यहां की बोलचाल पहनावा के बारे में बताया जाता है। पहचान पत्र, जैसे वोटर आइडी आधार उपलब्ध कराए जाते हैं। इसके बाद इनको देश के विभिन्न कोनों में बसाया जाता है। जिस ट्रेड की जानकारी होती उसमें नौकरी पर लगाया जाता है।
डार्क वेब से ड्रग्स
डार्क वेब अनियन राउटिंग टेक्नोलॉजी पर काम करता है। ये यूजर्स को ट्रैकिंग और सर्विलांस से बचाता है और उनकी गोपनीयता बरकरार रखने के लिए सैकड़ों जगह रूट और री-रूट करता है। आसान शब्दों में कहा जाए तो डार्क वेब ढेर सारी IP एड्रेस से कनेक्ट और डिस्कनेक्ट होता है, जिससे इसको ट्रैक कर पाना असंभव हो जाता है। इस पर वर्चुअल करेंसी जैसे बिटकॉइन का इस्तेमाल किया जाता है ताकि ट्रांजैक्शन को ट्रेस न किया जा सके।
रॉ मैटीरियल का गढ़ है चीन
याबा को बनाने वाली सभी अवैध लैब म्यांमार में चल रही हैं, लेकिन इसे बनाने वाला रॉ मैटीरियल चीन से तस्करी के जरिये म्यांमार लाया जाता है। इसके बाद इसे म्यांमार से लगने वाली 270 किलोमीटर लंबी सीमा या भारत के रास्ते बांग्लादेश ले जाया जाता है, जहां इसकी बेहद मांग है। अधिकारियों के मुताबिक, इस नशीली दवा से युवाओं में तनाव, उत्तेजना, गुस्सा और चिड़चिड़ापन जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। यह गुर्दे, दिल, लीवर और मस्तिष्क को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचाती है। चीन में मेथम्फेटामाइन को ऑनलाइन खरीदा जा सकता है।